घंटा 😂 😂

घन्टा ब्राह्मणो को सतर्क करने का प्रतीक है 
#जाने_कैसे 
यानि की मंदिर मे बनाया गया खुफिया तहखाना जिसमें ब्राह्मणों के अलावा कोई प्रवेस नहीं कर सकता था |

आप सदियों से मंदिर के बहार लटकाए घंटे को देख रहे हैं , और मंदिर में प्रवेश करने से पहले उसे बजाते आये हैं |

आप मंदिर के प्रवेशद्वार पर लटकाए हुवे घंट के बारे में क्या जानते है?बताओ...?
नहीं जानते ना...?

मंदिर मे लटकाएं हुवे घंटे के बारे में हिन्दू धर्म के किसी भी ग्रंथ में कुछ नहीं लिखा गया.. क्यों..?🤔

भगवान और मंदिर के घंटे का क्या संबध है किसीको कुछ नहीं पता.. तो आखिरकार ये घंटा मंदिर में कर क्या रहा है...? 🤔

आज आपको मैं मंदिर के प्रवेश द्वार पर लटकाए हुवे घंटे के इतिहास के बारे में बताता हूँ

*सन् 1947 से बहुत पहले से… यानी जब से मनुस्मुर्ति लागू थी तब से लेकर जारी थी देवदासी प्रथा जिसके अनुसार मंदिर में रखी हुई देवदासी की शादी ब्राह्मण अपने ही मंदिर के भगवान (पत्थर की मूरत) से करवाते थे |

उससे पैदा हुए बच्चों को कहते थे हरिजन यह उन बच्चों को नाम दिया जाता था जो देवदासी से भौतिक रूप से मतलब वास्तव में पैदा होते थे |

जब भगवान पत्थर के होते हैं और थे तो देवदासी के बच्चे कैसे पैदा होते थे |

इसी बात पर गहनचर्चा करने के बाद भारत के सभी मंदिरों/पुजारियों और देवदासी के इतिहास की विस्तृत जानकारी से पता चला है कि 
ब्राह्मण अपनी शारीरिकत्रुसा को संतुष्ट करने  के लिए शूद्रों (OBC) की लड़कीयों को देवदासी बनाके मंदिर में रखते थे, और उसके साथ शारिरिक संबध बनाते थे |

देवदासी को गर्भग्रुह में ले जा के जब उसके साथ मंदिर का पुजारी शारीरिक संबंध बनाता था तब अगर कोई ना कोई दर्शनार्थी पुजारी को ढूढ़ते हुए मंदिर के गर्भग्रुह में अचानक पहुंच जाता था और पुजारी को शारीरिक संबंध बनाते हुवे देख लेता था, तो पुजारी पकड़ा जाता था |

मंदिर का नाम खराब होता था, और मंदिर की आवक में भी गहरी कमी आजाती थी|

इसी बात को ध्यान में रखते हुवे चितपावन् ब्राह्मणों ने तुरंत ही एक मीटिंग का आयोजन किया जिसमें यह निर्णय लिया गया कि मंदिर के प्रवेशद्वार पर एक घंटा लगाया जाए, और भगवान के दर्शन करने के लिए आने वाले दर्शानार्थीयों को मंदिर प्रवेश से पहले घंटा बजाने को कहा जाए घंटा बजाना एक प्रथा बनाई जाए |

इस निर्णय को तुरंत अमल में लाया गया...और ब्राह्मणों का यह प्रयोग सफल रहा|

*प्रथा-अनुसार जब ब्राह्मण पुजारी देवदासी को गर्भग्रुह में भोग रहे होते थे  तब बाहर मंदिर में कोई दशार्नार्थी आता था तो वे भगवान के दर्शन से पहले दो-तीन बार घंटा बजाता था/है, जिससे गर्भग्रुह में देवदासी को भोग रहे पुजारी को तुरंत पता चल जाता कि मंदिर में कोई आया है और तुरंत वे अपनी धोती ठीक करके बहार आ जाता था/है | और इस तरह से आज भी यह घंटा बजाने का सिलसिला प्रथा के नाम पर जारी है |

कुछ समझे....? मंदिर में लगाया हुआ घंटा कुछ और नहीं ब्राह्मणों को एलर्ट करने के लिए लगाया हुआ डोरबेल है बस इससे ज्यादा कुछ नहीं तर्क करना सीखो मूर्खो 😂

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