मेरे राजनैतिक प्रेरणा स्रोत बहुजन नायक
09,अक्टूबर, 2006 मान्यवर साहब कांशी राम
वो थे इसलिए आज हम हैं ―
―इतिहास के पन्नों से―
―बहुजन आंदोलन के सजग प्रहरी,बामसेफ,डी.एस.फोर.-4 व बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक एंव जंन्मदाता,बोधिसत्व भारत रत्न बाबा साहेब डा भीमराव अम्बेडकर जी व उनके विचारों, सामाजिक,राजनीति कारवां को पुनः जीवित करने वाले,वैज्ञानिक,बहुजन समाज को सामाजिक चेतना से राजनीतिक चेतना तक ले जाने वाले बहुजन रक्षा वैज्ञानिक-महानायक मांन्यवर कांशीराम साहब जी के परिनिर्वाण दिवस पर शत्-शत् नमन एवं भावभिनी श्रद्धांजलि―
―मैं अकेला ही चला था *जानिब-ए-मंजिल मगर लोग साथ जुड़ते गए और कारवां बनता गया―
―जब जरूरत थी चमन को तो लहू हमने दिया,अब बहार आई तो कहते हैं तेरा काम नहीं ―
―कांशीराम साहब तेरी नेक कमाई तूने सोती कोम जगाई―
―कांशीराम तेरी सोच पे पहरा देंगे ठोक के―
―ऐ मेरे बहुजन समाज के पढ़े लिखे लोगों जब तुम पढ़ लिखकर कुछ बन जाओ तो कुछ समय,ज्ञान,बुद्धि, पैसा,हुनर उस समाज को देना जिस समाज से तुम आये हो ―
बहुजन आंदोलन के सजग प्रहरी,बहुजन नायक मांन्यवर कांशीराम साहब के प्रमुख नारें―
―जिसकी जितनी संख्या भारी, उतनी उसकी हिस्सेदारी.' उनका एक और नारा था 'जो बहुजन की बात करेगा, वो दिल्ली पर राज करेगा ―
वोट हमारा,राज तुम्हारा नहीं चलेगा,नहीं चलेगा―
जिनका स्वाभिमान मरा है वे ही गुलाम है,इसलिए सिर्फ स्वाभिमानी लोग ही संघर्ष की परिभाषा समझे है ―
जिसको जवानीं में चमचागिरी की लत लग जाए उसकी सारी उम्र दलाली में गुजर जाती है
―साथियों बहुजन आंदोलन के सजग प्रहरी,बहुजन नायक मांन्यवर कांशीराम साहब जी के बारे में गुजरात के सामाजिक कार्यकर्ता राजू सोलंकी लिखते है कि―
―आसान नही है कांशीराम बनना,कांशीराम बनने का मतलब है - नींव की ईट बनना,कांशीराम का मतलब है - पुरी जिंदगी का समर्पण―
―कांशीराम का मतलब है - अविरत साईकल रैलिया, अविरत लोकसंपर्क, जनजागृति, संगठन की अहमियत और लोगो के प्रति निष्ठा ―
👉 नब्बे प्रतिशत लोग रिजल्ट देखते है,प्रक्रिया नही देखते 👈
एक आदमी ने अपनी पूरी जिंदगी की राजकीय, सामाजिक, सांगठनिक पूंजी - एक अनजान लडकी को सौंप दी और उसे भारत सहित पुरी दुनिया मे बहुजनो के इतिहास का एक गौरवपूर्ण प्रकरण लिखने का अवसर दिया|
―जहाँ पर हमारी सोच खत्म होती है,वहा से कांशीराम साहब की सोच शुरू होती है―
―आसान नही है कांशीराम बनना ―
15 अगस्त 1988 से 15 अगस्त 1989 के बीच बहुजन आंदोलन के सजग प्रहरी,मां कांशीराम साहब जी ने पांच सूत्रीय सामाजिक रूपान्तरण आन्दोलन चलाया |
ये पांच सूत्र थे- आत्मसम्मान के लिए संघर्ष, मुक्ति के लिए संघर्ष, समता के लिए संघर्ष, जाति उन्मूलन के लिए संघर्ष और भाईचारा बनाने के लिए संघर्ष। इसके लिए मां कांशीराम ने देश के पांच कोनों से साइकिल यात्रायें निकालीं। पहली यात्रा 17 सितम्बर 1988 को कन्याकुमारी से पेरियार के जन्मदिन पर, दूसरी यात्रा कोहिमा, तीसरी कारगिल, चौथी पुरी, और पांचवी पोरबन्दर से चली। ये सभी यात्रायें 27 मार्च 1989 को दिल्ली में पहुँचकर आपस जुड़ गयीं ―
साथियों मां कांशीराम & द आयरनलेडी बहन मायावती जी द्वारा स्थापित बहुजन समाज पार्टी ने उत्तर प्रदेश में ग्राम पंचायतों और नगर निकायों के चुनाव में हिस्सा लिया एवं अच्छी सफलता प्राप्त की। योजनाबद्ध आन्दोलनों से उत्साहित बसपा ने 1989 में लोकसभा तथा विधान सभा का चुनाव लड़ा और तीन सांसदों और 15 विधायकों को उ0प्र0 और म0प्र0 में जिताने में सफलता प्राप्त किया |
स्वयं मां कांशीराम साहब जी ने तत्तकालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के विरुद्ध चुनाव लड़ा। 6 दिसंबर 1990 को मां कांशीराम की 230 दिन लम्बी प्रचार यात्रा प्रारम्भ हुई तथा देश के कोने-कोने में घूमते हुए 15 मार्च 1991 को दिल्ली पहुँची। इस यात्रा के स्वागत में दिल्ली में एक विशाल रैली का आयोजन किया गया। 14 अप्रैल 1991 को इस यात्रा का समापन महू (मध्यप्रदेश) में एक विशाल रैली के साथ हुआ। इस प्रकार 1991 तक कांशीराम बहुजनों के बीच अपना पैर जमा चुके थे |
साथियों 03,जून,1995 को जब बहन मायावती जी ने बसपा के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लिया। यह ऐतिहासिक दिन मां कांशीराम के सपनों के साकार होने का दिन है। जिस दिन मायावती ने शपथ लिया, उस दिन करोड़ों दलितों के आँखों में ख़ुशी के आंसू छलक रहे थे |
भारत के बहुजन उत्थान और अपने अधिकारों के लिए देशभर में चल रही उनकी तमाम लड़ाइयों में कांशीराम का अतुलनीय योगदान है |
साथियों भारत में सर्वप्रथम आधुनिक भारत के निर्माता, विश्वरत्न बाबासाहेब डॉ.भीमराव अम्बेडकर जी ने बहुजनों के लिए सामाजिक,राजनीतिक और आर्थिक अधिकारों की वकालत की. लेकिन जिस एक बहुजन नेता ने उनकी विचारधारा को आगे बढ़ाते हुए भारतीय राजनीति और बहुजन समाज में एक बड़ा परिवर्तन लाने वाले की भूमिका निभाई वो हैं बहुजन नायक मां कांशीराम साहब जी |
मां कांशीराम साहब की जीवनी लिख चुके बद्री नारायण कहते हैं, "कांशीराम की विचारधारा आंबेडकर की विचारधारा का ही एक नया संस्करण है,वो कहते हैं, "हिंदी क्षेत्र में जो सियासी व्यवस्था और उसका संचालन है उन्होंने उसे बहुत गहराई से महसूस किया था और इसमें बदलाव का रास्ता निकाला था कि राज्य की सत्ता पर काबिज होकर जनता का विकास करना और इसके ज़रिए सामाजिक बदलाव लाना―
मां कांशीराम साहब जी पहले ऐसे सामाजिक और राजनैतिक चिंतक रहे, जिन्होंने स्वयं अपना मंच तैयार किया। इसीलिए एक समय ऐसा भी था, जब बड़ी-बड़ी राजनैतिक हस्तियां उनसे मिलने के लिए जाती थी। बल्कि कहना चाहिए कि उनसे मिलने का उन्हें समय लेना पड़ता था। हालांकि कांशीराम जी ने विकट और विषम परिस्थितियों में एक ऐसा मंच बनाया था, जिस पर हजारों और लाखों नहीं, करोड़ों की संख्या में उनके अनुयायी निकल पड़े थे |
मान्यवर कांशीराम साहब के जीवन पर्यंत संघर्ष का मुख्य मकसद था सामाजिक एवं आर्थिक परिवर्तन लाना. उनका मकसद था एक ऐसा समाज बनाना जो समता, स्वतंत्रता, न्याय और बंधुत्व पर आधारित हो. अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिए वे सत्ता को एक साधन मानते थे|
लेकिन उनके सामने अनेक कठिनाइयाँ थीं. अपने संघर्ष और लक्ष्य की प्राप्ति के लिए वे मनी, माफिया और मीडिया को सबसे बड़ा रोड़ा मानते थे. उन्होंने इनसे मुकाबला करने के लिए अलग-अलग रणनीति बनायीं, साथ ही बहुजन समाज के लोगों को इन तीनों से सावधान रहने का आह्वान किया|
हम यहाँ अन्य बिन्दुओं पर विस्तार में जाने की बजाय उन घटनाओं की ओर आपका का ध्यान आकृष्ट करना चाहते हैं जिनसे आप जान सकें कि मान्यवर कांशीराम साहब ने किस-किस प्रकार की परिस्थितियों का सामना करके चुनावों में सफलता के कीर्तिमान स्थापित किये. और बहुजन समाज को सत्ता के मंदिर तक पहुँचाने के लिए मजबूत आधार प्रदान किया |
लोकसभा चुनाव 1984 में मान्यवर कांशीराम ने पहला लोकसभा चुनाव “जांजगीर मध्यप्रदेश” से लड़ा था. मान्यवर के शब्दों में “लोकसभा चुनाव 1984 के लिए हमारे पास न पैसा था, न संगठन औरन ही कोई शक्ति लेकिन, फिर भी हमने हिम्मत और हौसला करके अपने कुछ उम्मीदवार खड़े किये. छतीसगढ़ में कुछ साथियों को, जो मेरे साथ चल रहे थे उनको लड़ाने के लिए मैं उधर पहुंचा. लेकिन छत्तिसगढ़ के लोग थे वो तो पक्के कांग्रेसी थे. श्री खुंटे (टी. आर. खुंटे) को लड़ाने के लिए मैं उधर गया था और उसके ही घर में ही मेरे ठहरने की व्यवस्था थी. उधर उसके बाप ने घर के बाहर भूख हड़ताल शुरू कर दी, यह कहते हुए कि मेरे लड़के का दिमाग ख़राब हो गया है, ये कांशीराम के चक्कर में आ गया है. यह बहुजन समाज पार्टी से चुनाव लड़ना चाहता है, मैं कांग्रेस वालों को क्या जवाब दूंगा. इस तरह वह बेचारा भूख हड़ताल पर बैठा था और उसी के घर पर मैं ठहरा हुआ था तो, मैंने सोचा कि भई मुझे क्या करना चाहिए. जिसको लड़ाने के लिए मैं वहां गया था जब वह नहीं लड़ा तो मैंने सोचा कि मैं तो इसे लड़ाने के लिए यहाँ तैयारी करके आया हूँ. अब ये नहीं लड़ रहा है तो मुझे क्या करना चाहिए. मैंने सोचा कि नामांकन का आज आखिरी दिन है, तो अब मुझे ही लड़ना चाहिए लेकिन, उस वक्त तो मेरे पास नामांकन के दौरान अनामत राशि भरने का पैसा नहीं था |
मैंने उधर चादर बिछाई और बहुजन समाज के जिन लोगों को मैंने तैयार किया था उनसे अपील किया कि आप लोग इस चादर पर थोड़ा-थोड़ा पैसा डालें ताकि मैं 500 रूपये जमा करके अपना नामांकन कर सकूं. जब वहाँ उन्होंने पैसा डाला और मैंने गिना तो 700 रुपया हो गया. उसमें से 500 रूपये डिपोजिट भर दिया और 200 रूपये में मैंने एक साइकिल खरीद ली क्योंकि अब मुझे प्रचार भी करना था. इसलिए मेरे पास साईकिल भी होना जरूरी चाहिए. मैंने सोचा बाकि कर्मचारियों के पास अपनी- अपनी साइकिलें हैं, हम इकट्ठे होकर साइकिल से प्रचार करेंगे. इस तरह से साथियों ! हम लोगों ने प्रचार शुरू कर दिया और मुझे 32 हजार वोट मिले.”―
―हरिद्वार लोकसभा चुनाव 1987 ―
―1987 में हरिद्वार लोकसभा सीट के लिए उपचुनाव हुआ.कांग्रेस पार्टी ने उत्तर प्रदेश का गृहमंत्री चुनाव मैदान में उतारा, तब कांग्रेस का मुकाबला करने के लिए सारी विपक्षियों को मिलकर चुनाव लड़ना पड़ता था.उन सभी विपक्षियों ने रामविलास पासवान को खड़ा किया. उन्होंने रामविलास पासवान को चुनाव मैदान में उतारने से पहले हरिद्वार में हर की पौड़ी पर गंगा स्नान करवाया. ठाकुर चंद्रशेखर ने पासवान को कंधे पर बैठाकर स्नान कराया और पंडितों ने आशीर्वाद दिया कि ‘इसने पवित्र जगह से स्नान किया है, इसलिए यह जरूर जीतेगा.’ कांग्रेस वाले प्रत्याशी ने भी कहा कि ‘मैं तो इधर गंगा किनारे ही पैदा हुआ हूँ, मैं तो हमेशा गंगा में ही स्नान करता रहा हूँ ऐसा करके मैं भी जीतूँगा.’ तब (व्यंग करते हुए) मैं भी मायावती को उनसे एक फर्लांग ऊपर लेकर गया. मैंने कहा कि वे जिधर नहाये हैं, उधर गंगा गन्दी हो चुकी है इसलिए इधर गंगा साफ है इधर आप स्नान करो ताकि मैं घोषणा कर सकूं कि हमारा उम्मीदवार जीतेगा ―
*―मा.कांशीराम साहब अपने भाषणों में अक्सर इस तरह के अन्ध विश्वासों पर व्यंग करते थे―*
―इटावा लोकसभा चुनाव 1991―
―मान्यवर कांशीराम साहब अब तक जितने चुनाव लड़े थे वह समाज को तैयार करने और उसका हौसला बढ़ाने की दृष्टि से लड़ते आये थे. उनका मानना था कि जब तक बहुजन समाज के 50 सांसद जीतकर नहीं पहुँचते तब तक मुझे संसद में नहीं जाना चाहिए. उनका कहना था कि मैं अपने बहुजन समाज को तैयार करके पूरी ताकत के साथ संसद में जाऊंगा. परन्तु 1991 के लोकसभा चुनावों के बाद पूरे पूरे देश के कार्यकर्ताओं ने मा. कांशीराम साहब से व्यक्तिगत मुलाकातें करके आग्रह किया कि सामाजिक परिवर्तन की लहर को आगे बढाने के लिए आपका लोकसभा में जाना जरुरी है ―
अत: अपने निकट सहयोगियों और सक्रिय कार्यकर्ताओं की इच्छा को देखते हुए मान्यवर कांशीराम साहब ने इटावा संसदीय निर्वाचन क्षेत्र से अपना नामांकन दाखिल किया. इटावा में हो रही चुनावी सभाओं में मान्यवर ने ऐलान किया कर दिया था- “अभी तक मैंने समाज को तैयार करने के लिए इलाहबाद में वी. पी. सिंह, अमेठी में राजीव गाँधी व पूर्वी दिल्ली में एच. के. एल. भगत के मुकाबले चुनाव लड़ा किन्तु, अब मैं इटावा से चुनाव जीतने के लिए लड़ रहा हूँ. हमें यह चुनाव जीतना है. कार्यकर्ताओं को भी निर्देश है- ‘करो या मरो’. अगर हम ऐसा नहीं करते हैं तो समाज का मनोबल ऊँचा नहीं कर गपाएंगे. इसलिए हमें बहुजन समाज का मनोबल बढ़ाने के लिए पूरी ताकत तो लगानी ही होगी.”
―इस चुनाव में मान्यवर कांशीराम साहब के मुकाबले समाजवादी जनता पार्टी का रामसिंह शक्य, भाजपा का लाल सिंह वर्मा और कांग्रेस का शंकर तिवारी था. इस मुकाबले में कड़े संघर्ष के बावजूद भी मा. कांशीराम साहब ने भाजपा के उम्मीदवार को 21951 मतों से हराकर विजय हासिल की.मान्यवर की जीत से कार्यकर्ताओं तथा लोगों में ख़ुशी की लहर दौड़ गयी ―
―लोगों का आभार व्यक्त करते हुए मान्यवर कांशीराम साहब ने सार्वजानिक पत्र लिखा- “इटावा लोकसभा चुनाव में सफलता से बहुजन समाज में हर्षोल्लास का वातावरण निर्माण हुआ. इस सन्दर्भ में देश-विदेश से असंख्य बधाई-पत्र तथा टेलीग्राम प्राप्त हुए हैं. इन तमाम बधाई-पत्रों तथा टेलीग्राम का प्रत्यक्ष जवाब देना तो मेरे लिए असंभव है. बहुजन समाज निर्माण की प्रक्रिया में जुड़े हुए तमाम साथियों, हित चिंतकों तथा मित्रों का मैं अत्यंत आभारी हूँ. मंगल कामनाओं के साथ, जय भीम”
―साथियों इस तरह मान्यवर कांशीराम साहब ने अपने पास उपलब्ध छोटे-छोटे साधनों का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल करके तथा धनवानों से मुकाबला करने के लिए अपने निर्धन समाज से थोड़ा- थोड़ा धन का बंदोबस्त करके अपने विरोधियों परास्त किया और सफलता के कीर्तिमान स्थापित किये―
―भारतीय संसद का ऐतिहासिक दिन―
बहुजन आंदोलन के सजग प्रहरी,बहुजन नायक मान्यवर कांशीराम साहब का सांसद में प्रवेश :-
मान्यवर कांशीराम साहब ने 20 नवम्बर, 1991 को प्रात : 11 बजे संसद में उस समय पहला कदम रखा जब संसद में सभी सांसद सदस्य प्रवेश कर चुके थे. संसद के मुख्य द्वार पर जैसे ही मान्यवर पहुंचे तो सैकड़ों पत्रकार, फोटो ग्राफर आदि ने उन्हें घेर लिया. कुछ देर फोटोग्राफरों ने इतने फोटो खींचे की बिजली की सी चका- चौंध होती रही |
इसके बाद संसद की सीढियाँ चढ़ते हुए भी फोटोग्राफरों के फोटो खींचें जाने के कारण उन्हें हर सीढ़ी पर रुक-रुक कर आगे बढ़ना पड़ रहा था. पत्रकारों की निगाह में भी अब तक सांसद तो बहुत जीत कर आते रहे किन्तु कांशीराम साहब की जीत के मायने ही कुछ और थे. इसलिए उनके इंतजार में आज पत्रकार 10 बजे से ही खड़े थे |
इसके बाद आगे बढ़ते हुए मान्यवर कांशीराम साहब ने जब संसद के मुख्य हाल में प्रवेश किया तो सबसे पहले लोकसभा अध्यक्ष श्री शिवराज पाटिल अपनी सीट छोडकर उन्हें लेने पहुंचे और उनसे हाथ मिलाया |
मुख्य हाल में प्रवेश करते ही अन्दर बैठे सभी सांसदों ने अपने स्थान में खड़े होकर इस तरह स्वागत किया जैसे संसद में प्रधानमंत्री के स्वागत में खड़े हुए हों. प्रधानमंत्री श्री पी. वी. नरसिम्हाराव और अन्य पार्टियों के सभी बड़े नेता भी आगे बढ़कर मांन्यवर कांशीराम साहब जी से हाथ मिलाये|
शून्यकाल से पहले जब मान्यवर साहब को शपथ दिलायी गयी तो उस वक्त भी संसद तालियों से गूंज उठा. मान्यवर कांशीराम साहब जी ने अंग्रेजी में “सत्यनिष्ठा” की शपथ ली थी. इस तरह उन्होंने न केवल शून्य से शिखर तक का रास्ता तय किया अपितु भारतीय राजनीति में उनकी इस आगाज ने देश की राजनीति की दिशा भी बदल दी |
―विशेष साभार मा कांशी रामजी के भाषण की CD से साभार मा.साहब के एतिहासिक साहस को नमन तथा नमन उस बहुजन समाज को जिसने फुले-शाहू आंबेडकर और कांशीराम साहब की विचारधारा को समझा और जो समझकर इनकी विचारधारा को जन जन तक पहुँचाने में लगे हैं ―
―संदर्भ-SAMAYBUDDHA's Dhamm Deshna―
―जीवन परिचय ―
*मां कांशीराम साहब जी जन्मं 15 मार्च, 1934 को पंजाब के रोपड़ जिले के ख्वासपुर गांव में दलित (सिख समुदाय के रैदसिया) परिवार में हुआ.
माता-पिता – बिशन कौर और हरी सिंह
शिक्षा- स्नातक (रोपड़ राजकीय कालेज, पंजाब विश्वविद्यालय)
―नौकरी- डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट आर्गेनाइजेशन (डीआरडीओ)―
―नौकरी के दौरान जातिगत भेदभाव से आहत होकर बोधिसत्व भारत रत्न बाबा साहेब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर, ज्योतिबा फुले और पेरियार के दर्शन को गहनता से पढ़कर बहुजनों को एकजुट करने में जुटे ―
―पंजाब के एक चर्चित विधायक की बेटी का रिश्ता आया लेकिन दलित आंदोलन के हित में शादी से मना कर दिया ―
बुद्धिस्ट रिसर्च सेंटर की स्थापना की
मां कांशीराम जी की पहली ऐतिहासिक किताब ‘द चमचा ऐज’ (अंग्रेजी) 24 सितंबर 1982 को प्रकाशित हुआ ―
पे बैक टू सोसाइटी के सिद्धांत के तहत दलित कर्मचारियों को अपने वेतन का 10 वां हिस्सा समाज को लौटाने का आह्वान किया ―
―सबसे पहले बाबा साहेब द्वारा स्थापित पार्टी रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के सक्रिए सदस्य बनें―
―1971 में पूना में आरपीआई और कांग्रेस के बीच गैरबराबरी के समझौते और नेताओं के आपसी कलह से आहत होकर पार्टी से इस्तीफा ―
*―साथियों मां कांशीराम साहब जी राजसत्ता को ‘मास्टर चाबी’ कहते थे जिससे सभी क्षेत्र के बन्द दरवाजे खोले जा सकते हैं। वे राजसत्ता को साध्य नहीं साधन मानते हैं, जिससे ‘सामाजिक परिवर्तन और आर्थिक मुक्ति’ के साध्य को प्राप्त किया जा सके―*
―मां कांशीराम साहब जी के संघर्ष के दिन ―
साथियों 1970-71 की बात है मान्यवर कांशीराम साहब जी को सर्दी के मौसम में कहीं संगठन कार्य के लिए जाना था | तब वे नौकरी छोड चुके थे तथा समाज के संगठन में जुटे हुए थे | उस समय उनकी कोई पहचान भी नहीं बन पाई थी | ऐसे में पैसे की किल्लत होना लाजिमी था | सर्दी से बचने के लिए उन्होने एक कोट खरीदने की योजना बनाई,वे पुराने कपडों के बाजार में पहुँचे पुराने कोट पर भी वे अधिक पैसे बर्बाद करने के पक्ष में नहीं थे उन्होने दुकानदार से और सस्ता कोट दिखाने को कहा―
―दुकानदार ने व्यंग्य में कहा पास के मुर्दाघाट में वहाँ का डोम मुर्दो के कपडे बेचता है , *इससे सस्ता तो वही मिल सकता है मां कांशीराम साहब जी बिना कुछ सोचे मुर्दाघाट में जा पहुँचे | वहाँ रखे मुर्दो के कोटो में से एक कोट उन्होने पाँच रूपये में खरीद लिया तथा उसे पहने खुशी-खुशी अपने मिशन पर निकल गए―
सादगी की ऐसी मिसाल किसी भी भारतीय राजनीतिज्ञ मे ढूंढने से नहीं मिलेगी|
―मां कांशीराम साहब के दर्शन की यह भाषा साधारण जनता को समझाने के लिए थी। वास्तव में वे लोकतन्त्रात्मक शासन प्रणाली में ‘राज्य’ की निर्णायक भूमिका तथा इसे यंत्र की तरह इस्तेमाल करने के सिद्धान्त से सहमत थे। वे ‘राज्य’ पर बहुजन समाज का आधिपत्य स्थापित करना चाहते थे। अपनी योजना की दूसरी कड़ी में उन्होंने कार्यकर्ताओं को तैयार किया। इसके लिए दलित और पिछड़े समुदाय के उस हिस्से को उन्होंने जागरूक करने का लक्ष्य बनाया जो बाबासाहब के आन्दोलन का फल चख रहा था अर्थात् पढ़ लिखकर सरकारी नौकरी कर रहा था। कांशीराम ने उनसे ‘समाज को वापस करो’ का आह्वान किया। इस प्रकार कांशीराम को एक ऐसा कार्यकर्ता समूह मिल गया जिसके पास धन के साथ-साथ समझदारी भी थी ―
विचारधारा,कार्यकर्ता और नेता जैसे आवश्यक स्तम्भों के साथ मां कांशीराम साहब जी संघर्ष की यात्रा पर निकल पड़े |
संघर्ष के लिए आवश्यक अंगों को तैयार करने के पश्चात् कांशीराम ने संगठन का निर्माण कार्य प्रारम्भ किया। कार्यकर्ताओं का प्रशिक्षण तथा संगठन निर्माण का कार्य साथ-साथ चला। इसी क्रम में बाबासाहब के परिनिर्वाण दिवस पर 06 दिसम्बर 1978 को मां कांशीराम साहब ने ‘बामसेफ’ का गठन किया ―
बामसेफ’ पूर्णरूप से गैर राजनीतिक और अनौपचारिक संस्था थी। इसका पंजीकरण भी नहीं कराया गया था। बामसेफ के गठन के तीन वर्ष बाद 06 दिसम्बर 1981 को कांशीराम ने डी.एस.-4 का गठन किया। इस संगठन का पूरा नाम ‘दलित शोषित समाज संघर्ष समिति’ था। यह संगठन राजनैतिक दल तो नहीं था, लेकिन इसकी गतिविधियाँ राजनीतिक दल जैसी ही थीं। इसी संगठन की ओर से धरना प्रदर्शन आदि कार्य किये जाते थे। इसी के बैनर तले चार विशाल रैलियाँ आयोजित की गयी थीं। 14 अप्रैल 1984 को बाबासाहब के जन्मदिन पर कांशीराम जी ने ‘बहुजन समाज पार्टी’ की स्थापना की। उद्देश्य स्पष्ट था- राजसत्ता की चाबी पर कब्जा करना |
बहुजन नायक मां कांशीराम साहब जी का मानना था कि आरक्षण का लाभ लेकर सरकारी नौकरी में पहुंचा वर्ग ही शोषितों का थिंक, इंटलैक्चुअल और कैपिटल बैंक यही कर्मचारी तबका है. दलितों की राजनीतिक ताकत तैयार करने में बामसेफ काफी मददगार साबित हुआ ―
*― राजनीतिक मुहीम की शुरुआत ―*
―बहुजन समाज को एकजुट करने और राजनीतिक ताकत बनाने का अभियान 1970 के दशक में शुरू किया ―
―दलित शोषित समाज संघर्ष समिति (डीएस-4) – दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक समुदाय को जोड़ने के लिए उन्होंने डीएस-4 का गठन किया. इसकी स्थापना 6 दिसंबर 1981 को की गई ―
डीएस-4 के जरिए सामाजिक, आर्थिक बराबरी का आंदोलन आम झुग्गी-झोपड़ी तक पहुंचाने में काफी मदद मिली. इसको सुचारु रूप से चलाने के लिए महिला और छात्र विंग में भी बांटा गया. जाति के आधार पर उत्पीड़न, गैर-बराबरी जैसे समाजिक मुद्दों पर लोगों के बीच जागरूकता और बुराइयों के खिलाफ आंदोलन करना डीएस-4 के एजेंडे में रहे. डीएस-4 के जरिए ही देश भर में साइकिल रैली निकाली गई
भारत की तीसरे नम्बर की पार्टी का सफरनामा
बहुजन समाज पार्टी {बसपा}
14 अप्रैल,1984 को बहुजन समाज पार्टी {बसपा}का गठन,सत्ता हासिल करने के लिए बनाया गया राजनीतिक दल {संगठन} ―
*―1991 में प्रथम बार उत्तर प्रदेश की इटावा लोकसभा से 11वां लोकसभा का चुनाव जीते ―*
―बहुजन नायक मां कांशीराम साहब ने निम्नलिखित पत्र-पत्रिकाएं शुरू की—
―अनटचेबल इंडिया {अंग्रेजी}―
―बामसेफ बुलेटिन {अंग्रेजी}―
―आप्रेस्ड इंडियन {अंग्रेजी}―
―बहुजन संगठनक {हिन्दी}―
―बहुजन नायक {मराठी एवं बंग्ला}―
―श्रमिक साहित्य―
―शोषित साहित्य―
―दलित आर्थिक उत्थान―
―इकोनोमिक अपसर्ज {अंग्रेजी}―
―बहुजन टाइम्स दैनिक―
―बहुजन एकता―
*— एक बार उन्हें भारत का राष्ट्रपति बनाने की भी पेशकश की गई, लेकिन उन्होंने उसे ये कहते हुए इनकार कर दिया कि वो भारत के प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं, राष्ट्रपति नहीं. हैं, "अटल बिहारी वाजपेयी जी ने उनसे एक बार राष्ट्पति बनने की पेशकश की थी,*
लेकिन उन्होंने कहा कि वो प्रधानमंत्री बनना पसंद करेंगे. राष्ट्रपति बना कर आप उन्हें चुपचाप अलग बैठा दीजिए, वो ये मानने के लिए तैयार नहीं थे. वो सत्ता का डिस्ट्रीब्यूशन चाहते थे
वो पंजाबी के गुरुकिल्ली शब्द का इस्तेमाल करते थे, जिसका अर्थ था सत्ता की कुंजी. उनका मानना था कि ताकत पाने के लिए स्टेट पर कब्ज़ा ज़रूरी है.
जातिगत भावना से ग्रस्त दलों के साथ जुड़े दलित नेताओं को वो चमचा नेता कहते थे, जिनको अगर पांच सीट भी दे दी जाए तो वो ख़ुश हो जाते थे."
इसीलिए आज आधुनिक भारत के निर्माता, विश्वरत्न,भारत भाग्यविधाता,बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर जी के सपनों का भारत बनाने वाले बुद्धिजीवियों, कार्यकर्ताओं को बाबासाहेब की पुस्तकों के साथ–साथ मां कांशीराम साहब जी की एकमात्र पुस्तक ‘चमचा युग’ भी पढ़नी चाहिए :-
―विशेष साभार-फारवर्ड प्रेस―
विशेष साभार-: बहुजन समाज और उसकी राजनीति,मेरे संघर्षमय जीवन एवं बहुजन समाज का मूवमेंट,दलित दस्तक,फारवर्ड प्रेस :-
सच अक्सर कड़वा लगता है। इसी लिए सच बोलने वाले भी अप्रिय लगते हैं,सच बोलने वालों को इतिहास के पन्नों में दबाने का प्रयास किया जाता है,पर सच बोलने का सबसे बड़ा लाभ यही है,कि वह खुद पहचान कराता है और घोर अंधेरे में भी चमकते तारे की तरह दमका देता है। सच बोलने वाले से लोग भले ही घृणा करें, पर उसके तेज के सामने झुकना ही पड़ता है। इतिहास के पन्नों पर जमी धूल के नीचे ऐसे ही मां कांशीराम साहब जी का नाम दबा है !
मां- कांशीराम साहब जी ने एक एक बहुजन नायक को बहुजन से परिचय कराकर, बहुजन समाज के लिए किए गए कार्य से अवगत कराया सन 1980 से पहले भारत के बहुजन नायक भारत के बहुजन की पहुँच से दूर थे,इसके हमें निश्चय ही मान्यवर कांशीराम साहब जी का शुक्रगुजार होना चाहिए जिन्होंने इतिहास की क्रब में दफन किए गए बहुजन नायक/नायिकाओं के व्यक्तित्व को सामने लाकर समाज में प्रेरणा स्रोत जगाया |
👉इसका पूरा श्रेय मां कांशीराम साहब जी को ही जाता है कि उन्होंने जन जन तक गुमनाम बहुजन नायकों को पहुंचाया, मां कांशीराम साहब के बारे में जान कर मुझे भी लगा कि गुमनाम बहुजन नायकों के बारे में लिखा जाए 👈
👉ऐ मेरे बहुजन समाज के पढ़े लिखे लोगों जब तुम पढ़ लिखकर कुछ बन जाओ तो कुछ समय ज्ञान,पैसा,हुनर उस समाज को देना जिस समाज से तुम आये हो 👈
👉तुम्हारें अधिकारों की लड़ाई लड़ने के लिए मैं दुबारा नहीं आऊंगा,ये क्रांति का रथ संघर्षो का कारवां ,जो मैं बड़े दुखों,कष्टों को सहकर यहाँ तक ले आया हूँ,अब आगे तुम्हे ही ले जाना है 👈
साथियों एक बात याद रखना आज करोड़ों लोग जो बाबासाहेब जी,माँ रमाई के संघर्षों की बदौलत कमाई गई रोटी को मुफ्त में बड़े चाव और मजे से खा रहे हैं ऐसे लोगों को इस बात का अंदाजा भी नहीं है जो उन्हें ताकत,पैसा,इज्जत,मान-सम्मान मिला है वो उनकी बुद्धि और होशियारी का नहीं है बाबासाहेब जी के संघर्षों की बदौलत है |
साथियों आँधियाँ हसरत से अपना सर पटकती रहीं,बच गए वो पेड़ जिनमें हुनर लचकने का था !
तमन्ना सच्ची है,तो रास्ते मिल जाते हैं,तमन्ना झूठी है,तो बहाने मिल जाते हैं,जिसकी जरूरत है रास्ते उसी को खोजने होंगें
निर्धनों का धन उनका अपना संगठन है,ये मेरे बहुजन समाज के लोगों अपने संगठन अपने झंडे को मजबूत करों शिक्षित हो संगठित हो,संघर्ष करो !
साथियों झुको नही,बिको नहीं,रुको नही, हौसला करो,तुम हुकमरान बन सकते हो,फैसला करो हुकमरान बनो"
सम्मानित साथियों हमें ये बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि हमारे पूर्वजों का संघर्ष और बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। हमें उनके बताए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए !
―बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर जी ने कहा है जिस समाज का इतिहास नहीं होता, वह समाज कभी भी शासक नहीं बन पाता… क्योंकि इतिहास से प्रेरणा मिलती है, प्रेरणा से जागृति आती है, जागृति से सोच बनती है, सोच से ताकत बनती है, ताकत से शक्ति बनती है और शक्ति से शासक बनता है !”
इसलिए मैं आप लोगो को इतिहास के उन पन्नों से रूबरू कराने की कोशिश कर रहा हूं जिन पन्नों से बहुजन समाज का सम्बन्ध है जो पन्ने गुमनामी के अंधेरों में खो गए और उन पन्नों पर धूल जम गई है, उन पन्नों से धूल हटाने की कोशिश कर रहा हूं इस मुहिम में आप लोगों मेरा साथ दे, सकते हैं !
पता नहीं क्यूं बहुजन समाज के महापुरुषों के बारे कुछ भी लिखने या प्रकाशित करते समय “भारतीय जातिवादी मीडिया” की कलम से स्याही सूख जाती है !.इतिहासकारों की बड़ी विडम्बना ये रही है,कि उन्होंने बहुजन नायकों के योगदान को इतिहास में जगह नहीं दी इसका सबसे बड़ा कारण जातिगत भावना से ग्रस्त होना एक सबसे बड़ा कारण है इसी तरह के तमाम ऐसे बहुजन नायक हैं,जिनका योगदान कहीं दर्ज न हो पाने से वो इतिहास के पन्नों में गुम हो गए |
उन तमाम बहुजन नायकों को मै सागर गौतम निडर जनपद - इटावा उत्तर प्रदेश कोटि-कोटि नमन करता हूं !
जय रविदास
जय कबीर
जय भीम
जय नारायण गुरु
जय सावित्रीबाई फुले
जय माता रमाबाई अम्बेडकर जी
जय ऊदा देवी पासी जी
जय झलकारी बाई कोरी
जय बिरसा मुंडा
जय बाबा घासीदास
जय संत गाडगे बाबा
जय पेरियार रामास्वामी नायकर
जय छत्रपति शाहूजी महाराज
जय शिवाजी महाराज
जय काशीराम साहब
जय मातादीन भंगी जी
जय कर्पूरी ठाकुर
जय पेरियार ललई सिंह यादव
जय मंडल
जय हो उन सभी गुमनाम बहुजन महानायकों की जिंन्होने अपने संघर्षो से बहुजन समाज को एक नई पहचान दी,स्वाभिमान से जीना सिखाया
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