अखिलेश की गिरी हुई मानसिकता 👇👇
*अखिलेश यादव जी की मानसिकता*
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*पता नहीं अखिलेश यादव की मानसिकता इतनी दलित विरोधी क्यों थी ? उनकी पूरी 5 साल की राजनीति दलित विरोध के इर्द गिर्द ही घूमती रही । उनको शायद लगा कि अगली बार मौका मिले या ना मिले इसलिए जो इनका बिगाड़ना है अभी बिगाड़ लो । उनको लगा अगर इन जिलों विश्विद्यालयों का नाम नही बदला तो मुझको क्षत्रिय कौन कहेगा ? हिन्दू हृदय सम्राट में मेरी गिनती कैसे होगी ? उन्होंने मान्यवर कांशीराम के नाम पर बने कृषि विश्वविद्यालय का नाम बाँदा कृषि विश्वविद्यालय कर दिया और एक मेडिकल कॉलेज का नाम बदलकर मौलाना शेखुल हिन्द के नाम पर कर दिया। गौतम बुद्ध टेक्निकल यूनिवर्सिटी का नाम बदलकर डॉक्टर अब्दुल कलाम यूनिवर्सिटी कर दिया । किसके नाम पर क्या किया ये महत्त्वपूर्ण नही है बल्कि महत्त्वपूर्ण यह था कि वो अपनी खुद की एक भी यूनिवर्सिटी नही बना पाए बल्कि बसपा सरकार द्वारा बनाये गए विश्विद्यालयों के ही नाम बदलते रहे । सृजन की नही विनाश की राजनीति करते रहे । अपने तरफ से कुछ भी बनाते उसका कुछ भी नाम रखते किसको दिक्कत होती ? उन्होंने छत्रपति शाहूजी महाराज मेडिकल कॉलेज का नाम बदलकर भी किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी कर दिया । बहनजी ने पुराने जिलों के नाम नही बदले बल्कि नए जिले बनाकर उनका नामकरण किया । पंचशील नगर, रविदास नगर, संत कबीरदास नगर, महामाया नगर, अम्बेडकर नगर ये नए जिले बनाये थे । अखिलेश यादव की इतनी विरोधी मानसिकता सभी जिलों के नाम बदल डाले । लखनऊ के अम्बेडकर पार्क को जनेश्वर मिश्र पार्क बना डाला । गौतम बुद्ध यूनिवर्सिटी से अंतिम वर्ष के छात्रों को पढ़ने के लिए विदेश भेजा जाता था । अखिलेश यादव ने उस योजना को खत्म कर दिया । बसपा सरकार ने अनुसूचित जाति जनजाति के ठेकेदारों को सरकारी ठेकों में तीस प्रतिशत आरक्षण दिया था । अखिलेश यादव ने उस आरक्षण को भी खत्म कर दिया । सरकारी भूमि आवंटन में अनुसूचित जातियों जनजातियों को मिलने वाली प्राथमिकता अखिलेश सरकार ने खत्म कर दी । अनुसूचित जाति के छात्रावासों में सामान्य वर्ग के छात्रों को 30 प्रतिशत आरक्षण दिया अखिलेश सरकार ने । कोर्ट के आदेश की आड़ लेकर अपनी योग्यता के दम पर प्रोन्नत हुए अनुसूचित जातियों के अधिकारियों को गलत तरीके से अवनत किया अखिलेश यादव सरकार ने । प्रोन्नति में आरक्षण बिल को फाड़कर उसको अपनी उपलब्धि बताने का दुस्साहस श्री अखिलेश यादव के अतिरिक्त कोई और नही कर सकता था । आज जब अनुसूचित जाति जनजातियों को एक तरह से उच्च शिक्षा से वंचित कर दिया गया है तो दिल का दर्द फूट पड़ा क्योंकि इस महान कार्य की शुरुआत भी अखिलेश भैया ने ही की थी । इन सबके बावजूद अगर आज कोई अखिलेश यादव को दलित हितैषी कहता है तो वो धूर्त ही है । एक पूरी किताब लिखी जा सकती है*
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