नागपूजा या बुद्ध पूजा
नागपुजा वास्तव में बुद्धपुजा हैं|
नाग का अर्थ हाथी भी होता है और हाथी बुद्ध के जन्म का प्रतीक है| बुद्ध के बोधिस्थान (विहार) को उरुवेला कहते हैं, जिससे वेरुल, वारुळ शब्द बने हैं और नाग के घर को भी वारुळ कहते हैं| वेरुल (एलोरा) की बौद्ध गुफा प्रसिद्ध है|
वारुळ के अंदर नागराजा के सिर पर मणि रत्न होता है ऐसा लोग मानते हैं, जो वास्तव में बुद्ध का धम्मरत्न (धम्म का मणि) है|
नागपंचमी के दिन लोग नागरुपी बुद्ध की पुजा करते हैं और नाग को दुध तथा खिर खिलाते हैं| बौद्ध परंपरा में खिर अत्यंत महत्वपूर्ण है और बुद्ध को ज्ञानप्राप्ति के पहले सुजाता ने खिर खिलाई थीं| इसलिए नागपंचमी के दिन लोग बौद्ध भिक्षुओं को अर्थात नागों को खिर खिलाते हैं|
नागवंशी बौद्धों ने संपुर्ण दुनिया में बुद्ध का धम्म फैलाया था इसलिए धरती नाग के फन पर खडी़ हैं ऐसी कहावत बनीं| बौद्ध भिक्षु अपने साथ नागदंड (धम्मदंड) रखते थे जिसे काडुशियस कहते हैं|
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