दलितों की स्थिति पर एक नजर और बहिन मायावती

1980 में कुर्मियों ने बिहार के पिपरा गांव में 14 दलितों की हत्या कर दी।

1983 में अहीरों ने मुंगेर में 4 धनुकों की हत्या कर दी।

1989 में नोनहीं-नागवां गांव में अहीरों ने 19 दलितों का नरसंहार किया।

◆ बेलछी नरसंहार 1977 - 14 दलितों की हत्या।
     【 जमींदार Vs दलित 】

◆ विल्लापुरम नरसंहार 1978 - 12 दलितों की हत्या।
     【 जमींदार Vs दलित 】

◆ त्सुन्दूर नरसंहार 1991 - 8 दलितों की हत्या।
     【 जमींदार Vs दलित 】

◆ कुम्हेर नरसंहार 1992 - 16 दलितों की हत्या।
     【 जमींदार Vs दलित 】

इस तरह के सैंकड़ों नरसंहार उस दौर में हुआ था।

हर घटना में दलितों के खून से जमींदारी के अहंकार का रंग चढ़ा। न कानून था, न मीडिया, न टेलीफोन। ये नरसंहार सिर्फ संख्या नहीं हैं, बल्कि उस जातिवादी सोच का आइना हैं जिसने दलितों को इंसान मानने से भी इनकार किया।

सभा होती, आदेश निकलता, और दलित बस्तियों पर हमला। यह केवल हत्या नहीं थी, यह सत्ता का प्रदर्शन था। उस दौर में चुनावों में भी पोलिंग बूथ लूटे जाते थे, दलितों को वोट देने से रोका जाता था।

लेकिन उत्तर प्रदेश ने देखा एक क्रांति।
मायावती जी ने न केवल इस अन्याय का मुकाबला किया, बल्कि वंचित समाज को राजनीति की मुख्यधारा में लाकर इतिहास रच दिया। चार बार मुख्यमंत्री बनकर उन्होंने दिखाया कि सत्ता अब ऊंची जातियों की जागीर नहीं रही।

2 जून 1995 का गेस्ट हाउस कांड, जहां जातीय श्रेष्ठता का जहर खुलकर सामने आया। उन्हें जान से मारने की साजिश हुई, लेकिन ब्रह्मदत्त द्विवेदी जैसे नेताओं के सहयोग से उनका जीवन बचा।

राजा भैया और टिकैत जैसे लोगों की गिरफ्तारी करवाकर उन्होंने दिखा दिया कि कानून से ऊपर कोई नहीं। यह सिर्फ एक महिला का संघर्ष नहीं था, यह पूरे दलित समाज के लिए न्याय का प्रतीक था।

आज बहनजी का 69वां

जन्मदिन है।

आदरणीय बहन कुमारी @Mayawati जी को जन्मदिन की हार्दिक मंगल कामनाएं।

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