संगीत के रैदास "चमार" गीतकार शैलेन्द्र
"जोर जुल्म के टक्कर में संघर्ष हमारा नारा है"
"तू जिंदा है जिंदगी की जीत पर यकीं कर"
जैसे गीतों के माध्यम से दलित वंचना को आवाज देने वाले भारतीय हिन्दी सिनेमा जगत के सफल गीतकार, फिल्म निर्माता, निर्देशक #शैलेंद्र साहब (30 August 1923-14 December 1966) के गानों को शायद ही किसी ने एंज्वाय न किया हो।
बिहार से ताल्लुक रखने वाले गीतकार शैलेंद्र
का जन्म एक गरीब दलित परिवार में हुआ. बचपन से ही गरीबी और जातियता की दंश झेलते हुए मुकाम हासिल करना बहुत बड़ी बात थी. ये वो दौर था जब दलित-मुस्लिम कलाकारों को जाति व नाम छुपाकर भारतीय सिनेमा जगत में रहना होता था।
#श्री_420 #मेरा_नाम_जोकर #आवारा #संगम #आग जिस देश मे गंगा बहती है #मधुमति #जागते_रहो #गाइड #काला_बाजार #यहुदी #तीसरी_कसम जैसी महान फिल्मों के गीत के माध्यम से दुनिया भर में अलग ही पहचान बनाने वाले शैलेंद्र साहब अपने जमाने के सभी मशहूर कलाकार, गायक, संगीतकार के साथ काम किया. कई कलाकारों को फिल्मों मे मौका देकर भारत में मशहूर भी किया। तत्कालीन भारत के बहुजन समाज के एक लीजेंड कलाकार के तौर पर पेश किया।
जाति का कहर सिनेमा जगत में इस कदर फैला हुआ था 800 सुपरहिट गाना देने वाले शैलेंद्र साहब को एक भी सम्मान पुरुस्कार से नवाजा नही गया. इस दर्द को वो महसूस करते थे इसलिए कई शायरी, गीतों के माध्यम से दलित-मुस्लिम की चेतना जगाने की कोशिश भी करते रहते थे।
आपके गाने और आप अमर हैं, जिसको हमारी आने वाली पीढ़ी भी गुनगुनाएगी, एंज्वाय करेगी।
महान गीतकार शैलेंद्र जी जिन्हें गीतकारों का रैदास भी कहा जाता है कई विद्वान तो उन्हें कबीर कह देते हैं।
और वाकई वे कबीर और रैदास की ही धारा के थें , उनके गीतों में पूरा जीवन दर्शन उतर जाता था।
मूल रूप से बिहार के आरा जिले के धुसपुर से चमार समुदाय से संबंध रखते थें, किन्तु उनका जन्म रावलपिंडी में हुआ ।
यह खुलासा उनके मरने के उनके बेटे ने अपनी किताब में किया की वे बिहार के चमार जाति से थें।
'घरबार नहीं, संसार नहीं, मुझसे किसी को प्यार नहीं।
ए दुनिया मैं तेरे तीर का या तकदीर का मारा हूं....'
जैसे गीत शायद इसी का दर्द में डूबी श्याही थी।
'सजन रे झूठ मत बोलो... खुदा के पास जाना है...'
इस गीत में शैलेंद्र ने पूरा जीवन दर्शन ही उड़ेल दिया है।
शैलेन्द्र का दिया ...हर जोर जुल्म की टक्कर पर .... हड़ताल हमारा नारा है ....यह नारा आज भी हर मजदूर के लिए मशाल के समान है।
यह कहना बिल्कुल सही है कि शैलेंद्र के गीतों को जीवन राजकपूर ने ही दिया था, उन्होंने शैलेन्द्र की प्रतिभा को पहचाना और मौका दिया ।
शैलेंद्र का हर एक शब्द अपने में पूरी किताब होता था।
शैलेन्द्र को उनके गीतों के लिये तीन बार फिल्म फेयर अवार्ड से सम्मानित किया गया। लेकिन इस दलित विभूति की मीडिया, सवर्ण समाज और सरकार ने जीते जी और उनकी मृत्यु के बाद भी उपेक्षा की।
फ़िल्म इंडस्ट्री में सवर्णों को अगर झींक भी आ जाये तो मीडिया उसे तुरंत हाइलाइट कर देता है किंतु क्या आपको पता है कि 2015 में शैलेन्द्र जी के बेटे दिनेश शैलेंद्र साथ एक आपराधिक घटना हुई थी जिसका जिक्र सवर्ण मीडिया ने नही किया।
मुंबई में दिनेश शैलेन्द्र की शादी की 31वीं वर्षगाँठ 21 फरवरी, 2015 को अपरान्ह 3 बजे, बेसबॉल बैट और डंडे लिये करीब 30 स्थानीय गुंडे उनके घर में जबरन घुस आये। उन्होंने दिनेश शैलेन्द्र और उनकी पत्नी से उनके मोबाइल छीन कर उन्हें एक कोने में बिठा दिया और उन दोनों के सामने ही घर का एक-एक सामान ट्रक पर लाद लिया।
चम्मच तक नहीं छोड़ी। ये गुंडे शैलेन्द्र की हस्तलिखित कवितायें, चिट्ठीयां, पुरस्कार और ट्राफियां भी ले गये। वे तो दिनेश शैलेन्द्र और उनकी पत्नी को भी ट्रक में जबरन बिठाकर ले जाना चाहते थे लेकिन तभी वहां से गुजर रहे एक व्यक्ति ने माजरा समझ कर पुलिस को फोन कर दिया और पुलिस के आने के पहले ही वे ट्रक लेकर भाग निकले।
बाद में पुलिस कम्पलेंट की गई पर कोई फायदा नही हुआ ,अपराधियो को छोड़ दिया गया।
आज जयंती दिवस पर शैलेंद्र साहब को हार्दिक नमन 🙏🙏🙏
Sagar Gautam Nidar
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