दादा संत गाडगे बाबा ✍️
*वो थे इसलिए आज हम हैं*
समता समानता का पाठ पढ़ाने वाले बहुजन महानायक भेदभाव पाखंडवाद के खिलाफ आजीवन संघर्ष करने वाले महान सामाजिक क्रांतिकारी संत गाडगे बाबा महाराज जी के जयंती के अवसर पर आप सभी को बहुत-बहुत बधाई 💐💐
संत गाडगे बाबा कहते थे शिक्षा बड़ी चीज है पैसे की तंगी हो तो खाने के बर्तन बेच दो, औरतों के लिए कम दाम के कपड़े खरीदो,टूटे-फूटे मकान में रहो पर बच्चों को शिक्षा दिए बिना ना रहो।
वे अपने उदबोधन में शिक्षा पर उपदेश देते समय डॉक्टर अंबेडकर को उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत करते हुए कहते थे कि देखा बाबा साहब अंबेडकर अपनी महत्वाकांक्षा से कितना पढ़े। शिक्षा कोई एक ही वर्ग की ठेकेदारी नहीं है। एक गरीब का बच्चा भी अच्छी शिक्षा लेकर ढेर सारी डिग्रियां हासिल कर सकता है। बाबा गाडगे नहीं अपने समाज में शिक्षा का प्रकाश फैलाने के लिए 31 शिक्षण संस्थाओं तथा 1 सौ से अधिक अन्य संस्थाओं की स्थापना की,बाद में सरकार ने इन संस्थाओं के रखरखाव के लिए एक ट्रस्ट बनवाया।
गाडगे बाबा डॉक्टर अंबेडकर से किस हद तक प्रभावित थे,इसके बारे में चर्चा करते हुए संभवत संघ लोक सेवा आयोग के प्रथम दलित अध्यक्ष डॉक्टर एम.एल. सहारे ने अपनी आत्मकथा "यादों के झरोखे" में लिखा है कि बाबा साहेब आंबेडकर से गाडगे बाबा कई बार मिल चुके थे। बाबा साहब और संत गाडगे बाबा ने साथ तस्वीर खिंचवाई थी।
आज भी कई घरों में ऐसी तस्वीरें दिखाई देती हैं। संत गाडगे बाबा ने डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर द्वारा स्थापित पिपुल्स एजुकेशन सोसाइटी को पंढरपुर कि अपनी धर्मशाला छात्रावास हेतु दान की थी। वे संतो के वचन सुनाया करते थे। विशेष रुप से कबीर, संत तुकाराम,संत ज्ञानेश्वर आदि के काव्यांश जनता को सुनाते थे। हिंसाबंदी,शराबबंदी,अस्पृश्यता निवारण, पशुबलि प्रथा आदि उनके कीर्तन के विषय हुआ करते थे।
आधुनिक भारत को जिन महापुरुषों पर गर्व होना चाहिए, उनमें राष्ट्रीय संत गाडगे बाबा का नाम सर्वोपरि है।बीसवीं सदी के समाज सुधार आंदोलन में जिन महापुरुषों का योगदान रहा है, उन्हीं में से एक महत्वपूर्ण नाम बाबा गाडगे का है।
अगर देखा जाए तो बाबा गाडगे संत कबीर और रैदास की परंपरा में आते हैं । उनकी शिक्षाओं को देखकर ऐसा लगता है कि वह कभी रैदास से बहुत प्रभावित थे। यह संयोग ही है कि संत शिरोमणि रविदास जी महाराज और गाडगे बाबा की जयंती एक ही महीने में पढ़ती है।
संत गाडगे बाबा का जन्म 23 फरवरी 1876 ई को महाराष्ट्र के अमरावती जिले की तहसील अंजन गांव सुरजी के शेगाव नामक गांव में अछूत समझी जाने वाली धोबी जाति के एक गरीब परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम सुखदाई और पिता का नाम झिंगराजी जाडोकर था, बाबा गाडगे का पूरा नाम देवीदास डेबूजी झिंगराजी जाडोकर था। घर में उनके माता-पिता उन्हें प्यार से डेबू जी कहते थे। डेबू जी हमेशा अपने साथ मिट्टी के मटके जैसा एक पात्र रखते थे। इसी में वे खाना भी खाते और पानी भी पीते थे।महाराष्ट्र में मटके के टुकड़े को गाडगा कहते हैं। इसी कारण कुछ लोग उन्हें गाडगे महाराज तो कुछ लोग गाडगे बाबा कहने लगे और बाद में वे संत गाडगे के नाम से प्रसिद्ध हो गए।
*संत गाडगे बाबा का दससूत्री संदेश*
1. भूखे को अन्न दो, स्वच्छता को अपनी आदत बनाओ।
2. प्यासे को पानी पिलाओ।
3. वस्त्रहीन को कपड़ा पहनाओ।
4. दिनों को शिक्षा में मदद करो।
5. बेघरों को आसरा दो।
6. अंध, पंगु,रोगी को दवा दो।
7. दुखी और निराश लोगों को हिम्मत दो।
8. बेकारों को रोजगार दो।
9. पशु-पक्षी सहित सभी जीवों पर दया करो।
10. गरीब युवक-युवती की शादी में सहायता करो।
संत गाडगे बाबा आजीवन सामाजिक अन्याय के खिलाफ संघर्षरत रहे तथा अपने समाज को जागरुक करते रहे। उन्होंने सामाजिक कार्य और जनसेवा को ही अपना धर्म बना लिया था। वे व्यर्थ के कर्मकांडों,मूर्तिपूजा व खोखली परंपराओं से दूर रहे। जाति प्रथा और अस्पृश्यता को बाबा सबसे घृणित और अधर्म कहते थे।
गाडगे बाबा डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर के समकालीन थे तथा उनसे उम्र में 15 साल बड़े थे। वैसे तो गाडगे बाबा बहुत से राजनीतिज्ञों से मिलते जुलते रहते थे लेकिन वे डॉक्टर अंबेडकर के कार्यों से अत्यधिक प्रभावित थे।
गाडगे बाबा की कार्यों की ही देन थी कि जहां डॉक्टर अंबेडकर तथाकथित साधु-संतों से दूर ही रहते थे, वहीं गाडगे बाबा का सम्मान करते थे। वे गाडगे बाबा से समय-समय पर मिलते रहते थे तथा समाज सुधार संबंधी मुद्दों पर उनसे सलाह मशविरा भी करते थे। डॉक्टर अंबेडकर और गाडगे बाबा के संबंध के बारे में समाजशास्त्री प्रोफेसर विवेक कुमार जी लिखते हैं कि आज कल के बहुजन नेताओं को इन दोनों से सीख लेनी चाहिए।
विशेषकर विश्वविद्यालय एवं कॉलेज के पढ़े-लिखे आधुनिक नेताओं को जो सामाजिक कार्यकर्ताओं तथा समाज सुधार करने वाले मिशनरी तथा किताबी ज्ञान से परे रहने वाले बहुजन कार्यकर्ताओं को तिरस्कार भरी नजरों से देखते हैं और बस अपने आप में ही मगरूर रहते हैं। क्या बाबा साहब से भी ज्यादा डिग्रियां आज के नेताओं के पास हैं? बाबासाहेब संत गाडगे से आंदोलन एवं सामाजिक परिवर्तन के विषय में मंत्रणा करते थे। यद्यपि उनके पास किताबी ज्ञान एवं राजसत्ता दोनों थे। अतः हमें समझना होगा कि सामाजिक शिक्षा एवं किताबी शिक्षा भिन्न है और प्रत्येक के पास दोनों नहीं होती। अतः इन दोनों प्रकार की शिक्षा में समन्वय की जरूरत होती है।
संत गाडगे अपने अनुयायियों से सदैव यही कहते थे कि मेरी जहां मृत्यु हो जाए,वहीं पर मेरा अंतिम संस्कार कर देना। मेरी मूर्ति,मेरी समाधि, मेरा स्मारक या मंदिर नहीं बनना। मैंने जो सेवा की है, वही मेरा सच्चाई स्मारक है। जब बाबा की तबीयत बिगड़ी तो चिकित्सकों ने उन्हें अमरावती ले जाने की सलाह दी,किंतु वहां पहुंचने से पहले बलगांव के पास पीढ़ी नदी के पुल पर 20 दिसंबर 1956 को रात्रि 12:20 पर उनका परिनिर्वाण हो गया। यह संयोग ही है कि डॉक्टर अंबेडकर की मृत्यु के 14 दिन बाद ही गाडगे बाबा ने भी जनसेवा और समाज उत्थान के कार्य को करते हुए हमेशा के लिए आंखें बंद कर ली।
जहां बाबा का अंतिम संस्कार किया गया आज वह स्थान गाडगे नगर के नाम से जाना जाता है। मानवता के पुजारी दिनहीनों के सहायक संत गाडगे बाबा में उन सभी संतेचित महान गुणों एवं विशेषताओं का समावेश था जो एक मानवसेवी राष्ट्रीय संत की कसौटी के लिए अनिवार्य है।
*बाबा गाडगे जी को उच्च शिक्षा ना पाने का अंत समय तक दुख रहा इसलिए वे चाहते थे कि बहुजन समाज पूर्ण रूप से शिक्षित हो जाए*
भारतीय समाज में अगर किसी को स्वच्छता के प्रति कहा जाए तो वो संत गाडगे बाबा जी ही हैं। उन्होंने झाड़ू , श्रमदान और पुरुषार्थ को अपना हथियार ही नहीं बल्कि उद्देश्य भी बनाया, जिसको लोगों ने सराहा और अपनाया भी, वह अचानक किसी गांव में पहुंच जाते और वहां झाड़ू से सफाई करने लगते, गांव के लोग उनके पास आकर मदद करने लगते। इस तरह वह एक गांव की सफाई कर दूसरे गांव की ओर निकल पड़ते थे और स्वच्छता का संदेश देते रहते हैं।
आज जब सरकारें तमाम स्वच्छता अभियान चला रही है और उसके लिए करोड़ों रुपए खर्च कर रही है। तब आप कल्पना कर सकते हैं कि संत गाडगे बाबा उस दौर में ही स्वच्छता को लेकर कितने सजग थे।
गाडगे बाबा आजीवन सामाजिक अन्याय के खिलाफ संघर्षरत रहे तथा अपने समाज को जागरूक करते रहे, उन्होंने सामाजिक कार्य और जनसेवा को ही अपना धर्म बना लिया था।
वे व्यर्थ के कर्मकांडों, मूर्ति पूजा व खोखली परंपराओं से दूर रहे। जाति प्रथा और अस्पृश्यता को बाबा सबसे घृणित और अधर्म कहते थे।
आज भले ही वे हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी शिक्षा आज भी प्रासंगिक है, उनकी शिक्षाओं से हमें प्रेरणा लेने की जरूरत है। बाबा के जीवन और कार्य केवल महाराष्ट्र के लिए ही नहीं बल्कि पूरे भारत के लिए प्रेरणा का स्रोत है। वास्तव में संत गाडगे बाबा एक व्यक्ति नहीं बल्कि अपने आप में एक संस्था थे। वे एक महान संत ही नहीं बल्कि एक महान समाज सुधारक भी थे। उनके समाज सुधार संबंधी कार्यों को देखते हुए ही डॉक्टर अंबेडकर ने उन्हें ज्योतिबा फुले के बाद सबसे बड़ा त्यागी, जनसेवक कहा था, जो उचित ही था।
उत्तर भारतीयों का संत गाडगे बाबा से साक्षात्कार मान्यवर कांशीराम साहब ने कराया। वे संत गाडगे बाबा की जयंती एवं परिनिर्वाण दिवस मनाने के लिए धोबी समाज को प्रेरित करते थे।
समस्त बहुजन समाज सामाजिक क्रांति के अग्रदूत परम पूज्य संत गाडगे बाबा जी का कृतज्ञ रहेगा।💐
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