बाबा साहेब भारत रत्न या विश्व रत्न 👇
_*भारत रत्न ही नहीं विश्व रत्न भी हैं डॉ बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर जी-*_ ♾️♾️♾️♾️♾️♾️♾️♾️
_*अर्थशास्त्री राजनीतिज्ञ और समाज सुधारक श्रमिकों और महिलाओं के अधिकारों के समर्थक भारत के प्रथम कानून मंत्री सिंबल ऑफ नॉलेज विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के संविधान निर्माता भेदभाव के विरूद्ध आंदोलन के प्रणेता भारतरत्न बोधिसत्व राष्ट्रनिर्माता- डॉ बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर जी*_
_*📌परिचय---*_
_*भारत के संविधान निर्माता चिंतक और समाज सुधारक डॉ बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर जी का जन्म मध्य प्रदेश के महू में 14 अप्रैल 1891 को हुआ था उनके पिताजी का नाम श्री रामजी मालोजी सकपाल जी और माताजी का नाम माता- भीमाबाई रामजी सकपाल जी था वे अपने माता-पिता की अंतिम संतान थे उन्होंने अपना पूरा जीवन सामाजिक बुराइयों जैसे- छुआछूत और जातिवाद के खिलाफ संघर्ष में लगा दिया इस दौरान डॉ बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर जी गरीब दलितों और शोषितों के अधिकारों के लिए संघर्ष करते रहे*_
_*🔆-डॉ बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर जी- की वर्तमान में प्रासंगिकता-🔆*_
_*📌राजनीतिक क्षेत्र---*_ _*डॉ बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर जी भारत के आधुनिक निर्माताओं में से एक माने जाते हैं उनके विचार व सिद्धांत भारतीय राजनीति के लिए हमेशा से प्रासंगिक रहे हैं दरअसल वे एक ऐसी राजनीतिक व्यवस्था के हिमायती थे जिसमें राज्य सभी को समान राजनीतिक अवसर दे तथा धर्म जाति रंग तथा लिंग आदि के आधार पर भेदभाव न किया जाए उनका यह राजनीतिक दर्शन व्यक्ति और समाज के परस्पर संबंधों पर बल देता है*_
_*उनका यह दृढ़ विश्वास था कि जब तक आर्थिक और सामाजिक विषमता समाप्त नहीं होगी तब तक जनतंत्र की स्थापना अपने वास्तविक स्वरूप को ग्रहण नहीं कर सकेगी दरअसल सामाजिक चेतना के अभाव में जनतंत्र आत्मविहीन हो जाता है ऐसे में जब तक सामाजिक जनतंत्र स्थापित नहीं होता है तब तक सामाजिक चेतना का विकास भी संभव नहीं हो पाता है*_
_*इस प्रकार डॉ बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर जी जनतंत्र को एक जीवन पद्धति के रूप में भी स्वीकार करते हैं वे व्यक्ति की श्रेष्ठता पर बल देते हुए सत्ता के परिवर्तन को साधन मानते हैं वे कहते थे कि कुछ संवैधानिक अधिकार देने मात्र से जनतंत्र की नींव पक्की नहीं होती उनकी जनतांत्रिक व्यवस्था की कल्पना में नैतिकता और सामाजिकता दो प्रमुख मूल्य रहे हैं जिनकी प्रासंगिकता वर्तमान समय में बढ़ जाती है दरअसल आज राजनीति में खींचा-तानी इतनी बढ़ गई है कि राजनैतिक नैतिकता के मूल्य गायब से हो गए हैं हर राजनीतिक दल वोट बैंक को अपनी तरफ करने के लिए राजनीतिक नैतिकता एवं सामाजिकता की दुहाई देते हैं लेकिन सत्ता प्राप्ति के पश्चात इन सिद्धांतों को अमल में नहीं लाते हैं*_
_*📌समानता को लेकर विचार---*_ _*डॉ बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर जी समानता को लेकर काफी प्रतिबद्ध थे उनका मानना था कि समानता का अधिकार धर्म और जाति से ऊपर होना चाहिए प्रत्येक व्यक्ति को विकास के समान अवसर उपलब्ध कराना किसी भी समाज की प्रथम और अंतिम नैतिक जिम्मेदारी होनी चाहिए अगर समाज इस दायित्व का निर्वहन नहीं कर सके तो उसे बदल देना चाहिए वे मानते थे कि समाज में यह बदलाव सहज नहीं होता है इसके लिए कई पद्धतियों को अपनाना पड़ता है आज जब विश्व एक तरफ आधुनिकता की ओर बढ़ रहा है तो वहीं दूसरी तरफ विश्व में असमानता की घटनाएं भी देखने को मिल रही हैं इसमें कोई दो राय नही है कि असमानता प्राकृतिक है जिसके चलते व्यक्ति रंग रूप लम्बाई तथा बुद्धिमता आदि में एक-दूसरे से भिन्न होता है लेकिन समस्या मानव द्वारा बनायी गई असमानता से है जिसके तहत एक वर्ग रंग व जाति का व्यक्ति अपने आप को अन्य से श्रेष्ठ समझ संसाधनों पर अपना अधिकार जमाता है यूएनओ द्वारा इस संदर्भ में प्रति वर्ष नस्लीय भेदभाव उन्मूलन दिवस मनाया जाता है जो आज भी समाज में व्याप्त असमानता को प्रकट करता है भारत में इस स्थिति की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए संविधान के अंतर्गत अनुच्छेद 14 से 18 में समानता का अधिकार का प्रावधान करते हुए समान अवसरों की बात कही गई है यह समानता सभी को समान अवसर उपलब्ध करा सकें इसके लिए शोषित दबे-कुचलों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया इस प्रकार डॉ बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर जी के समानता के विचार न सिर्फ उन्हें भारत के संदर्भ में बल्कि विश्व के संदर्भ में भी प्रासंगिक बनाते हैं*_
_*📌आर्थिक क्षेत्रः---*_ _*दरअसल आज भी भारतीय अर्थव्यवस्था में गरीबी बेरोजगारी आय एवं संपत्ति में व्यापक असमानता अशिक्षा और अकुशल श्रम इत्यादि समस्याएं व्याप्त हैं अर्थव्यवस्था को लेकर डॉ बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर जी के महत्वपूर्ण विचार को निम्न बिन्दुओं के अंतर्गत देखा जा सकता है-*_
_*The problem of the rupee - 15 origin and its solution*_ _*नामक अपनी रचना में डॉ बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर जी ने 1800 से 1893 के दौरान विनिमय के माध्यम के रूप में भारतीय मुद्रा के विकास का परीक्षण किया और उपयुक्त मौद्रिक व्यवस्था के चयन की समस्या की भी व्याख्या की आज के समय में जब भारतीय अर्थव्यवस्था मुद्रा के अवमूल्यन और मुद्रास्फीति की समस्या से दो-चार हो रही है तो ऐसे में उनके शोध के परिणाम न सिर्फ समस्याओं को समझने में महत्वपूर्ण हो सकते हैं बल्कि वह इसके समाधान को लेकर आगे का मार्ग भी प्रशस्त कर सकते हैं*_
_*डॉ बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर जी ने 1918 में प्रकाशित अपने लेख भारत में छोटी जोत और उनके उपचार (Small Holdings in India and their Remedies) में भारतीय कृषि तंत्र का स्पष्ट अवलोकन किया उन्होंने भारतीय कृषि तंत्र का आलोचनात्मक परीक्षण करके कुछ महत्वपूर्ण परिणाम निकाले जिनकी प्रासंगिकता आज तक बनी हुई है उनका मानना था कि- यदि कृषि को अन्य आर्थिक उद्यमों के समान माना जाए तो बड़ी और छोटी जोतों का भेद समाप्त हो जाएगा जिससे कृषि क्षेत्र में खुशहाली आएगी उनके एक अन्य शोध ब्रिटिश भारत में प्रांतीय वित्त का विकास (The Evolution of Provincial Finance in British India) की प्रासंगिकता आज भी बनी हुई है उन्होंने इस शोध में देश के विकास के लिए एक सहज कर प्रणाली पर बल दिया इसके लिए उन्होंने तत्कालीन सरकारी राजकोषीय व्यवस्था को स्वतंत्रत कर देने का विचार दिया भारत में आर्थिक नियोजन तथा समकालीन आर्थिक मुद्दें व दीर्घकाल में भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए जिन संस्थानों को स्वतंत्रता के पश्चात स्थापित किया गया उनकी स्थापना में डॉ बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर जी का अहम योगदान रहा है*_
_*📌सामाजिक क्षेत्र--- डॉ बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर जी का सम्पूर्ण जीवन भारतीय समाज में सुधार के लिए समर्पित था उन्होंने प्राचीन भारतीय ग्रन्थों का विशद अध्ययन कर यह बताने की चेष्टा भी की कि भारतीय समाज में वर्ण-व्यवस्था जाति-प्रथा तथा अस्पृश्यता का प्रचलन समाज में कालान्तर में आई विकृतियों के कारण उत्पन्न हुई है न कि यह यहाँ के समाज में प्रारम्भ से ही विद्यमान थी*_
_*सामाजिक क्षेत्र में उनके द्वारा किए गए प्रयास किसी भी दृष्टिकोण से आधुनिक भारत के निर्माण में भुलाये नहीं जा सकते जिसकी प्रासंगिकता आज तक जीवंत है सामाजिक क्षेत्र में उनके विचारों की प्रासंगिकता को निम्न बिन्दुओं के अंतर्गत देखा जा सकता है-*_
_*डॉ बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर जी ने वर्ण व्यवस्था को अवैज्ञानिक अत्याचारपूर्ण संकीर्ण तथा गरिमाहीन बताते हुए इसकी कटु आलोचना की थी*_
_*डॉ बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर जी का मत था कि समूह तथा कमजोर वर्गों में जितना उग्र संघर्ष भारत में है वैसा विश्व के किसी अन्य देशों में नहीं है*_
_*इस व्यवस्था में कार्यकुशलता की हानि होती है क्योंकि जातीय आधार पर व्यत्तिफ़यों के कार्यों का पूर्व में ही निर्धारण हो जाता है*_
_*अन्तर्जातीय विवाह इस व्यवस्था में निषेध होते हैं*_
_*सामाजिक विद्वेष और घृणा के प्रसार से इस व्यवस्था को बल मिलता है*_
_*उल्लेखनीय है कि इन भेदभावों के खिलाफ उन्होंने व्यापक आंदोलन शुरू करने का फैसला किया उन्होंने सार्वजनिक आंदोलनों और जुलूसों के द्वारा पेयजल के सार्वजनिक संसाधन समाज के सभी लोगों के लिये खुलवाने के साथ ही उन्होंने अछूतों को भी मंदिरों में प्रवेश करने का अधिकार दिलाने के लिये भी संघर्ष किया*_
_*📌महिलाओं से संबंधित विचार--- डॉ बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर जी भारतीय समाज में स्त्रियों की हीन दशा को लेकर काफी चिंतित थे उनका मानना था कि स्त्रियों के सम्मानपूर्वक तथा स्वतंत्र जीवन के लिए शिक्षा बहुत महत्वपूर्ण है डॉ बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर जी ने हमेशा स्त्री-पुरुष समानता का व्यापक समर्थन किया यही कारण है कि उन्होंने स्वतंत्र भारत के प्रथम विधिमंत्री रहते हुए हिंदू कोड बिल संसद में प्रस्तुत किया और हिन्दू स्त्रियों के लिए न्याय सम्मत व्यवस्था बनाने के लिए इस विधेयक में उन्होंने व्यापक प्रावधान रखे उल्लेखनीय है कि संसद में अपने हिन्दू कोड बिल मसौदे को रोके जाने पर उन्होंने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था इस मसौदे में उत्तराधिकार विवाह और अर्थव्यवस्था के कानूनों में लैंगिक समानता की बात कही गई थी दरअसल स्वतंत्रता के इतने वर्ष बीत जाने के पश्चात व्यावहारिक धरातल पर इन अधिकारों को लागू नहीं किया जा सका है वहीं आज भी महिलाएं उत्पीड़न लैंगिक भेदभाव हिंसा समान कार्य के लिए असमान वेतन दहेज उत्पीड़न और संपत्ति के अधिकार ना मिलने जैसी समस्याओं से जूझ रही हैं*_
_*इस संदर्भ में ध्यान देने वाली बात है कि हाल ही में समान नागरिक संहिता का प्रश्न पुनः उठाया गया है उसका व्यापक पैमाने पर विरोध किया गया जबकि डॉ बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर जी ने समान नागरिक संहिता का प्रबल समर्थन किया था*_
_*📌शिक्षा संबंधित विचार--- डॉ बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर जी शिक्षा के महत्व से भली-भाँति परिचित थे दरअसल अछूत समझी जाने वाली जाति में जन्म लेने के चलते उन्हें अपने स्कूली जीवन में अनेक अपमानजनक स्थितियों का सामना करना पड़ा था उनका विश्वास था कि शिक्षा ही व्यक्ति में यह समझ विकसित करती है कि वह अन्य से अलग नहीं है उसके भी समान अधिकार हैं उन्होंने एक ऐसे राज्य के निर्माण की बात रखी जहां सम्पूर्ण समाज शिक्षित हो वे मानते थे कि शिक्षा ही व्यक्ति को अंधविश्वास झूठ और आडम्बर से दूर करती है शिक्षा का उद्देश्य लोगों में नैतिकता व जनकल्याण की भावना विकसित करने का होना चाहिए शिक्षा का स्वरूप ऐसा होना चाहिए जो विकास के साथ-साथ चरित्र निर्माण में भी योगदान दे सके*_
_*उल्लेखनीय है कि डॉ बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर जी के शिक्षा संबंधित यह विचार आज शिक्षा प्रणाली के आदर्श रूप माने जाते हैं उन्हीं के विचारों का प्रभाव है कि आज संविधान में शिक्षा के प्रसार में जातिगत भौगोलिक व आर्थिक असमानताएं बाधक न बन सके इसके लिए मूलअधिकार के अनुच्छेद 21-A के तहत शिक्षा के अधिकार का प्रावधान किया गया है जो उनकी प्रासंगिकता को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में प्रमाणित करती है*_
_*📌अधिकारों को लेकर विचार--- डॉ बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर जी अधिकारों के साथ-साथ कर्तव्यों पर बल देते थे उनका मानना था कि व्यक्ति को न सिर्फ अपने अधिकारों के संरक्षण के लिए जागरूक होना चाहिए अपितु उसके लिए प्रयत्नशील भी होना चाहिए लेकिन हमें इस सत्य को नहीं भूलना चाहिए कि इन अधिकारों के साथ-साथ हमारा देश के प्रति कुछ कर्त्तव्य भी है अधिकारों को लेकर उनके यह विचार वर्तमान समय में और ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाते हैं दरअसल वर्तमान विश्व में सरकारें अपने नागरिकों को विकास के समान अवसर प्राप्त करने के लिए कुछ मौलिक अधिकार प्रदान करती हैं हालाँकि मौलिक अधि कारों के साथ-साथ मौलिक कर्त्तव्यों की भी बात की जाती है*_
_*📌श्रमिक वर्ग के लिए कार्य--- डॉ बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर जी सिर्फ अछूतों महिलाओं के अधिकार के लिए ही नहीं बल्कि संपूर्ण समाज के पुनर्निर्माण के लिए भी प्रयासरत रहे उन्होंने मजदूर वर्ग के कल्याण के लिए उल्लेखनीय कार्य किये पहले मजदूरों से प्रतिदिन 12-14 घंटों तक काम लिया जाता था इनके प्रयासों से प्रतिदिन आठ घंटे काम करने का नियम पारित हुआ*_
_*इसके अलावा उनके प्रयासों से मजदूरों के लिए इंडियन ट्रेड यूनियन अधिनियम औद्योगिक विवाद अधिनियम तथा मुआवजा आदि से भी सुधार हुए उल्लेखनीय है कि उन्होंने मजदूरों को राजनीति में सक्रिय भागीदारी करने के लिए प्रेरित किया वर्तमान के लगभग ज्यादातर श्रम कानून डॉ बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर जी के ही बनाए हुए हैं जो उनके विचारो को जीवंतता प्रदान करते हैं*_
_*📌 डॉ बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर जी और महात्मा गांधी के विचारों में मतभेद---*_
_*महात्मा गांधी और बाबा साहेब आंबेडकर के अनेक मुद्दों पर एक जैसे विचार रहे लेकिन इसके बावजूद उनके विचारों में मतभेद भी रहे जिसका जिक्र निम्न बिदुओं के अंतर्गत किया जा सकता है-*_
_*ग्रामीण भारत जातिप्रथा और छुआ-छूत के मुद्दों पर डॉ बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर जी और गांधी जी के विचार एक दूसरे के विरोधी बने रहे हालांकि दोनों की कोशिश देश को सामाजिक न्याय और एकता प्रदान करने की थी और दोनों ने इन उद्देश्यों को प्राप्त करने के अलग-अलग मार्ग भी बतलाए*_
_*गांधी जी के मुताबिक यदि जाति व्यवस्था से छुआ-छूत जैसे अभिशाप को बाहर कर दिया जाए तो पूरी व्यवस्था समाज के हित में काम कर सकती है इसकी तार्किक अवधारणा के लिए गांधी ने गाँव को एक पूर्ण समाज बोलते हुए विकास और उन्नति के केन्द्र में रखा*_
_*गांधी के विपरीत डॉ बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर जी ने जाति व्यवस्था को पूरी तरह से नष्ट करने का मत सामने रखा डॉ बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर जी के मुताबिक जब तक समाज में जाति व्यवस्था मौजूद रहेगी तब तक छुआ-छूत जैसे अभिशाप नए-नए रूप में समाज में पनपते रहेंगे*_
_*गांधी जी ने पूर्ण विकास के लिए गांव के लोगों की वकालत की गांधी के मुताबिक देश की इतनी बड़ी जनसंख्या का पेट सिर्फ इंडस्ट्री या फैक्ट्री के जरिए नहीं भरा जा सकता है इसके लिए जरूरी है कि औद्योगिक विकास को ग्रामीण अर्थव्यवस्था के केन्द्र में रखते हुए विकसित किया जाए*_
_*डॉ बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर जी का विश्वास था कि बौद्ध धर्म सामाजिक असमानता को समाप्त कर भ्रातृत्व की भावना विकसित करता है यही कारण था कि डॉ बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर जी ने स्वयं अपने जीवन के अंतिम दिनों में बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया था इस संदर्भ में डॉ बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर जी के विचार महात्मा गांधी के विचारों से मेल नहीं रखते थे महात्मा गांधी का यह दृढ़ विश्वास था कि धर्म परिवर्तन करने मात्र से दलित वर्गों की स्थिति में वास्तविक सुधार होगा ही इसकी कोई निश्चितता नहीं है*_
_*💁♀️-आगे की राह-💁♂️*_
_*📌इस प्रकार निष्कर्षत--- कहा जा सकता है कि डॉ बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर जी के सामाजिक चिन्तन में अस्पृश्यों दलितों तथा शोषित वर्गों के उत्थान के लिए काफी संभावना झलकती है वे उनके उत्थान के माध्यम से एक ऐसा आदर्श समाज स्थापित करना चाहते थे जिसमें समानता स्वतंत्रता तथा भ्रातृत्व के तत्व समाज के आधारभूत सिद्धांत हों*_
_*अगर इनके विचारों को अमल में लायें तो समाज की ज्यादातर समस्याएँ जैसे वर्ण जाति लिंग आर्थिक राजनैतिक व धार्मिक सभी पहलुओं पर पैनी नजर रखी जा सकती है साथ ही न्यू इंडिया के लिए एक नया मॉडल व डिजाइन भी तैयार किया जा सकता है
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