कलम कसाइयों से बच कर रहें।
कलम कसाईयों से बच के रहे तर्क करे मै विद्रोही सागर अम्बेडकर उन कलम कसाईयों को बोलना चाहता हूँ आप झूठे हो आपका इतिहास झूठा है। पहले हम शिक्षित नहीं थे।
आपने कुछ लोगों के लिए शिक्षा सिमित कर दी थी शिक्षा पाना हर किसी का अधिकार नहीं था।
आप ने जैसा चाहा वैसा इतिहास लिख दिया आज 21 वी सदी मे अंग्रेजों और बाबा साहब अंबेडकर की वजह से हम शिक्षित हो सके।
आज हमें आप का इतिहास झूठा लगता है आज हमारे तर्क और सवालों के जवाब आपके पास नहीं है।
आप कहते हो नालंदा विश्वविद्यालय बख्तियार खिलजी ने जलाया।
मैं कहता हूं बख्तियार खिलजी आने से 200 साल पहले ही नालंदा विश्वविद्यालय जलाया जा चुका था।
बख्तियार खिलजी नालंदा विश्वविद्यालय कैसे जला सकता था नालंदा विश्वविद्यालय तो बख्तियार खिलजी से बहुत पहले जल चुका था।
नालंदा विश्वविद्यालय का मुजरिम नालंदा विश्वविद्यालय को जलाने वाला बख्तियार खिलजी नहीं मिहिरकुल शासक था।
Wikipedia कहता है मिहिरकुल शासक आर्य वंशज था और उसी ने बिहार मैं बुद्ध की बनी हुई विरासत और इतिहास को नेस्तनाबूत किया।
लेकिन Wikipedia एक झूठ बोलता है Wikipedia कहता है कुमारगुप्त ने नालंदा विश्वविद्यालय बनाया।
जबकि नालंदा विश्वविद्यालय जब बना था तब कुमारगुप्त के परदादा भी पैदा नहीं हुए थे।
इतिहासकार नालंदा विश्वविद्यालय को इतिहास में खींचकर कुमारगुप्त के दौर में ले आते हैं।
और नालंदा विश्वविद्यालय का मुजरिम बख्तियार खिलजी को करार देते हैं।
जो सरासर गलत है।
चीनी इतिहासकार हेन् सांग बताता हैं कि मिहिरकुल ने भारत में बौद्ध धर्म को बहुत भारी नुकसान पहुँचाया। वह कहता हैं कि एक बार मिहिरकुल ने बौद्ध भिक्षुओं से बौद्ध धर्म के बारे में जानने कि इच्छा व्यक्त की।
परन्तु बौद्ध भिक्षुओं ने उसका अपमान किया, उन्होंने उसके पास, किसी वरिष्ठ बौद्ध भिक्षु को भेजने की जगह एक सेवक को बौद्ध गुरु के रूप में भेज दिया।
मिहिरकुल को जब इस बात का पता चला तो वह गुस्से में आग-बबूला हो गया और उसने बौद्ध धर्म के विनाश कि राजाज्ञा जारी कर दी।
उसने उत्तर भारत के सभी बौद्ध बौद्ध मठो को तुडवा दिया और भिक्षुओं का कत्ले-आम करा दिया| हेन् सांग कि अनुसार मिहिरकुल ने उत्तर भारत से बौधों का नामो-निशान मिटा दिया|
जानकारी का श्रोत (माध्यम) विकिपीडिया.
इतिहासकार राजेंद्र प्रसाद सिंह इस बात का समर्थन करते हैं।
मुख्यधारा के सभी इतिहासकार बताते हैं कि नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त राजा कुमारगुप्त ने की थी।
जबकि सभी जानते हैं कि नागार्जुन नालंदा विश्वविद्यालय के आचार्य थे और जब नागार्जुन नालंदा विश्वविद्यालय में पढ़ाते थे, तब कुमारगुप्त के परदादा भी पैदा नहीं हुए थे।
हमें मालूम है कि भारत में ज्ञात इतिहास मे सबसे पहले जो शासक थे वे जैन और बौद्ध थे न कि हिन्दू, । बहुसंख्यक जनता भी हिन्दू की बजाय बौद्ध और जैन ही थी बौद्ध पांडुलिपियो से ज्ञात होता है उस समय भारत मे हजारों की संख्या मे बौद्ध धर्म स्थल हुआ करते थे असंख्य बौद्ध ग्रंथ पाए जाते थे।
हमने ये भी पढ़ा है कि बौद्ध और जैन शासन को भारत से जिसने मिटा दिया वो हिन्दू शासक थे, वे मुस्लिम नहीं थे।
वैदिक धर्मी पुष्य मित्र शुन्ग ने बौद्ध शासक की हत्या कर के न सिर्फ शासन पर अधिकार कर लिया बल्कि उस ने पूरे राज्य मे बौद्धो की हत्याएं करवाई, और अशोक के बनवाये 84000 बौद्ध स्तूप तुड़वा डाले।
और बहुत सारे बौद्ध स्थलों को मंदिरों में तब्दील कर दिया गया।
बौद्ध पुस्तकालयों को भी पुष्यमित्र ने बड़ी मात्रा मे जलवा डाला, आज भी बौद्ध पाण्डुलिपियो मे पुष्यमित्र के अत्याचारों की दास्तान लिखी हुई हैं।
स्वामी दयानंद अपनी किताब “सत्यार्थ प्रकाश” मे लिखते हैं।” दस वर्ष के भीतर सर्वत्र आर्यावर्त देश मे घूम कर जैनियो का खण्डन और वेदो का मण्डन किया गया।
परंतु शंकराचार्य के समय मे जैन विध्वंस अर्थात् जितनी मूर्तियां जैनियो की निकलती हैं, वे शंकराचार्य के समय मे टूटी थीं, और जो बिना टूटी निकलती हैं , वे जैनियो ने भूमि मे गाड़ दी थीं कि तोड़ी न जाएं ॥ वे अब तक कहीं कहीं भूमि मे से निकलती हैं ।
[ सत्यार्थ प्रकाश, समुल्लास 11, शंकराचार्य का अध्याय ]
विपकीडीया के आर्टीकल को शेयर करने से पहले उसकी पूर्ण जांच करे हर शाख पे उल्लू बैठा है अंजामे गुलिस्तां क्या होगा।
सन् 1038 के समय चोल वंश के राजेन्द्र चोल ने हर बौद्ध देश पर आक्रमण कर के उनपर कब्जा कर लिया जिनमें रूहमा (वर्तमान बंगाल) से लेकर जावा, सुमात्रा, मलाया और श्रीलंका तक शामिल थे।
सबसे महत्वपूर्ण बात कि इसी राजेन्द्र चोल ने मगध के तत्कालीन बौद्ध शासक महीपाल को पराजित कर के उसका राज्य अपने अधीन कर लिया था, नालंदा इसी मगध राज्य मे था फिर आप मुझे नालंदा के सुरक्षित रह जाने का कोई ठोस कारण बता दीजिए न मान्यवर ??
खैर जाने दीजिए, मैं आपको मुस्लिमों के भारत का शासक बनने के समय और बाद तक की स्थिति के बारे मे बताता हूँ …. बौद्ध और जैन धर्मस्थल और साहित्य तो मुस्लिमों के भारत मे आने से बहुत पहले ही नष्टप्राय हो चुके थे।
हां हिंदू धार्मिक साहित्य यानी चारों वेद, उपनिषद, रामायण के अनेक संस्करण, महाभारत, और अनेकों पुराण आदि प्रचुर मात्रा मे उपलब्ध थे , और अनेकों हिन्दू मन्दिर देश भर मे मौजूद थे जिन मन्दिरो और धार्मिक साहित्य को मुस्लिम चाहते तो नष्ट कर के अपने धर्म “इस्लाम” के प्रचार का मार्ग प्रशस्त कर सकते थे।
.पर मुस्लिमों के उत्तर भारत मे पहले शासक यानि मोहम्मद गौरी के समय से ही मुस्लिम शासकों ने सर्वधर्म समभाव की नीति अपनाई थी और गौरी ने अपने सिक्को पर हिन्दू देवी लक्ष्मी की आकृति उकेरवाई थी।
एक भाई साहब कहते हैं कि मुस्लिम शासकों ने हिन्दुओं का तलवार के बल पर जबरन धर्म परिवर्तन करवाया गया।
लेकिन न तो ये भाई लोग इस्लाम को समझते हैं कि जो एकमात्र ऐसा धर्म है जिसमें जबरन धर्मान्तरण की मनाही है … वरना तलवार के दम पर धर्म परिवर्तन कराने के लिये 800 साल कम नही थे।
और न हिन्दू धर्म त्यागकर मुस्लिम बन गए हमारे पूर्वजों के बारे मे ये भाई कुछ जानते हैं।
धर्म के प्रचार प्रसार को लेकर इस्लाम कभी धर्मातुर होना नहीं सिखाता, इतिहास के कुछ तथ्यों के गलत अर्थ लगाकर भारतीय मुस्लिम शासकों पर जबरन धर्मान्तरण के आरोप यूं ही गढ़ लिए गए हैं।
लेकिन जब भारतीय मुस्लिम शासकों का इतिहास पढ़ें तो पता चलता है कि मुस्लिम शासकों ने किसी भी अन्य धर्म के शासक की अपेक्षा सबसे ज्यादा खुले दिल से दूसरे धर्मों के रीति रिवाजों को न सिर्फ आज़ादी दी बल्कि खुद उन रीति रिवाजों मे खुलकर भाग भी लिया।
तुगलक ने जमकर होली खेली तो मुगलों ने दीवाली, और पारसी त्योहार नवरोज़ जमकर मनाए… अकबर तो बाकायदा अपने महल मे लक्ष्मी गणेश की पूजा भी करवाता था, और इस्लाम मे अनुमति न होने के बावजूद पूजा मे भाग भी लेता था ..अरे भाई जोधा बाई जैसे आई थी अकबर के महल मे वैसे ही तो रहती थी न एक लल्ला भी जना शेखू !! ……. बहरहाल।
मोहम्मद गोरी ने अपने राज्य के सिक्कों पर देवी लक्ष्मी की आकृति उकेरवाई, तो अकबर ने राम और सीता जी की अवध और आन्ध्र के नवाबों, रूहेलखण्ड के शासकों, टीपू सुल्तान व सभी मुगल बादशाहों ने कई हिन्दू मन्दिरो व अन्य धर्मों के धर्मस्थल बनवाने मे भरपूर सहयोग दिया …
और मुगलों ने हिंदू धार्मिक साहित्य, जैसे रामायण, महाभारत, गीता आदि का तुर्की और फारसी आदि मे अनुवाद कर के उसे देश विदेश तक पहुंचाया…. कहाँ गया मुस्लिमों का धर्म को लेकर पागलपन ???
आज भारत मे इतनी भारी संख्या मे हिंदू इसीलिए हैं, क्योंकि 800 साल के अपने शासनकाल मे मुस्लिम शासकों ने हिन्दुओं या अन्य धर्मावलम्बियों को धर्मान्तरण के लिए कभी मजबूर नहीं किया।
हां इसी मुस्लिम शासनकाल मे हम जैसे अनेकों हिन्दुओं ने इस्लाम स्वीकार किया था तो उसके पीछे हिंदू धर्म की जटिल जाति व्यवस्था यानी मनुस्मृति के बरअक्स इस्लाम की वैश्विक बंधुत्व की भावना का सम्मोहन था, मुस्लिम संतों का प्रभाव था, और इस्लाम की व्यावहारिक शिक्षाओं के प्रति आकर्षण था …. न कि किसी तलवार का भय…
मुस्लिमों ने किसी गैरधर्म की पवित्र पुस्तकों को नष्ट किया हो ऐसा कहीं लिखा नहीं मिलता उल्टे इन्हीं मुसलमानों ने दूसरे धर्म (हिन्दू धर्म, क्योंकि बौद्ध साहित्य उस समय भारत मे न के बराबर उपलब्ध था ) की धार्मिक किताबों का विदेशी भाषाओं (फारसी तुर्की आदि) मे अनुवाद कर के भारतीय धर्म के प्रचार प्रसार मे सहयोग ही किया।
मुगलकाल मे ही महाभारत का तुर्की और फारसी मे नकीब खान और बदायूंनी द्वारा अनुवाद किया गया, बदायूंनी ने रामायण का भी फारसी मे अनुवाद किया। हरिवंश पुराण का मौलाना शेरी ने, भगवद् गीता का दारा शिकोह ने, राज तरंगिणी का मुल्ला शेख मुहम्मद ने अनुवाद किया।
इसके अतिरिक्त सिंहासन बत्तीसी, नल दमयंती, पंचतन्त्र और लीलावती का भी तुर्की फारसी आदि मे मुगलकाल मे ही अनुवाद किया गया जिन्होंने विदेशों मे भारतीय संस्कृति का विज्ञापन करने का काम किया था।
दूसरी ओर इस बात को भी नहीं भूलना चाहिए कि तुलसीदास जी ने रामचरित मानस, और मीराबाई व सूरदास ने कृष्ण भक्ति के पद मुगलकाल व मुस्लिम शासकों के शासन के भीतर ही लिखे, जिनका धार्मिक तानाशाही के दौर मे लिखे जाना और सुरक्षित रह जाना बिल्कुल असम्भव था।
फिर मुस्लिमों के आने से पहले के अनेकों मन्दिर जैसे कैलाश मन्दिर, खजुराहो के मन्दिर, कोणार्क का सूर्य मन्दिर, भुवनेश्वर का लिंगराज मन्दिर, पुरी के जगन्नाथ मन्दिर आदि जैसे अनेकों मन्दिर आज भी सुरक्षित मिलते हैं।
यदि मुस्लिम मन्दिर तोड़ने ही भारत आए थे तो इन्हें तोड़ा क्यों नहीं …. बल्कि इतिहास तो ये बताता है कि उत्तर भारत के तीर्थ नगरों मे सर्वाधिक मन्दिरो का निर्माण तो मुस्लिम शासकों के सहयोग से ही हुआ …. यानी जिन्हें मन्दिर तोड़ने वाला प्रचारित किया गया है उन्होंने भी मन्दिर बनवाए थे।
इसलिए मुस्लिम अपने धर्म का प्रचार और अन्य धर्मों का दमन करने की मानसिकता से भरे हुए थे मुझे इन आरोपों मे सच्चाई नही बल्कि आपकी साजिश ज्यादा नजर आती है।
आपने शासकों का इतिहास तो लिखा लेकिन आप शोषितो का इतिहास लिखना भूल गए।
आपने वैदिक साहित्य में भगवान से लेकर राक्षस तक का इतिहास लिखा लेकिन डायनासोर भूल गए। आपने वैदिक साहित्य में राक्षस रावण की लंका लिखी वानरो द्वारा बनाया हुआ राम सेतु पुल लिखा
लेकिन सिंधु घाटी सभ्यता लिखना भूल गये।
21 वी सदी में आपके जूठे इतिहास का नगाड़ा बजा बजा कर फटना तय है...!!!
(जय भीम नमो बुद्धाय जय विद्रोही रविदास जी)
अंधविश्वास भगाओ
आत्मविश्वास जगाओ
सभी साथियों से निवेदन है कि आस्था से थोड़ा आगे जाकर अपना भी दिमाग चलाए और पाखंडवाद व ब्राह्मणवाद का पर्दाफाश करे।
पहले जानो फिर मानो, अंधभक्त ना बनो।
सबेरा और उजाला तब नहीं होता जब सूर्योदय होता है, उसके लिए आंखें भी खोलनी पडती है।
आप ने इसे पढ़ने के लिए समय दिया उसका बहुत बहुत धन्यवाद...!!!
विद्रोही सागर अम्बेडकर...!!!
जुड़े रहे तो अपना इतिहास जानोगे।
बिखर गए तो खाक छानोगे।
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