छत्रपति शिवाजी महाराज जी की गुमनाम कब्र



स्वराज की स्थापना कर बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय पर सत्ता चलाने वाले महान राजा क्षत्रपति शिवाजी महाराज को स्मृति दिवस पर त्रिवार नमन!

शिवाजी बचपन से ही बहुत बहादुर और चंचल थे वे अपनी मां साहेब के साथ संत तुकाराम जी के विचार सुनने जाते थे संत तुकाराम घंटा बजाने वाले या प्रवचन देकर मन बहलाने और पैसा कमाने वाले संत नही थे वे मुगल सत्ता और ब्राह्मणी व्यवस्था से त्रस्त आ चुके किसान और मजदूर वर्ग की परेशानियों को देखकर समाज को जागृति करने का संकल्प कर चुके थे वे खुद किसान थे।

संत तुकाराम जी के विचार बालक शिवबा पर ऐसे प्रभाव किये की बड़े होकर वे मंगल सत्ता को चुनौती दी उनकी सेना में सर्वाधिक महार और मुसलमान थे जो सबसे ज्यादा विश्वस्त और बहादुर थे जब राजतिलक का समय आया तो ब्राह्मणो ने उन शुद्र कहकर अपमानित किया गया क्योंकि वे ब्राह्मणी व्यवस्था के अनुसार कुर्मी किसान जाति में जन्मे थे महाराष्ट्र के ब्राह्मणो के मना करने के बाद बनारस का गंगा भट्ट ब्राह्मण तैयार हुआ था।

वह राजतिलक कराने आया तो वैदिक मंत्रों की जगह पुराण मंत्रो से कार्य करवाया और जब मांथे पर तिलक लगाने की बात आई तो उसने बाएं पैर के अंगूठे से करने को कहा तो शिवाजी यह बर्दास्त नही कर सके और उसे पैसा देकर भेज दिया यह 6 जून 1674 की बात है यह अपमान माता जिजाऊ बर्दास्त नही कर सकीं और 17 जून 1674 को प्राण त्याग दिया क्रोध में आकर शिवाजी ब्राह्मण धर्म को त्यागकर शाक्त पंथ की दीक्षा लिया विवाह भी शाक्त पंथ के अनुरूप अछूत कही जाने वाली जाति की लड़की से किया।

एक बार क्षत्रपति शिवाजी के सेनापति काजी हैदर से मुगल सरदार अफजल खान के सेनापति ब्राह्मण कृष्ण भास्कर कुलकर्णी ने मिलने का समय मांगा तो उसे समय दिया गया और तय किया गया कि शिवाजी और अफजल खान बिना हथियार के निहत्थे मिलेंगे जब शिवाजी मिलने जाने लगे तो उनके गुप्तचर सेनापति रुस्तम जमाल ने कहा कि अफजल खान आपसे काफी तगड़ा कदकाठी का है वह एकांत में आपका गला भी दबा सकता है इसलिए ये बाघनख लेते जाइये अगर नीच हरकत करे तो उसका पेट फाड़ दीजिएगा फिर अफजल खान ने ताक़त के नशे में शिवाजी की जान लेने की कोसिस की तो शिवाजी ने उसका पेट फाड़ दिया वह मर गया यह देखकर ब्राह्मण कृष्ण भास्कर कुलकर्णी ने हमला किया तो उसे भी मार दिया।

शिवाजी का राज रैयत का राज यानी जनता का राज था वहां ब्राह्मणो का ज्यादा चलता नही था आम जनता खुश थी यह सब ब्राह्मणो से देखा नही जाता था तो प्रशासनिक ब्राह्मणो ने शिवाजी को जहर देकर मार दिया कुछ चारण इतिहासकार घुटने के दर्द के कारण शिवाजी की मौत बताते है यह बेहद हास्यास्पद है उनके मृत्यु के बाद स्वराज यानी जनता के राज को जल्द ही खत्म कर दिया सम्भाजी को औरंगजेब को पकड़वा दिया और खुद राज्य पर कब्जा कर लिया औरंगजेब ने सम्भाजी को राजा की तरह सम्मान दिया वह सम्भाजी को छोड़ कर राज्य निकाला देना चाहता था लेकिन ब्राह्मण पेशवाओ ने कहा कि आप हमारे हवाले कर दीजिए हम उसे मनुस्मृति के अनुसार सजा देकर छोड़ देंगे।

फिर सम्भाजी को जब ब्राह्मणो के हवाले किया गया तो भरे चौराहे में उन्होंने सम्भाजी की नाक,कान काटे इतने में मन नही भरा तो उनके शरीर से चमड़ी उधेड़ दी गई वे दर्द से कराह रहे थे तो उनके सिर को काट कर भाले में छेदकर पूरे नगर में घुमाया गया और यह संदेश दिया गया कि अब कोई स्वराज की बात किया तो उसका भी यही अंजाम होगा उनके शरीर को चील कौओं को खाने के लिए फेक दिया गया पूरे नगर के ब्राह्मणो में मिठाई बांटकर उत्सव मनाया गया उसी को आज भी गुड़ी पड़वा के नाम से मनाया जाता है लेकिन रात में एक बफादार महार सैनिक ने रात को सम्भाजी शरीर को दाह संस्कार कर दिया तो उसे मौत मिली और पूरे समाज को सजा के तौर पर गले मे हंडी और पैर में झाड़ू बांधकर बहादुर कौम को चलने के लिए मजबूर किया गया और मनुस्मृति शासन लागू किया गया जो विरोध किया उसे मौत मिली इस तरह शिवाजी को मारने के बाद आठ नौ साल में ही पेशवाओ ने राज्य पर कब्जा कर लिया।

शिवाजी की मौत के बाद किसी भी ब्राह्मण ने उन पर कभी कुछ नही लिखा जिससे लोग भूल जाएं दो सौ साल तक किसी ने कोई खबर नही ली ज्यादातर लोग भूल भी गए लेकिन 1826 में एक अंग्रेज स्कॉलर ग्रैंड डफ ने काफी खोज बीन करके मराठा कालीन इतिहास नाम की किताब लिखी जब ज्योतिबा फुले को इस किताब के बारे में पता चला तो उन्होंने पढा और उसके अनुसार रायगढ़ के जंगलों में शिवाजी की समाधि बहुत मेहनत करके ढूढ़ निकाली और 1869 को पहली बार शिवाजी की जयंती बड़ी धूम धाम से मनाई ब्राह्मणो ने बहुत विरोध किया लेकिन नायक ज्योतिराव फुले नही माने और इस तरह खोए हुए शिवाजी फिर से जिंदा हो गए तब से लगातार जयंती और स्मृति दिवस मनाया जाने लगा शिवाजी के बारे फुले जी ने एक किताब पवाडा लिखी तब से लगातार लिखा पढा जाने लगा शिवाजी के बारे में दुनियां को बताने वाले फुले जी को भी नमन।

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