नाग पँचमी 👇👇

नागपंचमी का संबंध रेंगने वाले *नाग* (सर्प) से नहीं है। लेकिन भारत में 'नाग' यह पाँच शक्तिशाली *"नागराजवंश"* का प्रतीक है। नाग पंचमी तब से मनाया जाती है जब से भारत के कोने कोने में नाग वंश के राजाओं ने बौद्ध सभ्यता के प्रति अपना पूरा योगदान दिया उन्हीं में से पाँच सर्वश्रेष्ठ नागराज.....
१•  *शेषदात नाग* 
२• *नागराजा वासुकी*
३• *नागराजा तक्षक*
४• *नागराजा कर्कोटक* 
५• *नागराजा ऐरावत*
इन महान राजाओं के याद में यह दिन मनाया जाता है।
यह नागवंश के राजा भगवान बुद्ध के अनुयाई व बौद्ध धर्म के प्रचारक थे। उनका साम्राज्य भारत, यूनान ,मिश्र, चीन, जापान आदि देशों में भी रहा है। 

राजा शेषनाग का पूरा नाम शेषदात नाग था। उनके पूरे नाम की जानकारी हमें ब्रिटिश म्यूजियम में रखे सिक्कों से मिलती है।

शेषनाग ने विदिशा को राजधानी बनाकर 110 ई.पू. में शेषनाग वंश की नींव डाली थी।

शेषनाग की मृत्यु 20 सालों तक शासन करने के बाद 90 ई. पू. में हुई। उसके बाद उनके पुत्र भोगिन राजा हुए, जिनका शासन – काल 90 ई. पू. से 80 ई. पू. तक था।

फिर चंद्राशु ( 80 ई. पू. – 50 ई. पू. ) , तब धम्मवर्म्मन ( 50 ई. पू. – 40 ई. पू. ) और आखिर में वंगर ( 40 ई. पू. – 31ई. पू. ) ने शेषनाग वंश की बागडोर संभाली।

शेषनाग की चौथी पीढ़ी में वंगर थे। इस प्रकार शेषनाग वंश के कुल मिलाकर पाँच राजाओं ने शासन किए। इन्हीं पाँच नाग राजाओं को पंचमुखी नाग के रूप में बतौर तथागत बुद्ध के रक्षक मुंबई की कन्हेरी की गुफाओं में दिखाया गया है।

नागराज *तक्षक* ने ही विश्व प्रसिद्ध *तक्षशिला विश्वविद्यालय* की स्थापना की थी। *प्लेटो, अरस्तू* जैसे दार्शनिकों ने यहीं अध्ययन किया था।
*नागराजा करकोटक* रावी नदी के प्रदेश में विशाल राज्य धा।

*नागराजा ऐरावत* भंडारा प्रांत में (पिंगाला) स्थित आज भी *पिन्गालाई* एरीया नाम से पहचाना जाता है।
साथ ही साथ नागवंशी योद्धाओ मे पदम्, कवल, ककोटिक,अस्तर, शंखपाल,कालिया और पिंगल नागवीर प्रसिद्ध है। 

इन पाँचों नागवंशीय राजाओं के गणतंत्र राज्य की सीमाएँ एक दूसरे से सटी हुई थीं। पांचों नागराजों की मृत्यु के बाद नागा कुल के लोग उनकी याद में हर साल नागराज स्मृति अभिवादन को *नागपंचमी* के रूप में मनाते थे।

वैदिक यज्ञवंशीय ब्राह्मणों की कलम ने नागवंशीय राजा को एक रेंगते हुए साँप में बदल दिया। श्रावण मास के महत्व से नागपंचमी के लिए आवश्यक *'नाग-नरसोबा'* का चित्र कागजपर छपवाकर ,उस कागज़ की बिक्री हुई। धीरे-धीरे यह प्रयोग सफल होने पर छोटे-छोटे किताब छापे गये इन किताबों कि बिक्री भी होने लगी। 

आर्थिक गरीबी के कारण बहुजन समाज इन कागज के  नाग नरसोबा प्रवृत्ति की ओर आकर्षित हुए, क्योंकि वैदिक पंडित बहुजनों के मन में यह बात बैठाने में सफल रहे कि इन कागज के चित्र की पुजा करने से पुण्य मिलता है। परिणामस्वरूप *"नाग-नरसोबा"* और कुछ किताबें प्रसिद्ध हो गए परिणामस्वरूप *यह पंचमी रेंगते हुये सापों की होगयी और नागराजाओं की पंचमी लुप्त हो गई*

*नाग* यह शब्द *संस्कृत भाषा* में कहीं भी *रेंगने वाले साँप* के लिए नहीं आया। संस्कृत में *नाग* शब्द का अर्थ *हाथी* होता है। और  हाथी के प्रतीक को बौद्ध संस्कार संस्कृति में पवित्र स्थान है इसलिए *हाथी* और *नागपंचमी* का निश्चित ही गहरा संबंध है।

यह संस्कृत का श्लोक.....

नागोभातिमदेनकंजलरूहैः
नित्योत्सवैःमंदिरम् ...।

अर्थात.....

जैसे हाथी मतवाले होने के बाद सुंदर दिखता है, वैसे ही कमल-पुष्पो से भर तालाब खुबसूरत के और सुंदर दिखते हैं... इस *संस्कृत* श्लोक में *नाग* शब्द का प्रयोग *हाथी* के लिए किया गया है...
संस्कृत में सांप को पर्यायी शब्द *भुजंग, सर्प, तक्षक* ऐसा कहा जाता है।

जैसे......

*तक्षकस्स* विषं दन्ते
मणिनाभूषितः *सर्पः* किमसौ न भयंकरः
इस श्लोक में देखिए *सर्प, तक्षक* यह शब्द आये है। 

*आज भले ही नागपंचमी को रेंगने वाले सांप के नाम से जाना जाता है, लेकिन इसके बारे में ऐतिहासिक स्थिति अलग है। इसलिए बहुजनों को धार्मिक दायरे से बाहर आकर नागपंचमी को उत्सव के रूप में नहीं मनाना चाहिए बल्कि बहुजन नागवंशीय राजाओं की स्मृति को नमन करना चाहिए* 
🙏🙏🙏🙏💐

Comments

Popular posts from this blog

जब उत्तर प्रदेश बना उत्तम प्रदेश

अपने ही गिराते हैं नशेमन पे बिजलियाँ

बोधिसत्व सतगुरु रैदास