24 सितम्बर 2018

तीन साल पहले 👇👇👇
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आरक्षण बचाओ संघर्ष समिती के अंतर्गत
जनपद इटावा कोर्ट परिसर मै सही मिशन के बारे मै खुल कर बयां करती सीमा सागर अम्बेडकर 
साहब कांशिराम ज़िन्दाबाद बहिन जी ज़िन्दाबाद
# बसपा_का_युवा_नेतृत्व_और_मीडिया
_की_भूमिका
कमसेकम 8-10 साल तो हो ही गए होंगे फेसबुक इस्तेमाल करते करते। बसपा का सक्रिय सदस्य बनकर भी लगभग इतना ही वक्त हुआ है। इन गुजरे लम्हो में मान्यवर कांशीराम साहब के द्वारा कही गई बातों का वास्तविक अनुभव हुआ है। मान्यवर ने मनी, मीडिया, माफिया से सावधान रहने को यूँ ही नही कहा था।
आज हमारी फ्रेंडलिस्ट में 4800 के करीब लोग है। 5000 से कम करता आया हूँ। साथ ही 800 के करीब फॉलोवर्स है। मेरी फ्रेंडलिस्ट में जितने भी बसपा के कार्यकर्ता या समर्थक है, उनमे से कई 5000 दोस्तो की हद तक पहुंच चुके है और उनके भी सैंकड़ो या हजार में फॉलोअर है। मैं किसी एक व्यक्ति विशेष का नाम नही लेना चाहता, लेकिन कई युवा ऐसे है जो मिशन की समझ रखते है, बहनजी की राजनीति को समझते है। उन्होंने बाबासाहब को जी भरके पढ़ा है और बाबासाहब को समझने की पूरी पूरी कोशिश की है। मान्यवर कांशीरामजी के त्याग से वह भलीभांति परिचित है और आज के परिप्रेक्ष्य में उनका नजरिया काबिल-ए-तारीफ है। मिशन के साथ देश प्रदेश में चलनेवाली राजनीति को भी वह बखूबी समझते है और बहुजन समाज के साथ अन्याय की वजह भी उन्हें पता है। ऐसा शायद ही कोई मसला हो, जैसे राफेल डील या नोटबन्दी घोटाला, जिसपर उनका कम अभ्यास या जानकारी हो।
उसके बावजूद बहनजी कभी किसी युवा को किसी न्यूज़ चैनल को डिबेट के लिए नही भेजती, भले ही वह बसपा का सक्रिय कार्यकर्ता, पदाधिकारी क्यों न हो। तो क्या बहनजी नही चाहती कि कोई युवा न्यूज़ चैनलो में छा जाए? या अपने जोरदार तर्क और तथ्यों से विरोधियो का मुंह बंद कर दे? क्या बहनजी नही चाहती कि कोई युवा नेतृत्व पार्टी में पैदा हो? क्या विरोधी पार्टियाँ जो बहनजी के बारे में कहती है कि बहनजी किसी क्रांतिकारी को पसंद नही करती यह सच है?
आईये, सच क्या है जानने की कोशिश करते है। सच्चाई यह है की मान्यवर कांशीरामजी ने हमे जिन तत्वों से बचने को कहा था उनमे मनी, मीडिया और माफिया शामिल है। बसपा का काम करते वक्त हमने इन बातों को अनुभव किया है। बहनजी का विशेषण या प्यार से दी गई उपाधि बहनजी है, लेकिन उनकी सच्ची भूमिका एक माँ की है। एक ऐसी मां जो आने बच्चों को किसी भी नुकसान से बचाती है। एक मां जो अपने बच्चों को बेइज्जत होने से बचाती है, एक मां जो मनुवादी साजिशों से, निराशा से, अपमान होने से अपने समाज के जवान बच्चों को बचाना चाहती है। बहनजी को पता है आज का "हिंदुस्तानी" मीडिया ऐसा है जहां जातिवाद कुट कूटकर भरा है। काँग्रेस की ओर से कोई शुक्ला, भाजपा की ओर से कोई दुबे, आप की ओर से कोई पांडे, न्यूज़ चैनल का एंकर कोई शर्मा, स्पेशलिस्ट कोई त्रिवेदी और चैनल का मालिक कोई गोयल होता है जो अपना सरनेम छुपाता है। यह एक ऐसा नेक्सस होता है जिसमे पक्ष भी वही, विपक्ष भी वही, वही पुलिस और वही जज होता है। इस टोली में अगर हमारे बुद्धिमान बसपा कार्यकर्ताओ या समर्थको में से भी कोई जाएगा, तो भी वह अपनी व्यवस्था का उपयोग करके कुछ ऐसा दिखाने की कोशिश करेंगे जिससे उनका वांछित उद्देश्य पूरा हो।
मीडिया के इस जातिवादी, बिकाऊ, संकीर्ण और घटिया मानसिकता को बहनजी भकिभाँति पहचानती है। इसलिए वह सिर्फ सिर्फ कांफ्रेंस लेती है और मीडिया कुछ हेरफेर न कर पाए या दूसरा मतलब ना निकाले इसलिए सबकुछ पहले लिखकर लाती है। जब मान्यवर कांशीरामजी की सबसे बड़ी अनुयायी को मीडिया से इतना सतर्क रहना पड़ता है तो हम और आपकी बिसात क्या है? दलित के जातीय उत्पीड़न, आदिवासियों की जल, जंगल, जमीन कब्जाने के लिए उनके सामुहिक नरसंहार और मुस्लिमो की मोब लिंचिंग की बजाए फिल्मी हीरो हीरोइनों की, उनकी निजी जिंदगी के लफडो पर पूरा दिन बितानेवाले मीडिया के लिए जाहिर है, हम आज भी # अछूत है। इसलिए हम तो पलभर में ताड़ लेते है की हमारे समाज मे जन्म लेकर जो मीडिया का चहेता है, वह भविष्य में अपनी औकात बितानेवाला है। आज ही कांग्रेस जॉइन करनेवाले एक व्यक्ति की हरकतों को हम शूरु से ही समझ रहे थे जब उसने # बसपा_यूथ नाम से अपनी ऑनलाईन दुकान लगाई थी। कुछ लोगो को तो उसकी केंद्रीय लिस्ट में शामिल होने पर अपार हर्ष हुआ था। लेकिन हमें मान्यवर कांशीरामजी द्वारा तय किया गया वह क्राइटेरिया पता है जिसमे उन्होंने अपने 50 एमपी चुनकर आने तक बसपा की कोई और विंग बनाने से इनकार किया था। जिन्हें मेरी इस बात पर शक हो, वह मान्यवर कांशीरामजी के साथ काम किये पुराने साथियो से तसल्ली कर सकते है।
इसलिए जिन्हें बहनजी से शिकायत हो वह अपनी गलतफहमी दूर करे कि बहनजी युवाओ को मौका देना नही चाहती या युवा नेतृत्व पैदा करना नही चाहती। असल मे बहनजी हमारी ऊर्जा, समय और बुद्धि को एक ही जगह इस्तेमाल करना चाहती है और वह है सत्ता पाने के लिए। एक बार हम केंद्रीय सत्ता पा ले तो हमारे समाज मे उस आत्मविश्वास का संचार होगा जो कहेगा की हम केंद्र की सत्ता पाने लायक काबिल बन गए है। तब हमारे समाज के जो लोग आज कांग्रेस भाजपा और बाकी मनुवादी दलो का काम करते है, वह उन्हें छोड़ देंगे और बसपा से जुड़ेंगे। आज की तारीख में हम अलग अलग विंग तैयार कर अपने आप मे अंतर्विरोध को बढ़ावा देना नही चाहते जिसमे कोई युवा जिलाध्यक्ष या महिला जिलाध्यक्ष बसपा जिलाध्यक्ष से कहे कि मैं तुम्हारे आदेश क्यो मानु, मैं खुद भी जिलाध्यक्ष हूँ। हमे युवाओ के जोश के साथ तजुर्बेकारो के होश की भी जरूरत है। इसी लिए बहनजी ने बसपा संगठन में 50% पद युवाओ के लिए रख छोड़े है। अब इस 50% का फायदा लेकर कोई बसपा में कैडेराईज्ड होकर, अनुशासित ढंग से काम करना नही चाहता इसका मतलब मिशन की सफलता से ज्यादा उसे अपनी इमेज चमकाने में ज्यादा दिलचस्पी है। हम बसपा में किसी की इमेज चमकाने की बजाए संगठन की इमेज चमकाने के प्रयास करते है ताकि व्यक्तिगत स्वार्थ पूरा न होनेपर कोई संगठन छोड़कर जाए तो संगठन का नुकसान और उस व्यक्तिका फायदा न हो। लेकिन जिन्हें मीडिया पैदा करती है, उन्हें हमपर थोपती है उन्हें तो सिर्फ चमक दमक और मिशन के नाम पर उछल कूद चाहिए होती है। मीडिया के चाल, चरित्र और चेहरे को समझनेवाली बहनजी से अगर कोई उम्मीद करता है की बहनजी उनसे बात करे, उन्हें नेता कबूल कर तो यह बहनजी की नही, ऐसा सोचनेवाला की गलती है।
युवा नेतृत्व पैदा होने से ज्यादा समझदार, संयम रखनेवाला, धैर्यवान, विरोधियो के दांव पेंच समझनेवाला नेतृत्व मिलना ज्यादा जरूरी है। ऐसा नेतृत्व एक रात में तैयार नही होता। कांशीराम साहब जैसे महापुरुष को बहनजी को अपना उत्तराधिकारी बनाने में 25 साल लग गए। बहनजी के बसपा के अध्यक्ष पद संभालने के बाद बहनजी ने उपाध्यक्ष पद पर कई युवाओ को मौके दिए, लेकिन करोड़ो लोगो के विश्वास पर खरा उतरने लायक आश्वासक नेतृत्व बहनजी को नजर नही आया। सबसे आखिरी उदाहरण जय प्रकाश सिंह का है।
बसपा का अगला नेतृत्व बहनजी का कोई भाई भतीजा नही होगा, वह दलित शोषित समाज का ही कोई नुमाइंदा होगा। लेकिन जब बहनजी की उम्र लगभग 60 साल है, और अगर हम ज्यादा मेहनत करे तो बहनजी का टेंशन दूर कर बहनजी को कमसेकम और 20 साल और हमारे बीच रख सकते है, तो फिर यह नेतृत्व की चर्चा क्यों हो रही है? बहनजी से ज्यादा कभी राहुल गांधी को तो कभी भाजपावालो को ऐसा क्यों लगता है कि दलितों में कई नेता होने चाहिए? जबकि हमारे आदर्श बाबासाहब हमारे एक आंदोलन का एक संगठन, एक नेतृत्व और एक झंडा होने की बात कहकर गए है। हमारे संस्थापक तक खुदको बड़ा कार्यकर्ता कहते थे तो फिर विरोधी दलों को और मीडिया को हमारे समाज मे युवा नेतृत्व तैयार करने में इतनी दिलचस्पी क्यों है?
हमे मीडिया में दिलचस्पी नही, नफरत भी नही लेकिन हम मीडिया से सावधान जरुर रहते है। मीडिया में प्रचंड शक्ति है, लेकिन आज हमारे देश का मीडिया अपनी शक्ति को मनुवादी दलो की दलाली तक सीमित कर चुका है। महाराष्ट्र में हम विरोधियो द्वारा मीडिया की सहायता से प्लांट किए हुए नेताओ को देखते है जिन्हें मीडिया ने उनकी जवानी में प्रोजेक्ट किया था। उसका खामियाजा यह है की महाराष्ट्र की अम्बेडकरवादी मूवमेंट इन नेताओं ने पूरी तरह से प्रतिक्रियावादी बना दी है। फलस्वरूप, देश के बाकी राज्यो की अपेक्षा आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक रूप में काफी आगे रहने के बावजूद अम्बेडकरवादी आंदोलन राजनीति में कमजोर दिखाई देता है। यहां मीडिया द्वारा पैदा किए गए नेता जातीय उत्पीड़न होने पर मोर्चा, निवेदन, बंद, भूख हड़ताल आदि करते है, बाकायदा खुद ही तस्वीरे निकलते है, खुद ही न्यूज़ बनाते है और खुद ही अलग अलग अखबारों के कार्यालयों में छोड़ आते है ताकि किसी अखबारवाले को दया आ जाए तो बेचारे का नाम चमक जाए। यही लोग चुनाव आने पर कौड़ियों के दामो में बिक जाते है और फिर समाज मे बाते करते है कि अम्बेडकरवाद अच्छा तो है लेकिन लोगो को अम्बेडकर बताकर, जय भीम बोलकर सत्ता नही मिल सकती।
साथियो, इसलिए आपसे गुजारिश है, बहनजी पर भरोसा रखिये। अगर आपको बहनजी पसंद नही तो याद रखिये वह मान्यवर कांशीरामजी की पसंद है। हो सकता है आपने भ्रमित होकर बसपा यूथ का सदस्यत्व लिया हो या आप किसी आर्मी के सदस्य बने हो, जान लीजिए राजनीति तय करती है कि हम कैसी जिंदगी जिये, क्या पहनें, क्या खाए, कैसे घूमे, कहाँ सोये तो फिर बहुजनो के सबसे बड़े राजनैतिक संगठन, बसपा में शामिल होकर काम क्यों नही करते? बसपा में शामिल होकर काम करना अब पसंद-नापसंद का नही, मजबूरी और जरूरत का मामला बन गया है।
बसपा में काफी युवा नेतृत्व है, लेकिन वह चुपचाप बूथ, सेक्टर से लेकर राज्यो तक बसपा संगठन बनाता है। अपनी बातों को वह किसी अखबार या न्यूज़ चैनल का मोहताज नही होने देता। अपने किए काम की रिपोर्टिंग वह अपने वरिष्ठ को देता है और अपने संदेशो को सर्वजनिक करने के लिए या तो वह सांगठनिक ढांचे का या सोशल मिडीया का इस्तेमाल करता है। इसलिए मीडिया से सावधान रहें, अपना पूरा ध्यान लोकसभा चुनाव 2019 पर केंद्रित करे। जो कभी बसपा के सदस्य बने ही नही, उनके किसी और पार्टी में जाने पर उनकी चर्चा न करे। उनकी जान प्रसिद्धि है, चाहे अच्छी हो या बुरी, उनकी चर्चा कर उन्हें जिंदा न रखे। मीडिया के मनुवाद और मनुवादियो से निपटने का यही एक बेहतर तरीका है।
जय भीम-जय बसपा
✍ Vidrohi Sagar Ambedkar/Sagar Gautam Nidar

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