ऋषियों का कामुक अंदाज आज नहीं पहले भी
कल मैने एक पोस्ट लिखकर यह समझाने का प्रयास किया था कि पूर्वकाल मे ऋषि-मुनि भी काम (Sex) मे विरक्त नही थे!
इसके बदले मे कई लोग मेरे विरोध मे उतर आये, कुछ लोगो ने मुझे मूर्ख,मुल्ला और ना जाने क्या-क्या उपाधियाँ दे दी!
अब मै जरा उसी पर फिर से आता हूँ, सामान्यतः यह अवधारणा है कि ऋषि लोग काम को जीत लेते थे, पर जरा गौर करना कि पूर्वकाल मे लगभग पुरुष बहुपत्निक होते थे!
ऋषि कश्यप की तेरह पत्नियाँ थी, जिनसे उन्होने करोड़ संतान पैदा की!
मनु के पुत्र उत्तानुपात की दो पत्नियां थी, सुरूचि और सुनीति!
कृष्ण के पिता वासुदेव की दो पत्नियां थी, रोहिणी और देवकी!
राम के पिता दशरथ को तीन पत्नियाँ थी, कौशिल्या, कैकेयी और सुमित्रा!
अरे मनुष्य तो क्या तथाकथित देवता थी बहुपत्निक ही थे!
चन्द्रमा को 27 पत्नियां थी, जिनके नाम से 27 नक्षत्रों के नाम है! इसके बाद भी इन्होने अपने गुरू वृहस्पति की पत्नि तारा से मुँह काला किया!
इन्द्र के बारें मे कुछ कहना ही सूर्य को दीपक दिखाने के बराबर होगा!
अग्निदेव की भी दो पत्नियां थी, स्वाहा और स्वधा!
आखिर जब ये महामानव काम को जीत चुके थे तो एक पत्नि से संतोष क्यो नही होता था!
बहुत सारे लोग मुझे कहते हैं कि तुम पुराणों के संदर्भ से बात करते हो।
अरे भाई! तो इसमे मै क्या करूँ?
क्या पुराणों को मेरे दादा-परदादा ने लिखा था!
चलो अगर पुराणों की बात को ही पूर्णतः सच मान लिया जाये कि ऋषि-मुनियों के पास अप्सराओं को इन्द्र भेजता था, वो तो वैराग्य मे खुश थे!
तब भी यहाँ यह सवाल उठेगा कि ऋषियों की तपस्या भंग करने के लिये इन्द्र अप्सराऐं ही क्यो भेजता था?
क्या इन्द्र जानता था कि ऋषियों के मन मे अप्सराओं की इच्छा है!
आखिर वह अप्सराओं के बदले हीरे-मोती के ढ़ेरों आभूषण और स्वादिष्ठ पकवान भी तो भेज सकता था, जिसकी लालच मे ऋषि-मुनि अपनी साधना तोड़ देते! पर वह हर बार अप्सरा ही भेजता था, इसका कोई तो कारण होगा!
रामायण मे कुम्भकर्ण को नींद से जगाने के लिये रावण ने सुन्दर स्त्री नही भेजी थी, बल्कि स्वादिष्ठ भोजन भेजा था! क्योकि रावण जानता था कि कुम्भकर्ण को स्वादिष्ठ भोजन पसन्द है, और उसकी महक से कुम्भकर्ण जाग जायेगा!
क्या इसी प्रकार इन्द्र जानता था कि ऋषियों को अप्सराऐं पसन्द है, और उनकी पायल की खनक सुनते ही इनकी साधना टूट जायेगी!
उसका यह प्रयोग सच भी होता था, अप्सराओं को देखते ही ऋषि-मुनि लार टपकाने लगते थे, और अपनी वर्षो की कठोर साधना तोड़ देते थे...!!!
आश्चर्य की बात तो यह है कि इन्ही पुराणों मे यह भी लिखा है कि जब कोई असुर तपस्या करता था, तब भी इन्द्र उनके तप को भंग करने के लिये इन्ही अप्सराओं को भेजता था!
तब भी अप्सराऐं आकर अपने लटके-झटके दिखाती थी, पर कोई भी असुर इनके झांसे मे नही आता था!
तो क्या यह मान लेना चाहिये कि ऋषि-मुनि असुरों से भी अधिक लंगोट के ढ़ीले थे...!!!
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