बहुजन वीरांगना फूलन देवी
वैलेंटाइन डे पर दलित (मछुवा समाज)की इस बेटी दस्युसुंदरी फूलन देवी ने अपने पर किये गए गैंग रेप व अत्याचार का बदला, 22 ठाकुरों को गोलियों से भूनकर छत्रिय समाज को सिखाई थी सबक !
देश-विदेश में 14 फरवरी को युवक और युवतियां प्यार के दिन के रुप मनाते हैं। लेकिन कानपुर से 40 किमी दूर स्थित बेहमई में वीरांगना फूलन ने 38 साल पहले अपने दर्जनों दोस्तो के साथ किया था ठाकुरों पर हमला,
फूलन देवी 1980 के दशक की शुरुआत में चंबल के बीहड़ों में सबसे ख़तरनाक डाकू मानी जाती थीं। फूलन देवी के डकैत बनने की कहानी किसी को भी अपने बुरे हालात से लडने में साहस देती है। दरअसल, हालात ने बचपन से ही फूलन देवी को इतना कठोर बना दिया कि जब उन्होंने बहमई में एक लाइन में खड़ा करके 22 ठाकुरों की हत्या की तो उन्हें ज़रा.भी मलाल नहीं हुआ। फूलन देवी का जन्म गांव पूरवा में 1963 में हुआ था। इसी गांव से उसका कहानी भी शुरू होती है। जहां वह अपने मां-बाप और बहनों के साथ रहती थी। कानपुर के पास स्थित इस गांव में फूलन के परिवार को मल्लाह होने के चलते ऊंची जातियों के लोग हेय दृष्टि से देखते थे। इनके साथ गुलामों जैसा बर्ताव किया जाता था। फूलन के पिता की सारी जमीन उसके भाई से झगड़े में छिन गई थी। फूलन के पिता जो कुछ भी कमाते वह जमीन के झगड़े के चलते वकीलों की फीस में चला जाता।
राम सिंह ने बताया कि उस समय होली के पर्व को लेकर चर्चा चल रही थी। हम अपने पिता के साथ घर के बाहर चारपाई पर बैठे थे और हमारी उम्र 16 साल की थी। फूलन देवी ने ठाकुर समाज के पुरुषों को घर से खींच कर बाहर लाई और ताबड़तोड़ गोलियां दाग दिए 22 लोगों को गोलियों से दागते हुए। फूलन की नजर राम सिंह पर भी पड़ी लेकिन राम सिंह ने हाथ जोड़कर अपनी जान बख्श देने के लिए फूलन के पैरों को पकड़ लिया और फूलन देवी ने उसे छोड़ दिया था।
इससे समझ में आता है कि फूलन देवी दस्यु सुंदरी जितना कठोर थी उससे कहीं ज्यादा दयालुस्वभाव की भी थी ,
ऐसी समाज की महान वीरांगना बहन को हम सब खोकर आज भी हम सब उसे सच्ची श्रद्धांजलि नहीं दे पा रहे है।
क्यों की फूलन दीदी जी हम शर्मिंदा है क्यो की आप का कातिल जिंदा व जेल से बाहर है।
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