विवाह या युद्ध एक विमर्श

विवाह या युद्ध। 
..........
लड़की वाले के घर तक बारात चढ़ाई एक आक्रमण का प्रतीक है जिसमें बाराती आक्रान्ता की तरह आते हैं और लड़की पक्ष हारी हुई सेना की तरह उनका स्वागत करता है।आदि काल में सेना का राजा, हारी हुई सेना के राजा की पुत्री को जबरन कब्जा करता था ।सेना के सैनिक भी पूरे विजित इलाके में छेड़खानी और लूटपाट मचाते थे ,उद्दापन करते थे।आज भी बाराती उच्चता के गर्व से ओतप्रोत होकर घराती की लड़कियों पर बुरी नजर डालते हैं ।जीती हुई सेना हारी हुई सेना को अपनी शर्तों और लूटपाट के आधार पर ही छूट देती थी ।यही हो गई दहेज प्रथा। जिस तरह लडकी दिखाई जाती है और रोका होता है ऐसा लगता है डकैत और आक्रान्ता युद्ध से पहले सुरागरसी लेने आये हों।जब लड़की  को रिश्ता नापसंद होने की बात पता चलता है तो वह एक बार तो आत्महत्या तक सोच लेती है फिर पुनर्मूल्यांकन होता है उसकी लम्बाई, रंग  उसके मां-बाप के पैसे का जैसे हारने वाली सेना अपनी कमियां ढूँढ रही हो।वह बीमार समाज शर्म से डूब कर मर क्यों नही जाता जो पूछता है क्या मिला और क्या दिया ,प्रदर्शनी लगती है ,तुलना होती है दूसरो के विवाह में मिले सामान की जैसे पडौसी देश के टैंक छीनकर बहादुरी का प्रदर्शन और बखान हो रहा हो।और तो और दहेज और मानमर्दन से दुखी लड़की का वही  बाप दूसरे महीने मूछों पर ताव रखकर लड़के की बारात लेकर जाता है ऐसा लगता है कि एक बहादुर योद्धा को थोड़ा देर से जोश आया और इस जोश में पुराने दुश्मन की गलती का पूरा बदला नये परंतु निर्दोष समधी से लेता है ।कहीं कोई शर्म और नैतिकता का मैकेनिज्म ही विकसित नही होने देता यह उच्चता और विजय का अहसास ।जितना ज्यादा दहेज उतना ज्यादा लड़की वालों को रियायत। फिर ऐसी कौन सी बारात है जहां फूफा, जीजा और जेठ रूंठे न हों।आखिर युद्ध विजेता के मुख्य जनरल तो वही होते हैं जब तक वे खुश नही होंगे सेना वापस नही जायेगी। बन्दूक वाला बाराती तो कुछ अलग ही भारी विदाई लेता है। बारात को लूट का माल नही मिला तो कभी -कभी रात को ही वापस हो जाती है।बारात का चढ़ना घोड़े के साथ बेवजह नही होता।घोड़ा प्रतीक है जीतने वाली सेना की उच्चता और क्षमता का,दूल्हा को राजा बनाते हैं पूरा सुरक्षा कवच चेहरे और सर पर रहता है।घोड़े मजबूत तो जीत पक्की। आखिर दबंग जातियां अपने मौहल्ले से कमज़ोर जातियों को बारात क्यों नही चढ़ाने देते? उन्हे याद है कि यह बारात की चढ़ाई उनके इलाके को कुछ देर के लिए हारे हुए क्षेत्र का अहसास दिलायेगी।बारात में आतिशबाज़ी युद्ध की बमबारी का प्रतीक ही है।
विवाह में कला प्रदर्शन, मनोरंजन,मेल जोल ,हंसी खुशी तो ठीक है पर युद्ध के सभी प्रतीक बन्द होने चाहिए। चाहे वह बारात चढ़ाई हो,घुड़चड़ी हो,आतिशबाजी हो ,हर्ष फायरिंग हो,लूटपाट, दहेज,छेड़खानी,लड़की वाले को निम्नता का अहसास या रिश्तों की ऐसी नामावली जो  लड़की वालों के लिए  समर्पणकारी और अपमान जनक हो और दूसरी तरफ लड़के वालों के लिए अति उच्चता  वाले घमंड से भरा हो, बन्द होना चाहिए। जीजा अति सम्मान  जनक है तो साला अति समर्पणकारी और सबसे बुरी गाली का पर्यायवाची ऑनर किलिंग का कारक।फूफा सुनने में उच्चता का अहसास और मामा सुनने में समर्पण का अहसास घर-घर में सिखाया जाता है।देवर जैसा घटिया शब्द आखिर ढोने की क्या जरुरत है।लड़की को जिन्दगी भर दूसरे के घर में जाकर चुप रहने और लड़के को पत्नी, ससुराल, सालों पर हावी रहने का पल-पल प्रशिक्षण दिया जाता है।अब यह नामावली बदली जानी चाहिए। साले की जगह पत्नी का छोटा भाई या बडा भाई या सिर्फ छोटा भाई या बड़ा भाई या ब्रदर इन ला काफी है।जीजा की जगह बहन के पति या ब्रदर इन ला जैसे  शब्द प्रयोग में लाये जायें,छोटे हों तो नाम से पुकारें ।मामा और चाचा की जगह अंकल का प्रयोग शुरु करना चाहिए। 
    विवाह को युद्ध बनाये रखेंगे तो लोग अपनी संतानों को बराबरी देने से पीछे हटते हैं। विवाह एक समाधान है नैतिक रूप से बेसिक जरूरतों को पूरा करने का पर भारतीयों ने उसे युद्ध बना रखा है ,समस्याओं की जड़ बना रखा है।तभी जब शादी में झगड़ा होता है तो दोनों पक्ष एक दूसरे को जेल भिजवाने की जल्दी करते हैं।वास्तव में युद्ध जैसी शादी स्थाई प्रेम पैदा करने में अधिकतर असफल रहती है।शादी का अर्थ है घर के अर्थतंत्र की अर्थी ,जमीन,मकान,जेवर,भूखण्ड बेचना,कर्ज लेना,अहसान लेना ,वृद्धावस्था के लिए जोड़ा हुआ सब कुछ एक ही दिन की सजावट,दावत,दिखावे की प्रतियोगिता एक सर्जीकल स्ट्राइक है जो दशकों में एक घर ईमानदारी से पैदा नही कर सकता।भ्रष्टाचार का ग्लोरिफिकेशन और स्वीकार्यता दिखती है हर विवाह में, जिसकी ईमानदार भी प्रशंसा करने से बाज नही आते।अगर किसी ने विवाह का निमंत्रण नही दिया तो बोलचाल बंद ।मत मज़ाक करिये और धन्यवाद दीजिये जिसने आपको नही बुलाया  निमंत्रण देने वाले की अपनी सीमा हो सकती है,उसे बधाई दीजिये ,दावत के निमंत्रण के चक्कर में आप बोझ बनते हैं।स्वीकार करिये निमंत्रण सिर्फ फोन पर ,कार्ड घर घर बाँटना, न बांटने पर रिश्तेदारों का नखरे दिखाना आपका सहयोग नही असहयोग है ,सख्ती से मना कीजिये कि निमंत्रण के लिए समय खर्च न करें यात्रा न करें ।
   प्रेम विवाह में उच्चता का अहसास नही रहता लूट का माल भी नही मिलता और अंतर्विवाह का खतरा अलग से अतः लडके वाले भी विरोध करते हैं।लड़की वाले बाल विवाह के हैंग-ओवर में जीते हैं और जल्दी से कोई जाति अतिक्रमण का खतरा नहीं उठाना चाहते जबकि प्रेम विवाह अति उत्तम समाधान है।पर जाति टूटने और दहेज प्रेम दोनों के कारण कोई पीढ़ी शादी के अधिकार को अपनी अगली पीढ़ी को नहीं देना चाहती भले ही संतानो को मारना पडे जन्म से पहले भी ,जन्म के बाद भी और प्रेम विवाह के बाद भी।विवाह दरअसल एक जाति संरक्षण कार्यक्रम है जो आपकी आर्थिक, मनोवैज्ञानिक  सामाजिक ताकत के सरप्लस  का निर्माण नही होने देता क्योंकि यह सरप्लस अगर लोगों के पास इकट्ठा हो गया तो वह आर्थिक निवेश, पर्यटन और महत्वाकांक्षाओं के बारे में सोचने लगेंगे जो जाति के किले को ध्वस्त कर देगा। जाति को नष्ट करो ,विवाह को समाधान बनाओ समस्या या युद्ध नहीं।

Comments

Popular posts from this blog

जब उत्तर प्रदेश बना उत्तम प्रदेश

अपने ही गिराते हैं नशेमन पे बिजलियाँ

बोधिसत्व सतगुरु रैदास