वीर चमार दादा उधम सिंह जी
पहले विश्वयुद्ध से सही सलामत वापस लौटे रविदासिया, वाल्मीकि समाज के लोग 13 मार्च 1919 को वैसाखी के शुभ अवसर पर परमात्मा का शुक्रिया अदा करने के लिए दरबार साहिब ( गोल्डन टेंपल ) पहुंचे। मगर उन्हें अछूत कहकर अंदर जाने से मना कर दिया गया। तभी उन्होंने दरबार साहिब के पास जल्लियांवाला बाग़ में वैसाखी मनाने का फैसला किया। जनरल कास्ट वालों से यह भी नहीं जरा गया तो उन्होंने अंग्रेजो से शिकायत लगा दी कि यह भीड़ इकठ्ठी होकर अंग्रेजों के खिलाफ़ षड्यंत्र करने वाली है। तब पंजाब के गवर्नर माइकल ओडवायर नें उनपर गोली चलाने का हुक्म दे दिया। जिसमें रविदासिया कौम के सैंकड़ों लोग शहीद हुए।
रविदासिया और वाल्मीकि कौम के लोगों की इस शहादत पर उसी शाम को सुंदर सिंह मजीठिया नें माइकल ओडवायर को अपने घर शानदार दावत दी। सुंदर सिंह मजीठिया श्रोमणि अकाली की सांसद हरसिमरत कौर बादल और अकाली दल पंजाब से विधायक विक्रम सिंह मजीठिया के दादा थे। विक्रम सिंह मजीठिया की बहन हरसिमरत कौर बादल अकाली दल के उपाध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल की पत्नी है।जब यह भयानक नरसंहार हुआ तो वहां पर खड़ा बालक ऊधम सिंह चमार देख रहा था और उसने खून से लतपथ जल्लियांवाला बाग की मिट्टी हाथ में लेकर कसम खाई थी कि वह अपने पूर्वजों की इस दर्दनाक मौत का बदला जरूर लेगा। कुछ लोग अज्ञानता कारण ऊधम सिंह को कंबोज कहते है लेकिन कंबोज परिवार नें उन्हें अनाथ आश्रम से गोद लिया था, उनका जन्म कंबोज परिवार में नहीं हुए था। वह ज़िला संगरूर के कस्बे सुनाम में एक खालस चमार परिवार में जन्मे थे। 21 साल तक दिल में इंतक़ाम रखने के बाद आखिर 13 मार्च 1940 को वह दिन आ ही गया जब कैकस्टन हाल लंदन, इंग्लैंड में वह कायर माईकल ओडवायर भाषण दे रहा था कि " हमनें जल्लियांवाला बाग़ में डरपोक भारतीय लोगों को मार गिराया था। वह हमसे डरते हुए कुएँ में कूद गए "। तभी उसी हाल में बैठा हुआ उधम सिंह शेर चमार उठकर उसके सामने खड़ा हो गया और बोला कि " अगर हम डरपोक होते तो मैं आज तुझे मारने के लिए भारत से तुमहारे घर ( इंग्लैंड ) तक नहीं आता "। इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता ऊधम सिंह ने अपनी पूरी पिस्टल खाली कर दी, माइकल ओडवायर की छाती में कई शेद कर दिए।
यह मोर्चा जीतने के बाद भी ऊधम सिंह चमार नें वहाँ से भागने की कोशिश नहीं की और हस्ते मुस्कुराते हुए अपनी गिरफ्तारी दे दी। तभी उधम सिंह ने कहा कि " मेरा 21 साल पुराना मकसद पूरा हुआ, अब आप मेरा जो भी हश्र करना चाहते हैं कर सकते हैं "। ऊधम सिंह को अपने पूर्वजों की मौत का बदला लेने का सुकून उनके चेहरे की हसीं से साफ झलक रहा था। 31 जुलाई 1940 को लंदन की पैंटनविल जेल में हस्ते-हस्ते फांसी के फंदे को चूमकर प्रणाम किया और शहीद हो गए। उनकी पवित्र देह को भारत नहीं भेजा गया वहीं लंदन में ही दफ़ना दिया गया।
यही असल इतिहासिक सच्चाई है जिसमें बहुत हेरफेर करने की कोशिशें की गई थी लेकिन अब चमार वंश ऐसा नहीं होने देगा। अंत में मेरा अपने सभी चमार भाईओं से यह निवेदन है कि किसी भी राजनीतिक पार्टी के नकली मिशनरियों की बातों में आकर 6743 जातियां इकट्ठी करने में अपना जीवन बर्बाद मत कर लेना। औरों के इतिहास को खोजने के चक्कर में अपने महान चमार वंश के इतिहास को ही भूल मत जाना। सभी चमार अपने पूर्वजों पर, अपने इतिहास पर गर्व करें क्योंकि हम गद्दार सुंदर सिंह मजीठिया के वंशज नहीं हैं। हम गुरु रविदास जी, शहीद ऊधम सिंह, स्वामी अछूतानंद जी, बाबू मंगूराम मुग्गोवालिया और अमर शहीद संत रामां नंद जी के वंशज हैं।
जय गुरुदेव धंन गुरदेव ।
शहीद ऊधम सिंह चमार अमर रहे।
जय गुरुदेव जी।
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