बुद्धिज्म की कब्र पर फैला हिंदुज्म
बुद्धिज्म के कब्र पर फ़ैला ब्राह्मानिज्म : एक बौद्धिक व तार्किक चिंतन एवं विमर्श -
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आप या हमलोग जितने भी देव - दानव , सूर - असुर या देवता - राक्षस की लड़ाई के किस्से - कहानियाँ सुनते हैं , ये सभी ब्राह्मणों एवं बौद्धों लड़ाई है , जिसमें बौद्धों को राक्षस के रूप में पेश किया गया है।
बौद्धों के "पवित्र पीपल वृक्ष" , जहाँ बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुईं थीं , उसे भूत का अड्डा एवं मरे हुए व्यक्ति के अवशेष , हड्डी को हांडी में पीपल वृक्ष पर टँगवाया गया , ताकि बौद्धों के अस्तित्व को मिटाया जा सके।
बौद्धों के "पवित्र मुंडन" को अभिशप्त करने के लिये परिवार के सदस्य के मरने के बाद "शोक प्रतीक" के रूप में अगदेवा एवं अन्य सदस्यों का मुंडन करवाया।
बौद्धों के "पवित्र उजला वस्त्र" को "शोक प्रतीक" के रूप में विधवा को पहनवाया गया ।
बौद्धों के दार्शनिकों को "गुरु घंटाल" एवं "ठग" के रूप में पेश किया गया ।
दक्षिण प्लेटो से उतर की ओर बहने वाली फल्गु नदी पर , जहाँ बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ , उस नदी को ही सिर्फ़ अपवित्र नहीं बना दिया गया , बल्कि दक्षिण के सारे चीज़ों को अपवित्र बनाया गया। दक्षिण से बहने वाली हवा एवं दक्षिण तरफ़ के दरवाजे को भी अपवित्र बना दिया गया। यही कारण है कि दबे - कुचले समुदाय को गाँव के दक्षिण में ही बसाया गया।
वहीं उतर के हिमालय एवं इस तरफ से बहने वाली सारी नदियों को पवित्र बनाया व घोषित किया गया। गंगा को शिवजी के जटा से प्रवाहित होना बताया व सिखाया गया एवं गंगा नदी को माँ बना दिया गया , चाहे गंगा जितना भी प्राकृतिक आपदा या कहर क्यों न ढाए ।
जबकि दक्षिण तरफ़ से बहने वाली सोन से अनेकों नहर , मल्टी डैम प्रोजेक्ट , रिजर्वायर , फॉरेस्ट्री ( वानिकी ) , मछली पालन एवं मकान बनाने के लिये बालू दे ! फ़िर भी वह अपवित्र !
बुद्ध ही बुत है , बुद्ध ही भूत हैं , इसीलिए कहा जाता है कि पीपल ( बोधिवृक्ष ) में भूत बसते हैं। भूत काल, बुत काल अर्थात बुद्ध काल|
लोग अक़्सर कहते हैं "भूत -पिशाच"। "भूत" के बारे में तो जान गए , अब "पिशाच" के बारे में भी जान लीजिए। "पिशाच" , यानि 'Genius'.। विरोधी द्वारा प्रचारित किया गया कि 'भूत -पिशाच निकट नहीं आवै'। मतलब एकदम साफ था कि बुद्ध जैसे जिनियस उनके पास न आएँ। ये बुद्ध के तर्कों से डरते थे , आज़ भी डरते हैं , इसीलिए दूर रहने , दूर रखने की सलाह दी गई , ख़ास कर अपने लोगों को अंदर का डर है उनके भूत - पिशाच से।
"चुतिया" शब्द भी बौद्ध सभ्यता के विरोध में हुआ है। पीपल वृक्ष को 'चेतिया' भी बोला जाता था। साथ ही ये चैत्य में "मेडिटेशन" करते थे। चेतिया शब्द से "चुतिया" शब्द बना , जिसका अर्थ बुद्धू या मूर्ख होता है। इस प्रकार दुष्प्रचार के कारण "बुद्ध" से "बुद्धू" बना , एवं उसी तरह "चेतिया" से "चुतिया" बना।
"बुद्ध" की ही कॉपी "शिव" है। हिंदी और संस्कृत में "अवतार" का अर्थ होता है कॉपी। अब समझ जाईये कि भगवान या देवी - देवता के जितने भी अवतार हुए , वे सभी किसी न किसी की कॉपी है।
आप दोनों फ़ोटो में देखिये कितनी समानता है !
1- बुद्ध की फ़ोटो हमेशा "ध्यान मुद्रा" में होती हैं , वैसे ही शिव की फ़ोटो भी "ध्यान मुद्रा" में ही होती हैं ।
2 - जिस प्रकार बुद्ध के बालों की "लटा" बड़ी और "जूड़ा" बँधी हुईं होती हैं वैसे ही शिव के बालों की लटा बड़ी और जूड़ा बँधी हुईं होती हैं ।
3 - बुद्ध के शरीर पर एक चादर या शॉल लिपटी हुई रहती है , वैसे ही शिव के शरीर पर भी शेर या बाघ की ख़ाल लपेटी हुई रहती है।
4 - बुद्ध को दुनियाँ का ज्ञान प्राप्त हुआ था , इसीलिये उनके मस्तिष्क को ज्ञान का प्रतीक माना जाता है , वैसे ही शिव के मस्तिष्क के बीच में तीसरी आँख दिखाते हैं जिससे कि वह सब कुछ जान लेते हैं , ऐसा कहा गया।
5 - बुद्ध ने पीपल के पेड़ के नीचे ज्ञान प्राप्त किया था। आप देखेंगे कि गाँवों में पीपल के पेड़ के नीचे ही अधिकतर गौंड ( नागदेव ) के चबूतरे मिलेंगे। चीन , जापान , बर्मा के बौद्ध मंदिरों के दरवाजे के दोनो तरफ़ सांप के आकार की पट्टी बनी होती है , वैसे ही शिव के गले में भी सांप दिखाया जाता है। मतलब बुद्ध और शिव नागों के ख़ास हैं। ये नागवंशी हैं।
6 - बुद्ध ने भी जंगल में ज्ञान प्राप्त किया था। शिव को भी जंगलों का राजा बताया गया है।
7 - जिसे पाली में "नमो" कहते हैं , उसी "नमो" को संस्कृत में नम: कहते हैं ।
8 - जैसे बुद्ध को "नमो बुद्धाय" कहते हैं , वैसे ही शिव को "ऊं नम: शिवाय" कहते हैं। मतलब कि दोनों के आख़िरी शब्द : बु -धाय , एवं शि - वाय , यानि कि धाय और वाय का सुर लग रहा है।
फ़िर अभी हाल ही में गोरख मठ के प्रधान और यूपी के मुख्यमंत्री ने गुलर के पेड़ों पर अपनी वक्र दृष्टि गाड़ी और इन्हें काटने का आदेश दिया था। यह समझ में नहीं आया कि ये आदेश क्यों दिए है ? कोई इसे अंधविश्वास से जोड़ रहा था तो कोई सवाल पूछ रहा था कि यहाँ भी भूत आ गए क्या? वह भी लाल गुलर पर ?
मुझे जो ज्ञात है उसके मुताबिक़ जैसे सिद्धार्थ को पीपल से जोड़ा जाता है , वैसे ही सिद्धार्थ से पहले हुए बुद्ध "धम्मदसिन्न बुद्ध" को गुलर के साथ जोड़ा जाता है।
सोर्स: बिम्बीजला , भाग संख्या : छः , पृष्ठ संख्या : १५५ , ४९७ - ९८
हमें तर्क के आधार पर ही हकीक़त मालूम चलेगा। बहुत - सी बातें हमें गलत बताई गई है।
आप यदि ध्यान नहीं दिए होंगे तो डिक्शनरी खोलकर देखिएगा कि "सेक्युलर" का वास्तविक अर्थ "लौकिक" होता है। जो "परलोक" में विश्वास करता है , वह "सेक्युलर" नहीं हो सकता है। दुनियाँ के सभी बड़े धर्मों में से सिर्फ़ बौद्ध धर्म की जीवन - दृष्टि ही लौकिक है , सेक्युलर है। बाकी परलोक में विश्वास करते हैं। इसलिए वे सेक्युलर नहीं हो सकते।
"साइमन कमीशन" शूद्रों के अधिकार के लिये आया , पर चूँकि सवर्ण के एकाधिकार का हनन होता , इसीलिए वे विरोध किये। पर हमलोग उनके विरोध का साथ दें तो किसका नुकसान होगा ? ज़रा सोंचिए कि रिजर्वेशन का सवर्ण तबका विरोध कर रहा , तो क्या हमें भी विरोध करना चाहिये ?
आज तक हम यही करते आये हैं कि इनके सभी देवी - देवता आज के मोहन भागवत एवं योगी के वैचारिक प्रिडिसेसर हैं।
शंकराचार्य ने हिन्दू धर्म , यानि भाग्यवादी , कर्मकाण्ड , धर्म की रक्षा की , पर किससे ?
उत्तर स्पष्ट है ! बुद्धिष्ट धर्म से , यानि तार्किक , वैचारिक , कर्मवादी एवं प्रोग्रेसिव धर्म से।
अब सोंचे कि ये हमें बचाया या गर्त्त में धकेला ? मूलनिवासी भरतवंशी के पूर्वज बौद्धिष्ट थे , ज्ञानी थे , पर इन ब्राह्मणों ने उन्हें छल से मारा , बंधक बनाया एवं दास बनाया। सरयु नदी वास्तव में "सरयुक्त नदी" है , जिसे पुष्यमित्र शुंग प्रायोजित फरमान द्वारा सोने के कॉइन्स ( स्वर्ण मुद्रा ) पाने की लालच , लालसा व लिप्सा के लिये लाखों मूलनिवासी बुद्धिष्टों के सर कलम कर सरयु नदी में डाले गये। इनके स्कल ( खोपड़ी व कंकाल ) हज़ारों की संख्या में आज भी मिलते हैं।
यहाँ के दूध देने वाली उत्तम भैंस को दिमाग़ मोटा करने वाला , "काला अक्षर भैंस बराबर" , महिषासुर , यमराज की सवारी इत्यादि बताया गया। इनके साज़िश को समझने की ज़रूरत है हमें ।
✍ Vidrohi Sagar Ambedkar
Sagar Gautam Nidar E-mail:- Sagargautamraaj763@gmail.com 📲9411940763 Etawah Uttar pradesh
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