बाबू जगदेव प्रसाद जी
*📝नित्य प्रेरणा-अपनी बात...* 📚🙏
*📜इतिहास के पन्नों से 2 फरवरी📆*
*बाबू जगदेव प्रसाद : जन्मदिन 2 फरवरी. (2.2.1922* -5.9.1974) 🎂🌹🌹🌹
*क्रांति मिसाइल : बिहार लेनिन.*
📰 *2.2.1922 को बिहार के अरवल जिले के कुरहारी ग्राम में पिता प्रयाग नारायण और माता रामकली देवी के यहाँ जगदेव जी का जन्म हुआ था।* ब्राह्मणी सामाजिक व्यवस्था में वह कोरी जाति में जन्मे थे जिन्हें सैनी, कुशवाहा, मौर्या तथा काछी के उपनाम से भी जाना जाता है, जिन्हें ब्राह्मण गुप्त संहिता के अनुसार जंगली और नीच कहकर संबोधित करते हैं। जगदेव बाबू एक शिक्षक के बेटे ही नहीं बल्कि योग्य पिता की योग्य संतान थे। उन्होंने शैक्षणिक क्षेत्र में तीन विषयों में एमए प्रथम श्रेणी में पास किया था।
द्विज शासक जातियों ने जब देखा की उच्चशिक्षा प्राप्त जगदेव प्रसाद ब्राह्मणी व्यवस्था के खिलाफ जंग ए मैदान में कूद पड़ा है और मूलनिवासी बहुजन समाज कहीं उसका हमराही मददगार न बन जाए इससे पहले ही उन्होंने 70 के दशक में बिहार की धरती से संपूर्ण क्रांति का नारा दिया। जिन्होंने बहुजन समाज के साथ सामाजिक अन्याय किया उन्होंने ही सामाजिक न्याय का नारा दिया। संपूर्ण क्रांति के नारे का आम आदमी शिकार हुआ। हकीकतन वह संपूर्ण क्रांति का नारा नहीं था।
*जगदेव बाबू ने कहा-*
"मेरे बाप-दादों से द्विज जाति वालों ने हलवाही करवाई है। मैं उनकी राजनैतिक हलवाही करने के लिए पैदा नहीं हुआ हूँ। यह मुझे कतई स्वीकार नहीं है और न शोषितों को स्वीकार करने के लिए कहूंगा। मैं तमाम काले-कलूटे लोगों को निश्चित नीति के तहत संगठित करूंगा और दिल्ली की गद्दी पर ऐसे ही लोगों को बैठाऊंगा। जिस प्रकार कुत्ता कभी मांस की रखवाली नहीं कर सकता उसी प्रकार देश के द्विज शोषितों, वंचितों और अछूतों का हक हिस्सा नहीं दे सकते। इसलिए उनके नेतृत्व की जगह दबे कुचले शोषितों का नेतृत्व विकसित करना है। भारत में जब तक सामाजिक क्रांति नहीं होगी तब तक आर्थिक क्रांति हो ही नहीं सकती। इस सच्चाई को स्वीकार नहीं करते, वे अव्वल दर्जे के फरेबी और मक्कार हैं।"
जिस प्रकार मिसाइल गाइडेड होती है वह बम के गोले सुनिश्चित स्थान पर फेंकती है, उसका निशाना कभी खाली नहीं जाता। उसी प्रकार जगदेव बाबू का निशाना मिसाइल की तरह ब्राह्मणवादी मूल्यों पर होता था क्योंकि जगदेव बाबू राष्ट्रपिता फुले, गौतम बुद्धा और डॉ.अंबेडकर के विचारों से गाइडेड थे। इसलिए नारा बना।
"बाबा साहब का सपना ही, जगदेव तुम्हारा नारा है।
सौ में नब्बे शोषित है, नब्बे भाग हमारा है।"
सामाजिक अन्याय पर पर्दा डालने के लिए द्विजों ने सत्ता का सहारा लिया। जगदेव बाबू सत्ता प्राप्त करना चाहते थे, अपने बहुजन समाज के सहारे। वे अपने भाषणों में हमेशा इस बात को दोहराते थे।
"शोषितों का राज, शोषितों के लिए और शोषितों के द्वारा हम चाहते हैं।"
वे डॉ.अंबेडकर के उस उदगार से अधिक प्रकाशित थे, जिसमें उन्होंने 24.9.1944 को मद्रास के पार्क टाउन मैदान में बहुजन को संबोधित करते हुए कहा था-
"आप लोगों को यह एहसास करना चाहिए कि हमारा मकसद क्या है? हमारा उद्देश्य और आकांक्षा है, एक शासक जमात बनने की। आप सबको अपने दिमाग में यह बात रखनी होगी और सब लोगों को अपने घरों की दीवारों पर यह लिख लेना चाहिए, ताकि हर रोज आपको स्मरण होता रहे कि हमारे दिल में क्या आकांक्षा है।"
यह एक बहुत बड़ा उद्देश्य है जिसे हमने अपने ह्रदय में मुश्किल से पाल पाया है। हमें देखना होगा कि हम एक शासक कर्ता जमात के रूप में मान्य हो सकें। अगर आप यह एहसास करेंगे तो आप लोगों को मानना होगा कि इस मकसद को अमल में लाने के लिए हमें अनेक भारी प्रयासों की जरूरत होगी।
जगदेव बाबू ने बहुजन समाज का सामाजिक ध्रुवीकरण कर राजनैतिक सत्ता प्राप्त करने के लिए नारा दिया-
"दस का शासन नब्बे पर नहीं चलेगा, नहीं चलेगा।
सौ में नब्बे शोषित है नब्बे भाग हमारा है।"
जगदेव बाबू के इस नारे से बहुजन समाज दोस्त-दुश्मन की पहचान करने लगा। फलत: जगदेव बाबू को जान से मारने की धमकी आने लगी किंतु जगदेव बाबू विचलित नहीं हुए। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा, "उन मूर्खों को सोचना चाहिए सिंह तो सिंह ही कहलाएगा चाहे वह पिंजड़े में हो या बाहर। चाहे वह जीवित हो या मृत। वीर कभी खाट पर नहीं मरते। उनकी मौत गोली और तलवार से होती है। मौत शूरमाओं की दुलहन है जिसे गले लगाने को वे बेताब रहते हैं।"
जगदेव बाबू का समाज जीवन स्वार्थ पर नहीं यथार्थ पर आधारित था। वे जय-जय कार के प्रबल विरोधी थे। उन्होंने बहुजनों को संबोधित करते हुए कहा--
"शोषित-पीड़ित की इज्जत और रोटी की लड़ाई में शरीक होने वाले इस जंग ए मैदान में आए मेरे प्यारे बहादुर वफादार साथियों-आप मेरी जय-जयकार कर रहे हैं, पर जय अभी हुई कहाँ। शासन प्रशासन में, राजपाट में हर जगह वर्चस्व व अधिकार जमाए हुए द्विज और ब्राह्मणवादी व्यवस्था, आपके द्वारा मनाई गई जय-जयकार की इस आवाज पर हँस रही है। शोषित, पीड़ितों की ललकार के अनुसार क्या हमने अपना 90% हक प्राप्त कर लिया है? क्या जनता में व्याप्त राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक, गैर-बराबरी का खात्मा हमने कर दिया, जिसका हमने बीड़ा उठाया था। नहीं तो फिर इस जय-जयकार सुनने के अधिकारी हम कैसे?"
*जगदेव बाबू ने 25.8.1965 को शोषित दल की स्थापना की। वी.पी. मंडल अध्यक्ष और वे महासचिव चुने गए। उन्होंने बहुजनों को संबोधित करते हुए कहा,*
"इस लड़ाई की बुनियाद आज मैं डाल रहा हूँ यह लंबी और कठिन होगी। क्योंकि मैं एक क्रांतिकारी पार्टी का निर्माण कर रहा हूँ, इसलिए इसमें आने-जाने वालों की कमी नहीं होगी। परंतु इसकी धारा रुकेगी नहीं। इसमें पहली पीढ़ी के लोग मारे जाएंगे, दूसरी पीढ़ी के लोग जेल जाएंगे तथा तीसरी पीढ़ी के लोग राज करेंगे। जीत अंततोगत्वा हमारी ही होगी।"
जगदेव बाबू जमीन से जुड़े नेता थे। उन्होंने बड़े नजदीक से देखा था बहुजन समाज की उन बहन बेटियों को जो चिलचिलाती धूप व वर्षा में पेट की खातिर जमीदारों, सामंतो के खेतों में काम करती थी। उन्हें पेट भरने के लिए अनाज सामंत, भूमिहार नहीं देते थे। जो जगदेव बाबू को बर्दाश्त नहीं था। उन्होंने उचित मजदूरी के लिए आंदोलन छेड़ दिया और नारा दिया-
*अबकी सावन भादों में*
*गोरी-गोरी चूड़ियां भादो में....*
अर्थात इस बार सावन भादों के महीने में महलों में रहने वाली गोरी गोरी कलाइयों में चूड़ियां खनकाने वाली द्विज बहन-बेटियां खेतों में धान के पौधे लगाएगी। उनके हाथ कीचड़ में होंगे। बहुजन महिलाओं ने काम बंद कर दिया। बिहार में द्विजों में खलबली मच गई।
जगदेव बाबू ने 5.9.1974 को जहानाबाद के कुर्था ब्लाक पर विशाल सभा का आयोजन किया। जब वे बहुजन समाज को संबोधित कर रहे थे उसी समय शासक द्विज जातियों के गुंडों ने भीड़ में भगदड़ मचा दी। द्विज शासक जातियों की पूर्व नियोजित योजना के तहत पीएसी पुलिस ने गोलियों की बौछार शुरू कर दी। गोलियां जगदेव बाबू पर दागी गयी। पहले एससी छात्र लक्ष्मण चौधरी गोली का शिकार हुए। वे बुरी तरह घायल हो गए। 80 हजार की भीड़ में जहानाबाद के कुर्था प्लान पर वे दोनों शहीद हो गए।
*जगदेव बाबू का व्यक्तित्व और कृतित्व बहुजनों के लिए अनुकरणीय है।*
*ऐसे भी मुसाफिर हैं, जिनके लिए सदियों*
*राहें ही नहीं, मंजिल भी तरसती हैं।*
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