क्या बहिन जी सच में डरती हैं।

ताज हेरिटेज कॉरीडोर मामला - 

सन 1995 में मायावती पहली बार भाजपा के सहयोग से मुख्यमंत्री बनी ।‌उसके पहले मुलायम सिंह यादव बसपा के सहयोग से मुख्यमंत्री बने थे ।‌ लेकिन उनसे दलितों पर  हो रहे अत्याचार रूके - रूक नहीं रहे थे । मुलायम सिंह के कार्यकाल में इलाहबाद के दौना में दलित महिला को निर्वस्त्र कर पूरे गांव में घुमाया गया था ।‌ यह उस समय की बहुचर्चित कांड था ।‌ दौना गांव में एक दलित - महिला को कुर्मी जाति के लोगों ने निर्वस्त्र कर पूरे गांव में घुमाया था । यह घटना 21 जून 1994 की है ‌ । बसपा ने तब मुलायम सिंह यादव को पहली चेतावनी दी थी कि काम - काज सुधार लो नहीं तो हम समर्थन वापस भी ले सकते हैं । बसपा के दबाव में दौना गांव के अपराधियों को ऑफ द रिकार्ड लोटा - लोटा कर लाठी से सोटा गया और बहुत कड़ा केस बनाया गया । बीस साल बाद भी जज वकार अहमद अंसारी ने अभियुक्तों को 18 - 18 साल की कैद की सजा दी ।‌

यह था बसपा का इकबाल । उसके बाद भी मुलायम सिंह  यादव नहीं सुधरे । पंचायत चुनाव में जमकर धांधली , बूथ कैप्चरिंग और गुंडा - गर्दी कर चुके थे । इसके पहले कांसीराम ने तीन - तीन बार चेतावनी दे चुके थे ।‌ सुधर जा - सुधर जा । लेकिन मुलायम सिंह यादव क्यों मानने लगे ‌‌। सत्ता उनके हाथ में और वे मनमर्जी चला रहे थे ।‌डेढ़ साल में उन्होंने ऐसा कुछ काम ही नहीं किया जो पब्लिक के हित में हो । 

तब बसपा क्या करती ? हाथ पर हाथ धरे सरकार का चुपचाप समर्थन करती या अपनी राजनीतिक शक्ति का प्रयोग करते हुये सत्ता परिवर्तन करती ? 

बसपा अगर मुलायम सिंह को सपोर्ट करते रहती  तो उसे क्या मिलता ? जाहिर है कुछ नहीं ।‌ अगर समर्थन वापस लेता तो मुलायम सिंह ठहरे घाघ आदमी । वे पार्टी को तहस नहस कर सकते थे । उस समय बसपा के पास कोई विकल्प नहीं था मरने के सिवा । उसकी स्थिति करो या मरो जैसा हो गया था ।‌ 

बसपा ने वहीं किया जिसे उसे करना चाहिये था ।‌ उसने खुद के मुख्यमंत्री बनने की शर्त पर मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा से बिना शर्त समर्थन मांगा । भाजपा और संघ को इस बिन मांगी मुराद पर क्या एतराज होता ।‌ उन्होनें तुरंत हामी भर दी । 3 जून 1995 को भाजपा के समर्थन से बसपा का मुख्यमंत्री मायावती जी बन गई । यह सरकार पूरे पांच महीना चली ।‌ इस दौरान बसपा ने खुद को स्थापित कर लिया था और भाजपा यूपी के राजनीति में नीचे पायदान पर पहुंच गयी थी ।‌

संघ ने माना था कि मायावती को समर्थन देना संघ की बड़ी भूल थी । भूल क्यों थी ? 

* पहला विवाद पेरियार मेला को लेकर हुआ था । कांसीराम ने भाजपा के समर्थन से सरकार बनाने के बाद तुरंत ऐलान किया था कि वे लखनऊ में पेरियार मेला आयोजित करेंगें ।‌ संघ के लिए यह आत्म हत्या करने के बराबर था । क्योंकि भाजपा जय श्री राम की राजनीति करती थी और पेरियार जय श्रीराम को जूता से पीटते थे ।‌ खूब विवाद हुआ ‌ । इस विवाद का फायदा हुआ कि उतर भारत के दलित - पिछड़े जान गये कि पेरियार कौन थे ।‌ रोज अग्र लेख और संपादकीय लिखे जा रहे थे ।‌ भाजपा अपने विभिन्न माध्यम के द्वारा खूब उत्पात मचाने की कोशिश की लेकिन कांसीराम को डिगा नहीं सके । अंत में भाजपा ने गिड़गिड़ा कर प्रस्ताव रखा कि आप पार्टी के तौर पर पेरियार मेला लगाएं ,लेकिन मुख्यमंत्री के तौर पर मायावती को मत शामिल करें ।‌ कांशीराम इस  रिक्वेस्ट को भी रिजेक्ट कर दिये ।‌ मायावती उस मेला में चीफ मिनिस्टर के हैसियत से शामिल हुई ।‌ भाजपा का मुंह टुइंया सा हो गया । इन सारी चीजों को देश का हर नागरिक देख रहा था ।‌ सवर्ण वर्ग में बसपा के इस हिम्मत के प्रति जहां आक्रोश जन्म ले रहा था ,वहीं दलित - पिछड़े कि हिम्मत बढ़ रही थी ।‌वह चौंधिआये आंखो से देख रहा था ऐसे कैसे हो सकता है ।‌

* दूसरा विवाद तब हुआ जब मायावती ने डा अंबेडकर पार्क की नींव रखी ।‌ लोगों को समझ में नहीं आ रहा था कि यह क्या हो रहा है ।‌ भाजपा तो बुरी तरह फंस गयी थी ।‌ न वह समर्थन वापस ले सकती थी ,न समर्थन जारी रख सकती थी ।

* तीसरा विवाद हुआ संत रविदास नगर को लेकर ।‌ बसपा बनारस  को ही संत रविदास नगर घोषित कर रही थी ।‌लेकिन भाजपा और संघ  वाले को पता चला कि यह तो गजब हो जायेगा । हमारा संस्कृति केंद्र ही बदल जायेगा ।‌ बनारस ब्राह्मणों की आत्मा है ,वह बदल जायेगा तो ब्राह्मण सूखले मर जायेगा ।‌ बिजेपी के वरिष्ठ नेता फिर कांशीराम को घेरा । कहा ,महराज ऐसा मत कीजिये ,हम तो मर जायेंगें ।‌ आप दूसरा जिला बनाकर उसका नामकरण कर दीजिये ,लेकिन बनारस को मत बदलिये । अबकी बार यहीं हुआ । बनारस से काट कर एक नया जिला बना और उसका नाम संत रविदास नगर हुआ ।‌

* चौथा विवाद हुआ कि विश्व हिंदू परिषद के संत राम जन्म भूमि के परिक्रमा करना चाहते थे ।‌ उनका एक डेलिगेट मायावती से मिला ।‌ इसे बहुप्रचारित किया गया क्योंकि यह सिंसेटिव मामला था ।‌ अब लोगों को लगा मायावती फंस जायेगी ।‌ लेकिन मायावती ने विश्वहिंदू परिषद से कहा कि आप जन्म भूमि तो छोड़ दो उसके दो कोस के एरिया में नजर भी आ गये तो पिछवाड़ा तोड़ दिया जायेगा ।‌ संघ का उस समय भी किरकिरी हुई ।‌उसने मायावती के हरेक शासन में यह मसला कभी उठाया ही नहीं ।

मायावती का पहला कार्यकाल बहुत शानदार था । वह जहां भी जाती एकाध डी एम- एस पी  या तो संस्पेंड हो जाते या ट्रांसफर ।‌ उन्होनें जो जमीन सरकारी है वह जमीन हमारी है के सिद्धांत के तहत 3.5 लाख भूमिहीन को जमीन दिया और केवल कागज पर नहीं वास्तविक कब्जा दिलाया ।‌ ये सारे काम केवल पांच महीने में हुआ ।‌ उनके इस त्वरित न्याय और एक्शन पर बाद में एक फिल्म बनी ।‌

लेकिन उसमें 'नायक ' बदल दिया गया और वह नायक महिला से पुरूष हो गया ।‌ यह है चिंतन को हड़प लेना ।‌

हम ताज कारीडोर की बात कर रहे थे ।‌ आपको समझना होगा ताज कारीडोर मामला है क्या ? 

* यह ताजमहल से आगरा फोर्ट तक एक सुंदर गलियारे बनाने की बात थी । इस तीन किलोमीटर के दायरे में सुंदर सड़क बनती ,मॉल होते , एम्यूजमेंट पार्क होता ,ग्रिनरी विकसित किया जाता । यह 170 करोड़ का प्रोजेक्ट था ।‌

* इसकी पहली किस्त 17 करोड़ की रीलिज हुई थी ।‌ 

* अब भाजपा को यह बात क्यों पसंद आयेगी कि वह जिसे तेजोमहल कहती है और उसे इतना सुंदर बना दिया जाय कि वह पहले से सात अजूबों में एक है , नये ढंग से बनने पर तो उसका और सम्मान बढ़ जाता ।‌

* उस समय भाजपा समर्थित बसपा की सरकार थी । दोनों में छ: छ: महीने का करार हुआ था ।‌ छ : महीने आप सरकार चलाएंगे तो छ: महीने हम ।‌ बसपा ने अपना टर्म पूरा कर लिया था ,भाजपा की बारी आयी तो उसने समर्थन वापस ले लिया था ।

* उस समय केंद्र में बिजेपी की सरकार थी ।‌ समर्थन वापस लेने से बिजेपी की बहुत किरकिरी हुई थी ।‌जगमोहन उस समय पर्यावरण मंत्री थे ।‌उस समय पर्यावरण और पुरातत्व मंत्रालय दोनों ने इस प्रोजेक्ट में अड़ंगा डालने की कोशिश किये थे ,लेकिन इस ताज कोरिडोर को रोकना उनके वश का बात नहीं था ।‌

* तब एक भाजपाई अजय अग्रवाल जो वकील था ,ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली कि इस ताज कोरिडोर में बहुत घोटाले हुये हैं और इसका सीधा फायदा मायावती को हुआ है ।  इसकी सी बी आई जांच कराया जाय ।‌

* उस समय केंद्र में  बिजेपी की सरकार थी ‌कोर्ट ने एफ  आई आर कर जांच का आदेश दिया ।‌फिर तो सरकार को मनमानी करने का लाइसेंस मिल गया । 

* सी बी आई ने आनन - फानन में एफ आई आर किया और जांच में जुट गयी ।‌

* जांच में उन्हें घंटा कुछ नहीं मिला ।‌ चार साल तक जांच करते रहे ,लेकिन एक बार भी मायावती से पूछ ताछ नहीं की क्योंकि एफ आई आर ही बेबुनियाद था ,जांच कहां से करते ?  कोर्ट ने दो बार सी बी आई को फटकार लगाया कि जल्दी - जल्दी जांच कर रिपोर्ट दाखिल करें । लेकिन सी बाई हाथ पर हाथ धरे बैठी रही । 

* जब मायावती 2007 में पूर्ण बहुमत से मुख्यमंत्री बनी तो फिर सी बी आई सक्रिय हुआ ।‌ वह राज्यपाल टी राजशेखर के पास पहुंचा कि उसे मुख्यमंत्री पर मुकदमा की इजाजत चाहिये ।‌ राज शेखर ने कहा पहले आप सबूत लाए ,तब हम आदेश देंगें ।‌ सी बी आई के पास सबूत कहां था कि वे देते । 

* तब तक खूब मिडिया ट्रायल हुआ । ताज कोरिडोर के नाम पर मिडिया झूठी - झूठी कहानी गढंकर पब्लिक को सुनाती रही ।

* अंत में सुप्रीम कोर्ट ने सबूत के अभाव में एफ आई आर ही क्वैश कर दिया ।‌

सबको छुट्टी मिल गया  ।‌  मामला कुल मिलाकर यह हुआ कि वह प्रोजेक्ट रसातल में चल गया । यह अगर सफल हो जाता तो आगरा की तस्वीर बदल जाती ।‌

अब आगरा की तस्वीर बदलने के बजाय लोगो के जेहन में मायावती की तस्वीर बदल गयी । सी बी आई उनके नाम के साथ जुड़ गया । भले ही एफ आई आर क्वैस हो गया लेकिन लोग आज भी कहते हैं मायावती सीबीआई से डरती है ! 
मूर्ख कहीं के__________

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