श्रृंगार नहीं गुलामी है

रति, रम्भा, ऊर्वशी, मेनका, उनके लिए था ये साजो श्रंगार मतलब सीधी बात जो मनोरंजन का साधन थी 👈
जो थी तो वेश्यायें लेकिन नर्तकी बोलकर एक मुखौटे के पीछे इनका असली रुप छुपा दिया जाता था जैसे देवदासी के साथ होता था 👈
लेकिन मनुवाद से ग्रसित महिलायें आज ये समझने को बिलकुल तैयार नहीं, क्योंकी जान बस रही है इसी ढ़ोंग मै रामायण,  महाभारत, चन्द्र कांता जैसे धारावाहिकों और सिनेमा के ज़रिये इसको भारतीय महिलाओं के दिमाग मै स्थापित किया गया 👈
*महिलाओं में घूंघट क्यों और कब से??*

घूंघट किससे?? जब सभी अपने ही लोग हैं तो चेहरा क्यों छिपाना  क्या गलत किया है? जो  चेहरा छिपा रही है?? 
ससुराल के लोग भी परिवार के समान ही है जैसे कि ससुर पिता के समान, जेठ बड़े भाई के समान और पति तो उसका साथी ही है तो चेहरा क्यों छिपाना??? 
👉 अक्सर महिलाओं से यह सुना जाता है कि महिला ही घर की लाज है और बढ़े बूढ़ों का सम्मान करना ही महिलाओ की जिम्मेदारी है,
👉 क्यों??
क्या पुरुष घर की लाज नहीं है क्या पुरुष की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती है 😂सारी जिम्मेदारी महिलाओं पर ही क्यों?? 
पुरूष घूंघट क्यों नहीं करते? 
एक पुरुष कई पत्नियां रख सकते हैं। जिसके तमाम उदाहरण है जैसे कि राम के पिता दशरथ की तीन रानियां थी और जिन्हें भगवान कहते हैं कृष्ण के 16 हजार रानियां थी आदि आदि ।
👉 आज भी बहुत व्यक्ति दो-दो पत्नियां रखते हैं मुसलमानों में तो चार चार पत्नियां रख सकते हैं ये सब समाज को मंजूर है 😂 
👉 इतिहास पढ़ने पर पाया जाता है कि तथागत गौतमबुद्ध के समय में घूंघट प्रथा नहीं थी ।
 और मौर्य काल अर्थात बुद्धमय भारत के समय में कहीं भी घूंघट प्रथा नहीं थी।  बल्कि महिलाओं और पुरुषों का एक समान अधिकार व सम्मान प्राप्त था ।।    जैसे कि आपने पढा होगा सम्राट अशोक ने अपनी बेटी संघमित्रा को बुद्ध धम्म के प्रचार-प्रसार के लिए लंका भेजा था। 
👉 घूंघट की प्रथा ब्राह्मण पेशवाओं के समय में शुरू हुई थी।  क्योंकि पेशवा ब्राह्मणों ने ऊंच-नीच भेद-भाव की जातियाँ और अंधविश्वास पाखंड आडम्बर आदि में  समाज को पूरी तरह जकड़ दिया था जिसमे खासकर महिलाएं तो आडम्बर, अन्धविस्वावस पाखंड में पूरी तरह लिप्त थीं जैसे आज भी अधिकतर महिलाएं लिप्त  है। ब्राह्मण पेशवा महिलाओं पर बुरी नजर रखते थे ।
और जो लड़की या महिला सुंदर दिखती थी । उन्हे जबरन उठवा लिया करते थे।
 इसलिए ही महिलाओ ने अपने चेहरे छिपाने के लिए घूंघट डालना शुरू कर दिया था। 

*👉 महिलाएं सिंदूर क्यों लगाती है??*

ब्राह्मणवादी व्यवस्था में महिलाओं को गुलाम और पशुओं के समान ही माना गया है 
तुलसीदास दूबे ने रामचरित मानस में लिखा है 
ढोल, गंवार, शूद्र, पशु नारी, 
सकल ताडना के अधिकारी। 
ब्राह्मणवादी व्यवस्था पुरूष प्राधान थी ।जिसमें पुरूष हजारों महिला या पत्नी से संबंध बना सकता है।
लेकिन महिलाओं के लिए पति परमेश्वर होते हैं 😂 
इसलिए इस ब्राह्मणी व्यवस्था ने शादी शुदा महिलाओं की पहचान बनाकर रखने के लिए सिंदूर लगवा दिया।
जबकि शादीशुदा पुरूषों की कोई पहचान नहीं है। 

*👉 मंगलसूत्र क्या है? **
विश्व गुरु तथागत गौतमबुद्ध ने मानव कल्याण के लिए 38 मंगलसूत दिये हैं जिसे महिला पुरूष दोनों ही धारण करते हैं और करते थे।और ये मंगलसूत सभी के लिए कल्याणकारी है। 
ब्राह्मणवादी व्यवस्था ने लोगों को मूर्ख बनाने के लिए मंगलसूत्र नाम देकर एक माला पहनाकर बुद्ध के विचारों नष्ट करने की कोशिश मात्र  किया है और अंधविश्वास पाखंड बढ़ा दिया है। 
सीधी भाषा में समझे कि ब्राह्मणों द्वारा बनाये गए मंगलसूत्र की रक्षा महिलाओं की ही जिम्मेदारी है जो कि महिलाओं के लिए खतरनाक होता है जबकि तथागत गौतमबुद्ध का मंगलसुत महिलाओं और पुरूषों दोनो के लिए है और पूरे मानवजाति रक्षा के लिए बनाया गया  है। 

*👉 चूड़ियां क्या है??*
चूड़ियां महिलाओं की कमजोरी और कायरता की पहचान है ।जैसे कि आपने पढ़ा होगा कि कहावत कहा जाता है कि क्या मैनै चूड़ियां पहन रखी है। कभी कभी किसी कमजोर अधिकारी या मंत्री आदि को कुछ महिलाएं ही चूड़ियां भेंट करके अपना विरोध जताती हैं
इसका सीधा अर्थ है कि  कि चूड़ियां पहनाकर महिलाओं को मानसिक रूप से कमजोर बनाये रखना और उनका शोषण करते रहना मात्र है । 
महिलाओं को चूड़ियां नहीं, बल्कि हर अन्याय के खिलाफ लड़ने के लिए मजबूत और मानसिक रूप से शक्तिशाली बनाना चाहिए। 
चूड़ियां सुहाग नहीं , हथकड़ी की प्रतीक है  और ब्राह्मणवाद द्वारा दी गयी गुलामी की पहचान है। 

*👉 पायल, बिछुआ और करधनी क्या है?? **
पायल और लच्छे की आवाज महिलाओं के चलने फिरने का आभास कराता है। महिलाएं के चलने फिरने से  पुरूष महिलाओं के बाहर आने जाने की पहचान कर सकें । इस प्रकार से पायल बिछुआ भी महिलाओं की कमजोरी की पहचान है। 
👉सावित्रीबाई फुले ने महिलाओं के लिए स्कूल खोला था जिसका जबरदस्त बिरोध मनुवादियों ने किया था 
सावित्रीबाई फुले ने कहा था कि शिक्षा ही महिलाओ का गहना है और शिक्षा ही आपको मान सम्मान और स्वाभिमान दिला सकता है 
शिक्षा ही एक ऐसा हथियार है जो आपकी पीढी दर पीढी मजबूत हो सकती है 🙏
शिक्षा शेरनी का दूध है जो पियेगा दहाड़ेगा 💙💙💙
सभी महिला साथियों से निवेदन है ये महज आपको मानसिक गुलाम बनाने के साधन हैं ऐसी किसी भी मूर्खता से किसी इंसान की ज़िन्दगी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता चाहूँ तो इस विषय पर अधिक भी लिख सकता हूँ लेकिन अगर किसी को समझना है 
तो चार शब्द काफी हैं और अगर नहीं समझना है तो ग्रंथ भी 
लिख दिये जायें वो भी बदलाव नहीं ला सकते अपनी मानसिक गुलामी का त्याग करें 🙏
Sagar Gautam Nidar ✍️

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