बहुजन समाज पार्टी एक मिशन 💐💐💐



एक राजनीतिक पार्टी - 

जब मुसलमानों को १०२ टिकट देती है तो वह मुस्लिम परस्त हो जाती है और सारे मोदियाए ओबीसी कहते है की वह तो मुस्लिम के चलते ओबीसी की अनदेखी करती है इसलिए इसे हराओ । और मोदीआए हुए शेष बचे ओबीसी मोदी को ही वोट देकर मायावती को हरा देते है ।

 वहीं ओबीसी मोदी को वोट दिया केवल इसलिए कि बसपा ने मुसलमान को टिकट दिया ओबीसी की अनदेखी की । लेकिन मजेदार बात है कि वही भाजपाई ओबीसी मुसलमान को डराता भी है कि मायावती को वोट मत देना क्योंकि उसका कोई ठीक नहीं कब भाजपा से मिल जाय !! 

 नीम पर करेला यह की मुसलमान का पसमांदा तबका यह आरोप लगता है कि बीएसपी मुसलमान के नाम पर शेख ,सैयद ,पठान , मुगल को ही बढ़ावा देती है पसमांदा को नहीं जिसकी आबादी अपने समुदाय में ९० प्रतिशत है ।इसलिए वह सपा को वोट देती जो इन्हें रतीभर घास नहीं डालती ।वह कांग्रेस और राहुल गांधी के पीछे भागती है केवल इसलिए कि उसे 'धर्मनिरपेक्षता 'जो  कांग्रेस का कोर वोट बच गया है उसे मिल जाए ! मतलब मार्फत कांग्रेस सपा को वोट करने में मुस्लिम को कोई दिक्कत नहीं आती ,जबकि उसके पहले सपा को आरएसएस का एजेंट बताते नहीं थकते ।सपा आरक्षण पर सवर्णों जैसा रुख रखे ,सॉफ्ट हिंदुत्ववादी हो जाए ,पसमांदा शब्द उनके जुबान पर न आए तब भी ।

 उससे भी मजेदार बात यह है कि मायावती अपने कार्यकाल में मुख्यमंत्री के रूप दो दो बार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को चिट्ठी लिखी की मुसलमान को १० प्रतिशत आरक्षण दिया जाय । मतलब प्रदेश सरकार के रूप में केंद्र सरकार को चिट्ठी लिखना कोई मामूली बात नही है ।किसी मुस्लिम संगठन को इस मांग का समर्थन करते या मायावती का बैकअप करते हुए देखा है ? नहीं  ना ? आखिर क्यों ? छोड़िए मायावती को किसी मुस्लिम राजनीतिक पार्टी ,सामाजिक संगठन ,मौलवी उलेमा को अपने लिए १० प्रतिशत आरक्षण मांगते देखा या सुना है ? उनकी बस एक ही चिंता रहती है कि मायावती को वोट नहीं देना है । क्योंकि वह बीजेपी से मिल जाएगी ! 

 अब उन्हें कौन बताने जाए कि ओबीसी आरक्षण में ९० प्रतिशत पसमांदा सम्मिलित है अगर अलग से मुस्लिम के लिए १० प्रतिशत आरक्षण मिल जाए तो उन्हें क्या घाटा है ।पहले तो जरूरत है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा जो अवैधानिक रूप से पचास प्रतिशत की जो लिमिट लगा दी गई है उस तोड़ा जाय ।यह तो तभी हो सकता है जब संसद में इसपर  बहस हो ,संसद में बहस तब होगा जब समाज में और एकड़ेमिक रूप से बहस होगा ।कितने मुस्लिम बुद्धिजीवी अपने आरक्षण बहस करते है ? उन्हें तो बस तीन तलाक़ और बाबरी मस्जिद पर बहस कराया जाता है ।जब वह कौम  अपने लिए बहस नहीं कर सकती है तो कांग्रेस या बीजेपी उनके लिए बहस करेगी ? मायावती तो करती है और अपने सिद्धांत पर अडिग है । फिर भी वह मुस्लिम के लिए अस्वीकार्य है ! अस्वीकार्य मतलब ये नही की मुस्लिम वोट देता ही नही ,देता है मगर मास नहीं देता ,जिन्हें बसपा का मतलब समझ में आता है जरूर देता है । हां बीएसपी इसका चिंता भी नहीं करती की मुस्लिम मास उसे वोट क्यों नहीं देता ।क्योंकि मुस्लिम बाबरी मस्जिद और तीन तलाक़ बचाने के फेर में है आरक्षण लेने के फेर में नहीं ।मायावती बिना सरकार में आए उसे बचा भी नहीं सकती ,मायावती क्या मुस्लिम खुद नहीं बचा सकते हैं ।इसलिए यह फर्जी मुद्दा है यह सवर्णों का मुद्दा है ,ब्राह्म्णवादियों का मुद्दा है ।

 अब आते है मंडल कमीशन और पिछड़े पर । बसपा का राजनीतिक आंदोलन की शुरुआत मंडल कमीशन को लागू करवाने  से होता है ।मुझे याद है कि १९९० --९१ से पहले मंडल कमीशन का नाम किसी ने सुना भी होगा ! उसके पहले रामविलास भी थे ,लालू जी भी थे ,मुलायम सिंह यादव भी थे ।क्या किसी न इनके मुंह से मंडल कमीशन का नाम सुना था । कोई दिखा सकता है कि १९८९ से पहले ये संसद में मंडल कमीशन पर कितने शब्द बोले है ? उसको लागू करवाने के लिए कोई राजनीतिक आंदोलन चलाया है ?  मंडल कमीशन की रिपोर्ट तो १९८० में ही जमा हो चुकी थी जैसे सच्चर रिपोर्ट कई सालो से सांसद में धूल चाट रही है वैसे ही मंडल कमिशन धूल चाट रही थी ।क्या लालू ,क्या नीतीश ,क्या रामविलास ,क्या मुलायम ,क्या शरद सब चुप थे इसके बावजूद की ये राजनीति  में सक्रिय थे । जानते है क्यों चुप थे क्योंकि इनके राजनीतिक आका सवर्ण और ब्राह्मणवादी थे और उनके सामने इनकी हिम्मत नहीं थी कि अपने खुद और समाज का मुद्दा उठा सके । यही कारण है कि आज भी ये एनडीए और यूपीए के रूप में सवर्ण और ब्राह्मणवादी का गुलामी करना पसंद करते है रिस्क लेकर अपना स्वतंत्र अस्तित्व नहीं बनना नहीं चाहते । वह तो 'सनकी '' (सवर्ण यहीं कहते है ) वीपी सिंह की देन है कि मान्यवर कांशीराम का मंडल कमीशन मुद्दा खुद की कुर्सी बचाने के लिए और बसपा का आवेग काम करने के लिए मंडल  कमीशन को लागू कर दिया । इसके दो फायदे हुए , इन चमच्चो की दलित  -पिछड़े की प्रोफाइलिंग हो गई और दलित पिछड़े का बसपा के तरफ बहाव रुक गया । ये अपने अपने जाति के नेता बन गए और अपने अपने कुनबा संभालने में तल्लीन हो गए ।आज सबसे  बुरा हाल ओबीसी का है ! २८ प्रतिशत आरक्षण होने के बावजूद ४ प्रतिशत भागीदारी ,और किसी तथाकथित ओबीसी बुद्धिजीवी या नेता में इतना कुव्वत नहीं बचा है कि ओबीसी जनगणना की रिपोर्ट प्रकाशित करवा ले । आज यह समाज पंगु है और मोदी मोदी भजने के लिए अभिशप्त । चाहे वह कुशवाहा हो ,कुर्मी हो ,तेली हो ,सैनी हो ,कुम्हार ,लोहार , बढ़ई हो ।

 जाटों ने दलित पर आत्याचार किया यह बात जगजाहिर है । हरियाणा में जाट और दलित का संघर्ष है । लेकिन जाट नॉन ब्राह्मण है उनका ब्राह्मण वाद के खिलाफ संघर्ष का एक इतिहास है ।यह अलग बात है कि दयानंद सरस्वती ने उन्हें आर्य समाजी बनाया ,उनका ब्राह्मणीकरण किया । फिर जब जाट के आरक्षण की बात आती है तो मायावती उसका समर्थन करती है ।फॉरवर्ड प्रेस जैसे मोदी भक्त कोइरी उर्फ ओबीसीवादी उसे भी निंदा और आलोचना का कारण बना देते हैं !!
मायावती ने दक्षिण कर्नाटक में देवगौड़ा से समझौता करती है ,उनके बेटे को मुख्यमंत्री बनाने में मदद करती है ।उससे पहले अखिलेश और सपा के लाख दलित विरोधी काम करने के बावजूद बिना शर्त समर्थन देती है और तीन पिछड़ों को लोकसभा में भेजने का काम करती है । यह है मायवाती का मिशन और प्रतिबद्धता । फिर भी आम परसेप्शन बनाने की कोशिश की जाती है कि मायावती ओबीसी विरोधी है !

सवर्ण की बात करे तो बसपा गरीब सवर्णों को १० प्रतिशत आरक्षण देने की बात करती है । लेकिन सवर्णों को सिखाया जाता है कि बसपा तो कहती है कि तिलक तराजू और तलवार ,उनको मारो जूते चार ।वह आ जाएगी तो सवर्णों को कच्चा चबा जाएगी । ऊपर से पाकिस्तान और मियां का डर फैलाया जाता है ।फिर यह भी डर फैलाया जाता है कि मुस्लिम विधर्मी और दलित अधर्मी दोनों मिल जाएंगे तो सवर्णों की जात ,धर्म और संस्कृति तीनों खतरें में पड़ जायेगा ।इस डर से सवर्णों का  मिडिल क्लास और लोअर क्लास तबका मोदी का हर बकलोली ,नोटबंदी , जीएसटी ,महंगाई ,झेलने के लिए तैयार और तत्पर है ।ऊपर से मायावती का कानून व्यवस्था पर सवाल उठाना मोदियाते ओबीसी के लिए ब्रहमिनवाद हो जाता है । अब सवर्ण कम्युनिस्टों से कोई पूछे कि सवर्णों के लिए १० प्रतिशत आरक्षण मांगना जातिवाद कैसे हो गया और मायावती केवल चमारो की पार्टी कैसे है ,क्योंकि यह बात वे अपने हर लेख में लिखतें रहते हैं । वहीं धूर्त ओबीसी और चमच दलित बुद्धिजीवी से पूछना चाहिए कि दस प्रतिशत सवर्ण गरीब को आरक्षण देने से इनको क्या नुकसान हो जायेगा ? जबकि ये खुद रह रह कर सवर्णों में क्रीमी लेयर और आबादी के हिसाब से आरक्षण देने की मांग करते हैं । ऊपर से तुर्रा यह की ये बुद्धिजीवी मायावाती का सलाह कार भी बनना चाहते है ! इन्हें पता ही नही की राजनीति में कान कभी उल्टा भी पकड़ा जाता है ।

  अब फेसबुक पर लोग सिखाएंगे की राजनीति कैसे की जाती है तो हम जैसे बुद्धिजीवी इसी तरह जज करेंगे  न ?

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