सिंधु घाटी सभ्यता नारी वादी सभ्यता या पुरुषवादी ✍

सिंधु घाटी की सभ्यता से यह  बात साबित होती है
कि  सिंधु घाटी की सभ्यता पुरुष प्रधान सत्ता नहीं थी
 
 सिंधु घाटी की सभ्यता स्त्री प्रधान सत्ता थी स्त्री ही घर की प्रमुख हुआ करती थी मुझे यह बताने की जरूरत नहीं  स्त्री प्रधान  सत्ता के कारण सिंधु घाटी की सभ्यता एक उन्नत सभ्यता थी 

आर्यों के भारत पर कब्जा करने  के साथ ही   भारत का परिदृश्य बदल गया

 भारत  अचानक पुरुष प्रधान देश बन गया स्त्री दमन सोशण का पर्याय बन गई

  जो स्त्री कल तक घर की  प्रधान हुआ करती थी उसकी तक़दीर में पति के साथ सती होना लिख दिया गया

 कल तक जिस स्त्री के फैसले परिवार के लिए  मान्य होते थे  उसे स्त्री के तकदीर में देवदासी होना लिख दिया गया बिना उसकी  मर्जी के लोग उसका फैसला करने लगे

 सिंधु घाटी की उन्नत सभ्यता यह बताने के लिए काफी है कि स्त्रियों का   बौद्धिक स्तर  कितना ऊंचा और कितना बेहतर रहा होगा 

 स्त्रियों को दिमाग से विकलांग बनाने के लिए और उनका बौद्धिक स्तर नीचे गिराने के लिए उनके ऊपर पतिव्रता का तमगा लगाया गया और बाल विवाह जैसे कानून बनाए गए 

जो औरतें श्रम और मेहनत का पर्याय हुआ करती थी उनको  लाली लिपस्टिक सिंदूर बिंदिया बिछिया और मंगलसूत्र पहना कर बिस्तर का  सजावटी सामान बना दिया गया

 औरतों को धार्मिक जंजीरों में इस  कदर जकड़  दिया गया कि  औरत के अंदर से औरत का वजूद ही  खत्म हो गया 
 
केरल में नवूदरी ब्रह्माणो द्वारा  औरतों के स्तन पर टैक्स लगाना जिसका जितना बड़ा स्तन उतना  ज्यादा टैक्स औरतों से स्तन ढकने का अधिकार छीनना 
 अंग्रेजों द्वारा स्तन ढकने का कानून बनाना यह साबित करता है या बात ज्यादा पुरानी नहीं है

 इतना सब होने के बाद भी आज भी औरतें उन  वैदिक परंपराओं को निभाती आ रही है  जिससे औरतों की गुलामी की जड़े और गहरी होती जा रही है

हमारे देश में अंधविश्वासों की कमी नहीं हैं और उससे ज्यादा झूठे व्रत एवं त्यौहार का भंडार लगा हुआ है। इसी श्रंखला में एक स्पेशल औरतों का करवा चौथ का व्रत जिसके बारे में कहा जाता है कि यह वर्ण व्यवस्था मानने वालों यानि हिन्दुत्ववादी लोगों की औरतों का त्यौहार है।

 ब्राह्मणों ने बताया हुआ है कि इसके मानने वाली स्त्री के पतियों की आय लम्बी हो जाती है।
1. यह करवा चौथ हजारों वर्ष पुराने समय से मनाया जा रहा है तो क्या कोई पति 500 साल से जो जीवित है, मुझे कोई मिला सकता है।
2. जहाँ भी देखें वहाँ विधवाओं की संख्या ज्यादा मिलती है ऐसा क्यों ?
3. आखिर सच्चाई क्या हो सकती है जो केवल मात्र औरतों को ऐसे त्यौहार को मानने हेतु बाध्य किया गया?

आर्य ब्राह्मण विदेशी आक्रमणकारियों के रूप में आये और मर चुके या पराजित मूलनिवासियों अनार्य लोगों की स्त्रियों को बंदी या दासी बनाकर उन्हें प्रजनन हेतु इस्तेमाल करने लगे। 

इसके लिए बाल विवाह और सतीप्रथा लागू करके उसे सनातनी धर्म का जामा पहना दिया। क्योंकि आर्यों ब्राह्मणों को यह डर अक्सर रहता था कि विधवा औरतें दूसरी शादी किसी अन्य जाति के पुरुषों से करने लग गयी तो जाति व्यवस्था खतरे में पड जाएगी और ब्राह्मणों के लिए संकट पैदा हो सकता हैं उसे उत्साहित करने हेतु करवा चौथ शुरू किया। 

उसमें यह बताया गया कि पति पत्नी का सातों जन्म का रिश्ता होता है। यदि पत्नी पति के साथ जल मरती है तो उनकी आत्माओं को भटकना नहीं पड़ता। सीधे स्वर्ग की प्राप्ति होती है। चाहे ये पति तुझको रोजाना दारू पीकर पीटने का काम करता हो यही पति तुझे अगले जन्म में मिलना चाहिए।

 इसीलिए करवा चौथ चलाया तथ उल्लेख किया कि जो औरत जलायी जाने वाली हो यानि सती होने में तैयार हो जाए। तब वहाँ जोरजोर से ढोल नगाड़े बजाने चाहिए ताकि उसके दर्द को अन्य औरत नहीं सुनें। 

यदि उसके दर्द को कोई सुन लेगी तो वह सतीप्रथा के विरोध में मीराबाई की तरह किसी रैदास या रविदास चमार को गुरू बनाकर ब्राह्मणों के विरोध में समता समानता का आंदोलन चला सकती है।

एक अन्य कारण भी है जब आर्यों ब्राह्मणों ने मूलनिवासियों की पत्नियों के साथ बलात्कार किया तो मूलनिवासियों यानि OBC SC ST के लोगों की औरतों विरोध किया। तो उनके पतियों को बंदी बनाकर उनकी औरतों को कहते “यदि तुम सुहागरात की सुहागिन की तरह सज संवर कर हमारा बिस्तर गर्म करेगी तो तेरे पति की आयु लम्बी होगी अर्थात् तेरे पति की जान बक्ख दी जाएगी”। 

यह धमकी थी, कोई व्रत त्यौहार नहीं था, यह एक घिनौनी और स्त्री जाति के अपमान की कहानी थी। जिसका रूप ब्राह्मणों ने बदल दिया और मूलनिवासियों की औरतों को उल्लू बनाकर उसे व्रतत्यौहार के नाम से प्रचलित करा दिया।

कर वा चौथ का सही अर्थ है 
कर यानि लगान , 
वा यानि  अथवा या अन्यथा, 
चौथ यानि हफ्ता वसूली देह शोषण के लिए 

अर्थात् इसका सीधा सादा मतलब है  लगान भरो या फिर अपनी औरतों से चौथ वसूली करवाने की तैयारी करो। यानि अपनी औरतों के बलात्कार के दर्द को सहने की तैयारी करलें। 

यही संदेश मूलनिवासियों के लिए आर्य ब्राह्मणों ने कर वा चौथ  के माध्यम से छोड़ा था।

यह व्रत ज्यादातर उत्तर भारत में प्रचलित हैं, दक्षिण भारत में इसका महत्व न के बराबर हैं. क्या उत्तर भारत के महिलाओं के पति की उम्र दक्षिण भारत के महिलाओं के पति से कम हैं ? क्या इस व्रत को रखने से उनके पतियों की उम्र अधिक हो जाएगी? 

पत्नी की बड़ी उम्र की कामना के लिए भारतीय समाज में कोई व्रत क्यों नहीं? 

क्या महिला के उपवास रखने से पुरुष की उम्र बढ़ सकती है? क्या धर्म का कोई ठेकेदार इस बात की गारंटी लेने को तैयार होगा कि करवाचौथ जैसा व्रत करके पति की लंबी उम्र हो जाएगी? 

मुस्लिम नहीं मनाते, ईसाई नहीं मनाते, दूसरे देश नहीं मनाते और तो और भारत में ही दक्षिण, या पूर्व में नहीं मनाते लेकिन इस बात का कोई सबूत नहीं है कि इन तमाम जगहों पर पति की उम्र कम होती हो और मनाने वालों के पति की ज्यादा, क्यों इसका किसी के पास जवाब नही है? 

मैंने अपनी आँखो से अनेक महिलाओ को करवा चौथ के दिन भी विधवा होते देखा है जबकि वह दिन भर करवा चौथ का उपवास भी किये थी, 

दो वर्ष पहले मेरा मित्र जिसकी नई शादी हुई और पहली करवाचौथ के दिन ही घर जाने की जल्दी मे एक सड़क हादसे में उसकी मृत्यु हो गई, उसकी पत्नी अपने पति की दीर्घायु के लिए करवाचौथ का व्रत किए हुए थी, तो क्यों ऐसा हुआ? 

परन्तु अधिकतर महीलायों ने इस व्रत को मजबूरी बताया हैं. उनका मानना हैं कि यह पारंपरिक और रूढ़िवादी व्रत हैं जिसे घर के बड़ो के कहने पर रखना पड़ता हैं क्योंकि कल को यदि उनके पति के साथ कुछ संयोग से कुछ हो गया तो उसे हर बात का शिकार बनाया जायेगा.

इसे अंधविश्वास कहें या आस्था की पराकाष्ठा पर यह सच हैं  यह व्रत महिलाओं की एक मजबूरी के साथ उनको अंधविश्वास के घेरे में रखा हुआ हैं.

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