हाथी ही क्यों :- 26 सितम्बर 2018 👇👇

पहला हाथी हड़प्पाइयों का है। दूसरा हाथी मौर्यों का है। हड़प्पाइयों को, मौर्यों को हाथी की जानकारी थी। किंतु आर्यों को हाथी की जानकारी नहीं थी।

मध्य एशिया के पूरे इलाके में हाथी नहीं थे। आर्य लोग जब भारत आए, तब वे हाथी से परिचित हुए। वे आश्चर्य में थे कि भारत में ये कैसा पशु है? इसको तो हाथ है। वे सूंड़ की तुलना हाथ से किए और हाथी का नाम मृग हस्तिन रख दिए। वे मृग ( पशु ) से परिचित थे। किंतु हाथी से नहीं थे।

मृग हस्तिन का अर्थ हुआ - हाथ वाला पशु। मृग का प्राचीन अर्थ पशु है। बाद में इसका अर्थ हिरण हुआ। शाखामृग ( बंदर ), मृगराज ( सिंह ) जैसे शब्दों में मृग हिरण का नहीं, पशु का वाचक है।

मृग हस्तिन ही हस्तिन, फिर संस्कृत में हस्ती ( हाथी ) हुआ। अशोक काल में हाथी को गज कहा जाता था। दूसरे चित्र में हाथी के नीचे ब्राह्मी में गजतमे लिखा हुआ है। यह अभिलेख अशोक का है।

जैसा कि आप जानते हैं कि अरब के लोग इमली से परिचित नहीं थे। भारत आकर जब वे इमली से परिचित हुए, तब वे इमली का नाम अरबी में तमर - ए - हिंद रखा। तमर - ए - हिंद का मतलब हिंद ( भारत ) का खजूर। वे खजूर से परिचित थे। किंतु इमली से नहीं थे। इसीलिए वे इमली को तमर - ए - हिंद बोले। यहीं अंग्रेजी में Tamar - ind ( इमली ) है अर्थात Tamar of India.

ठीक अरबों की तरह आर्यों ने भी हाथी से परिचित नहीं होने के कारण वे गज को मृग हस्तिन कह बैठे।

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