होला होली होलिका
*होलिका दहन ब्राह्मणी व्यवस्था में नारी के प्रति क्रूरता का प्रतीक है*
*हिन्दू धर्म रक्षक बताएं होलिका हिन्दू थी कि नहीं?*
*यत्र नार्यस्तु पूजयंते रमंते तत्र देवता* *का जाप करने वाले होलिका दहन पर मुंह क्यों नहीं खोलते?*
*होलिका दहन (नारी दहन) पर भावना आहत गैंग की भावनाएं क्यों नहीं आहत होतीं?*
*ब्राह्मण धर्म में नारी को गुलाम बनाने का षड्यंत्र-*
महा बृष्टि चलि फूटि किआरीं! जिमि सुतंत्र भएं बिगरहि नारी!!
नारि सुभाव संत सब कहहीं!
अवगुन आठ सदा उर रहहीं!!
विधिहुं न नारि हृदय गति जानी!
सकल कपट अघ अवगुन खानी!
अधम ते अधम अधम अति नारी!
तिन्ह मॅंह मैं मतिमंद अघारी!!
ये तुलसी दास दूबे रचित रामचरितमानस की नारियों के प्रति उस दृष्टिकोण को दर्शाती हुई कुछ चौपाइयां हैं जिस रामचरितमानस को आज तक ब्राह्मणी छावनी ने धर्म ग्रंथ कहकर प्रचारित किया और आज भी अपनी उसी भूमिका पर कायम हैं, रामचरितमानस ही नहीं सारे ब्राह्मणी ग्रंथों में महिलाओं के प्रति उनका यही दृष्टिकोण है क्योंकि उन्हें यह बात पता है कि -
नारी गुलाम हुई तो बच्चे गुलाम होंगे, बच्चे गुलाम होंगे तो परिवार गुलाम होगा , परिवार गुलाम होगा तो समाज गुलाम होगा, समाज गुलाम हुआ तो देश गुलाम होगा. गुलामी का यही नियम है इसीलिए ब्राह्मणों ने नारी को गुलाम बनाने के लिए उन्हें अपने ग्रंथों में दोयम दर्जे का नागरिक बनाकर उन्हें पूजा पाठ व्रत उपवास अंधविश्वास के गर्त में ढकेल दिया वास्तव में उनके सारे ग्रंथ नारी और शूद्रों को गुलाम बनाने के उद्देश्य से ही लिखे गए.
हर ग्रंथ में उन्हें हतबल, बेबस, लाचार , स्वाभिमान शून्य, अपमानित, प्रताड़ित, दीन हीन, भयभीत एवं परावलंबी ही दिखाने का प्रयास किया गया है,
ब्राह्मणी कहानियों में नारी पात्र को चाहे रामायण की सीता हो उसे राम की अनुचरी के रूप में ही दिखाया गया है सीताहरण, लंका विजय अयोध्या वापसी और उसे गर्भावस्था में जंगल में छोड़ दिया जाता है और अंततः धरती में समाना अर्थात अपना जीवन समाप्त करना पड़ता है. सीता का कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं.
महाभारत में द्रोपदी का चरित्र चित्रण पांच पांडवों से उसका विवाह युधिष्ठिर द्वारा उसे जुए में हारना, चीरहरण, कृष्ण की मदद से बचाव , वनगमन, महाभारत की लड़ाई पूरी कहानी में पांडवों की अनुचरी कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं.
मनुस्मृति में हर वर्ण की नारी को शूद्र माना गया है और उनको भी शिक्षा संपत्ति शस्त्र सम्मान से वंचित रखने का प्रावधान है.
एक कहानी में ब्राह्मण जब विद्योत्तमा से शास्त्रार्थ में हार जाते हैं तो उसे इनाम देने के बजाय षड्यंत्र करके उसकी शादी एक मूर्ख कालिदास से करा देते हैं.
गौतम ॠषि की पत्नी अहिल्या के साथ वेश बदलकर इंद्र बलात्कार करता है गौतम ॠषि के शाप से वह निर्दोष नारी पत्थर बन जाती है अंत में राम पैर से छूकर उसका उद्धार करते हैं.
कृष्ण की नायिका राधा की सिर्फ यही भूमिका है कि वह कृष्ण से अथाह प्रेम करती है. कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं.
कृष्ण की पत्नियों की चर्चा सिर्फ उनकी पत्नी के ही रूप में.
सृष्टि का सृजन करने वाली वास्तव में नारी ही है किंतु ब्राह्मणों के दिमाग से जितने भी भगवान पैदा हुए सब के सब पुरुष ही इन्होंने एक भी महिला ईश्वर की कल्पना तक नहीं की.
ये सोच ही नहीं सकते की ईश्वर नारी भी हो सकती है.
इनके द्वारा अनेक ग्रंथों में सतियों का खूब महिमामंडन किया है जिसके फलस्वरूप इस देश में मानवता को शर्मसार करने वाली सती प्रथा चल पड़ी जिसे अंग्रेजों को कानून बनाकर रोकना पड़ा.
देवदासी प्रथा के विरोध में कानून के बावजूद यह प्रथा दक्षिण भारत के कुछ क्षेत्रों में आज भी दिखाई देती है.
वास्तव में मातृसत्तात्मक भारतीय समाज को ब्राह्मण गुलाम बना ही नहीं सकते थे इसीलिए सतत नारी के विरुद्ध कथा कहानियाँ लिख लिखकर , सामाजिक नियम कायदे बनाकर और उन्हें राजाओं के माध्यम से लागू करवाकर इस समाज को पितृसत्तात्मक समाज बनाने का सफल षड्यंत्र किया जिसके कारण भारतीय नारी निरीह और लाचार पुरुषों पर आश्रित , सदा भयभीत दीन हीन प्राणी मात्र बनकर रह गई जिससे ब्राह्मणों के अंधविश्वास, पाखंड, व्रत उपवास, स्वर्ग नर्क, मोक्ष उद्धार की खेती लहलहा उठी.
आज देश आजाद होने एवं संविधान में बराबरी का दर्जा मिलने के बावजूद इसी ब्राह्मण धर्म के कारण भारतीय महिलाओं की जितनी तरक्की होनी चाहिए थी नहीं हो पाई. और जब तक महिलाएं इस ब्राह्मणी षड्यंत्र को नहीं समझेंगी हो भी नहीं पायेगी.
इसलिए सभी प्रगतिशील भारतीयों का यह कर्तव्य है कि देश की आधी आबादी महिलाओं को इस ब्राह्मणी धर्म के मकड़जाल से बाहर निकालने का प्रयास करें.
*और होलिका दहन जो एक भारतीय नारी को जलाकर (भले प्रतीकात्मक ही सही)जश्न मनाने का ब्राह्मणी उत्सव है. बल्कि यों कहें कि फसलों के तैयार होने पर पारंपरिक रूप से मनाये जाने वाले हमारे वसंतोत्सव में यह विकृति घुसेड़कर किया जाने वाला विद्रूपीकरण है उस होलिका दहन में भाग न लेकर अपनी जागरूकता का परिचय दें.*
Sagar Gautam Nidar ✍️
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