दलित राजनीति और मायावती
#दलित_राजनीति_और_मायावती
आज देश की तीन सबसे बड़ी पार्टीयाँ भाजपा, कांग्रेस और बसपा है मतलब सबसे ज्यादा वोट लेने वाली ऊपर की तीन पार्टीयाँ | भाजपा की केन्द्र के अलावा बहुत से राज्यो मे सरकार है, कई राज्यो मे कांग्रेस की भी सरकार है और वो बहुत से राज्यो मे विपक्ष मे है | लेकिन करोड़ो वोट मिलने के बाद भी बसपा की ना किसी राज्य में सरकार है और ना वो कही मुख्य विपक्षी पार्टी ही है | सबसे बड़ी पार्टी भाजपा है और सभी जातियो के वोट लेने मे सबसे आगे है, सीधी सी बात है ताली कप्तान को तो नाकामियो के लिए गाली भी कप्तान को मिलती ही है, इसिलिये मोदी जी को गाली भी धड़ल्ले से सभी जातियो के लोग देते है और मुस्लिम समाज वोट कम और गाली ज्यादा देता है | कमोबेश कांग्रेस को ताली और गाली मिलना भी समझ आता है क्योकि उनकी लंबे समय तक केन्द्र मे भी सरकारे रही है और राज्यो मे भी |
लेकिन जब बात आती है बसपा की मतलब मायावती की, उनको भाजपा को वोट देने वाला गाली देता है, कांग्रेस को वोट देने वाला गाली देता है, ज़िन्होने कभी वोट नही दिया वो भी गाली देता है, जिसका कोई मतलब है वो भी गाली देता है और जिसका कोई मतलब नही वो भी गाली देता है | तकरीबन सवर्ण समाज, बैकवार्ड समाज और मुस्लिम समाज दलितो की दुर्दशा के लिए मायावती को गाली देता मिलता है लेकिन आमतौर पर वोट वो उनको नही देता वैसे गाली देने मे दलित और आदिवासी समाज भी पीछे नही है लेकिन उनको वोट देने मे इतना गुरेज नही है ज़ितना औरो को है|
असली सवाल तो ये है कि जब वो ना सत्ता मे है, ना विपक्ष मे है फिर मीडिया, सवर्ण, मुस्लिम, सिख, इसाई, पिछड़े वर्गो के निशाने पर मायावती क्यो ? उदितराज या चन्द्रशेखर जैसे कई नेता तो सिर्फ मायावती को बदनाम करते करते अपनी राजनीति मे जगह बना लेते है| ये गालियाँ उसके भ्रष्टाचार के लिये होती, तो कोई कोर्ट आज तक कुछ भी साबित क्यो नही कर पाया, ये गाली अगर भाई भतीजावाद के लिए है तो किसी को आज तक विधायक या सांसद बनने के लिये और पार्टीयो की तरह अपने परिवार के सदस्यो को कभी टिकट नही दिया, पासवान जी की तरह मंत्रीपद के पीछे बड़ी पार्टियो के साथ खड़े होने की होड़ मे भी नही रही बल्कि अपने अड़ियल स्वभाव के कारण कई बार मुख्यमंत्री पद तक की कुर्सी हाथो से निकलती रही है|
ये तकरीबन हर मौके पर कांग्रेस की सरकार को बाहर से समर्थन देने के बावजुद भी कांग्रेस मायावती को भाजपा की दलाल कहती है, इनके चुने हुए विधायको को तोड़ती भी रहती है, राजस्थान इसका जीता जागता उदाहरण है | अटल बिहारी की सरकार गिरवाने का काम मायावती करती है लेकिन फिर भी तकरीबन मुस्लिम समाज उनको भाजपा की एजैंट मानकर रिजेक्ट करता आया है जबकि अपने शासन मे हिन्दू मुस्लिम दंगो पर नकेल कसके मुस्लिम समाज को अपने कार्यकाल मे किसी प्रकार का नुकसान नही होने देती|
कानुन व्यवस्था और एडमिनीस्ट्रेशन के मामले मे पुरे देश मे आजतक ऐसा कोई मुख्यमंत्री नही देखा जो एक बिगड़े हुए प्रदेश की कानुन व्यवस्था को पटरी पर ले आया हो लेकिन ये बहनजी ने करके दिखाया था| फिर विरोध और बदनामी के मामले मे सबसे आगे मायावती ही क्यो और क्यो बहन जी को बदनाम करना सबसे आम बात हो चुकी है | इनको भैंसंवती, दौलत की बेटी, टिकट बेचने वाली, दलितो का नेता ना उभरने देने वाली, जातिवादी, दलाल, बिकाऊ आदि कहना राजनीति की मजबुरी है या जातिवादी मानसिकता का जहर है या औरत का अपमान करने की संस्कृति है या दलित समाज की केकड़ा प्रवृति है या राजनीति मे किसी दमदार दलित नेता और वो भी औरत का होना पुरूषवादी समाज की मनुवादी सोच के ऊपर सीधा हमला है|
बहन जी को बदनाम किया जा सकता है लेकिन उन जैसा होना आज के नेताओ के बस की बात ही नही है, वो घर से उस समय गाँव गाँव घुमकर प्रचार करने की हिम्मत रखती थी जब उतरप्रदेश मे सुरज छिपने के बाद लोग घरो से बाहर निकलने की हिम्मत नही जुटा पाते थे| विरोधी गुटो के और चमचायुग के चमचे कहते फिरते है कि वो सीबीआई से डर गई, मेरा मानना है वो सीबीआई तो क्या उनके किसी काल्पनिक और राजनैतिक भगवानो से भी नही डरती|
मान्यवर काशी राम का सामाजिक और राजनैतिक मुवमेंट बहन जी के बिना सफल होना मुश्किल काम था और ये बात तभी साबित हो जाती है जब मान्यवर काशीराम उनको बसपा मे अपना उतराधिकारी घोषित करते है| आजकल तो मान्यवर काशीराम की फोटो लेकर ही लोग उनकी पार्टी को खत्म करने की बात करते है, ये बचकाना लगता है| वो भारत मे अब तक के दलित समाज के सबसे ताकतवर नेताओ मे से एक है और आज जिन्दा नेताओ मे तो कोई भी दलित नेता उसके कोई आसपास भी खड़ा नजर नही आता| वो चाहती तो आराम से किसी भी सरकार मे कोई पावरफुल कैबिनेट मिनिस्टर का पद लेकर बाबा साहिब और मान्यवर के मिशन का सौदा कर सकती थी लेकिन शायद वो किसी और ही मिट्टी की बनी है|
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