बुद्ध या ईसा 👇
मेरे एक ईसाई मित्र हैं, एक दिन वह मुझसे जीसस और बुद्ध की समानता पर बहस कर रहे थे। उनका कहना था कि जीसस और बुद्ध एक ही जैसे विचार वाले इंसान थे, और दोनो ने दया और प्रेम का प्रचार किया।
उनकी बात कुछ हद तक सही हो सकती है, पर एकदम से नही! जीसस और बुद्ध मे बहुत अधिक अन्तर था! जीसस ने स्वर्ग-नर्क और ईश्वर वाले पाखण्ड फैलाये, जबकि बुद्ध ने स्वर्ग और नर्क से एकदम ही इनकार कर दिया था।
मै जीसस और बुद्ध के जीवन मे घटी दो घटनाओं से दोनो महापुरुषों के बीच का अन्तर समझाता हूँ, जिससे आपको साफ पता चलेगा कि जीसस की तुलना मे बुद्ध कितने महान थे।
बाइबल मे एक कथा आती है, कथानुसार एक महिला का पुत्र मर जाता है, और वह रोती-पीटती जीसस के पास आती है। वह महिला जीसस से अपने बच्चे को जीवित करने की प्रार्थना करती है, और जीसस ने दया करके उस महिला के मृत बच्चे को जीवित कर दिया।
इस कहानी मे आप सच-झूठ का आंकलन स्वयं कर सकते हैं कि क्या किसी मरे हुये को जीवित किया जा सकता है। पर ईसाइयों ने इस पाखण्ड को खूब फैलाया और आज भी आपको कितने पादरी ऐसे मिल जायेंगे जो मरे हुये को जीवन देने का ढ़ोंग करते हैं।
अब ऐसी ही एक घटना बुद्ध के समय मे भी घटी। एक महिला का पुत्र मर गया और उसे पता चला कि नजदीक ही तथागत बुद्ध ठहरें हैं। वह महिला दौड़ी-दौड़ी आयी और तथागत के चरणों मे गिर गयी। महिला बोली कि हे प्रभु! आप मेरे बेटे को जीवित कर दें।
तथागत बुद्ध ने महिला को बड़े प्रेम से उठाया और उसे ढ़ाढ़स बधाते हुये कहा कि मै आपके पुत्र को जीवित कर दूँगा, आप विलाप न करो!
फिर बुद्ध ने उस महिला से कहा कि आप यहाँ से शीघ्र नगर मे जाओ और किसी ऐसे घर से कुछ अनाज के दाने मांगकर लाओ, जिसके परिवार मे अब तक किसी की मृत्यु न हुई हो।
महिला खुशी-खुशी भागकर नगर मे गयी, और वहाँ एक-एक करके हर घर से अनाज के दाने मांगने लगी। पर उसे एक भी घर ऐसा न मिला जिसके परिवार मे किसी की मृत्यु न हुई हो...
कोई कहता कि कुछ साल पहले मेरे दादा मर गये थे!
कोई कहता कि मेरी माँ मर चुकी है!
कोई कहता कि मेरे पति मर गये हैं!
कोई कहता मेरी पत्नि मर गयी है तो कई कहता कि मेरे पुत्र/पुत्री आदि मर चुके हैं।
शाम तक जब महिला को कोई ऐसा घर न मिला जहाँ किसी की मृत्यु न हुई हो, तो महिला निराश होकर बुद्ध के पास लौट आयी! महिला ने बुद्ध को बताया कि उसे ऐसा कोई परिवार न मिला जहाँ अब तक किसी की मृत्यु न हुई हो।
तब बुद्ध ने मुस्कुराते हुये कहा कि हे देवी! क्या आपके साथ जो हुआ वह नया है?
यह तो प्रकृति का विधान है कि जो जन्मा है, वह मरेगा! जीवन के साथ मृत्यु भी अटल सत्य है... मैने भी अपनी माँ के पेट से जन्म लिया है और मै भी मर जाऊँगा! मै अपनी मृत्यु को नही टाल सकता तो आपके पुत्र की मृत्यु को कैसे टाल सकता हूँ।
तथागत की बातें सुनकर महिला संतुष्ट हो गयी और वापस अपने घर चली गयी।
सोचो! कैसे महान विचार थे बुद्ध के... बुद्ध ने कभी भी किसी को चमत्कार या पाखण्ड का झूठा पाठ नही पठाया।
ऐसी ही एक और घटना बाइबल मे हैं! बाइबल के अनुसार जब पिलातुस ने जीसस को मौत की सजा दी और क्रॉस पर लटकवा दिया, तब तीसरे दिन जीसस फिर जीवित हो गये, और उन्होने अपने शिष्यों को दर्शन और उपदेश दिया।
जीसस ने अपने शिष्यों से कहा कि जो मेरी बात मानेगा और मेरे बताये मार्ग पर चलेगा, वही मेरे स्वर्गीय पिता (ईश्वर) का लाडला होगा और वही Heaven (स्वर्ग) मे जायेगा।
जीसस की बात ईसाइयों ने गांठ बाँध ली है। और उन्हे लगता है कि जीसस के बताये रास्ते पर ही चलकर ही स्वर्ग मिल सकता है, अन्यथा उन पर ईश्वर का प्रकोप होगा और उन्हे नर्क मे डाला जायेगा।
यहाँ तक की पढ़े-लिखे ईसाई भी इस बात को मानते हैं! मदर टेरेसा जैसी पढ़ी-लिखी उदार महिला भी इस पाखण्ड से खुद को बचा न सकी। मदर टेरेसा भारत मे हिन्दू रोगियों की सेवा करती थी, पर जब उन्हे लगता था कि अब यह रोगी मर जायेगा तो वे उसे बपतिस्मा देकर उसका धर्म-परिवर्तन करके उसे ईसाई बना देती थी।
मदर टेरेसा सोचती थी कि इसने धरती पर बहुत पीड़ा सही है, और यदि यह हिन्दू बनकर मर जायेगा तो इसे स्वर्ग भी नही मिलेगा। इसी दयाभाव की वजह से मदर टेरेसा मरणासन्न हिन्दुओं को ईसाई बना देती थी।
अब आते हैं बुद्ध के जीवन पर.... जब बुद्ध भी अपने महापरिनिर्वाण (मृत्यु) के नजदीक थे, तब उनके सबसे करीबी शिष्य आनन्द ने बुद्ध से जाकर कहा कि हे तथागत! अब आप यह संसार छोड़ने वाले हो, अतः आप संघ के लिये कुछ लिख दो, ताकि लोग उसी मार्ग पर चलें।
तब बुद्ध ने आनन्द को जवाब देते हुये कहा कि हे आनन्द! आप मुझसे क्या चाहते हो? क्या आपको लगता है कि मै रहस्यवादी हूँ?
मेरे पास जो कुछ भी था, वह मैने पहले ही आप सबको बता दिया है। अब आप लोग स्वयं चिंतन करो और सत्य का मार्ग खोजो।
इसके बाद बुद्ध के कहा कि "अप्प दीपो भवः" अर्थात अपना प्रकाश स्वयं बनो।
अब जरा आप लोग स्वयं सोचो कि कैसा महान व्यक्तित्व था बुद्ध का! बुद्ध अपने विचार किसी पर थोपना नही चाहते थे, उन्होने सबको स्वतंत्रता दी है। बुद्ध ने लोगों को नर्क, स्वर्ग और ईश्वर जैसे पाखण्डों से दूर रखा।
बुद्ध ने अपनी बात स्वयं अपने नाम से लोगों के आगे रखी, उसके लिये जीसस की तरह किसी ईश्वर का सहारा नही लिया।
बुद्ध ने अपनी बात मनवाने के लिये लोगों को जीसस की तरह स्वर्ग का प्रलोभन नही दिया।
बुद्ध एक सुन्दर बगीचा हैं, जिसमे प्रवेश करने के बाद ही इंसान स्वयं को पहचान पाता है।
अतः बुद्ध और जीसस की तुलना ही नही हो सकती।
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