India That Is Bharat

*देश का नाम इंडिया* 

30 मई,2020 को दैनिक समाचार पत्र दैनिक भास्कर में शीर्षक *"सुप्रीम कोर्ट में अर्जी- देश को इंडिया कहना अंग्रेजों की गुलामी का प्रतीक, नाम बदलकर भारत करें; इससे राष्ट्रीय भावना बढेगी"* से प्रकाशित समाचार को देखकर मैं अंदर से हिल गया। मैं लगभग दो-तीन वर्ष से आगाह करता आ रहा हूँ। मुझे आहट सुनाई दे रही थी। मुझे समाचार पत्र में प्रकाशित शीर्षक ने ही पर्दे के पीछे क्या योजना प्रस्तावित है, की आहट सुनाई दे गई। 
मुझे यह अंदेशा नहीं था कि शुरुआत *'इंडिया'* शब्द से होगी।  लेकिन बहुत दूर की सोच कर स्टेप बाई स्टेप काम किया जा रहा है। बहुजन समाज/ मूलनिवासी समाज के बुद्धिजीवी तबके को प्रकाशित समाचार के पीछे के अर्थ से समाज को अवगत कराना चाहिए। मैं पिछ्ले दिनों भी आगाह कर चुका हूँ कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद प्रथम ( Article I ) को हाथ में लिया गया है। हर उद्देश्य को पूर्ण करने का समय, समयावधि, माध्यम, उपाय, निमित्त, पात्र एवं किस व्यक्ति को क्या करना है/ कराना है आदि सभी कुछ तय किया हुआ है। हम बहुत बाद में समझ पाते हैं।  
इसकी व्याख्या करते हैं। समाचार के शीर्षक में देश का नाम नहीं लिखा गया है। शीर्षक में यह नहीं लिखा कि 'भारत को इंडिया कहना .......' भारत की जगह *'देश'* कहा गया है। 
सुप्रीम कोर्ट में *'इंडिया'* शब्द पर आपत्ति दर्ज कराते हुए सुप्रीम कोर्ट में संविधान संशोधन जनहित याचिका दायर की गई है। जनहित याचिका दायर करने वाले ने इस बात पर कोई आपत्ति दर्ज नहीं करवाई है कि भारत का मीडिया और अधिकतर राजनेता भारत को भारत नहीं कहते हैं बल्कि *हिन्दुस्तान* ही बोलने लगे हैं। यह परिवर्तन गत कुछ वर्षों में तेजी से होने लगा है। मैंने इस बात पर बार-बार आगाह किया है कि भारत का मीडिया जगत और हमारे अधिकतर राजनेता भारत को *भारत* नहीं कहते हैं बल्कि 'हिन्दुस्तान' ही बोलने लगे हैं। याचिका कर्ता को सबसे पहले यह आपत्ति करनी थी कि भारत का कोई भी नागरिक अपने देश का नाम *भारत* बोले, लिखे। इस बात पर जनहित याचिका दायर की जानी थी। यद्यपि संविधान में व्यवस्था है कि संविधान के अनुच्छेद एक की अवहेलना करना संविधान और भारत की गरिमा के प्रतिकूल होगा। इस तरह की बातों को गैर संवैधानिक कहा जाता है। भारत शब्द का उपयोग लगभग बंद सा होने लगा है। सतही तौर पर आमजन को यही लगेगा कि जनहित याचिका 'इंडिया' शब्द को हटाने की है। और ऐसी दिखायी भी जा रही है। लेकिन इसकी परिणति वही होनी है जो निर्धारित की हुई है।
विशेष कर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और राजनेताओं ने अपने भाषणों के माध्यम से प्लेटफार्म बनाना कुछ वर्षों पहले से शुरू कर दिया है। इसमें बहुजन समाज/ मूलनिवासी वर्ग के जनप्रतिनिधि (पार्टी प्रतिनिधि) भी शामिल है। 
संविधान निर्माता डॉ भीमराव अम्बेडकर जी ने संविधान के अनुच्छेद एक का निर्धारण करने के लिए गहन अध्ययन करते हुए आगामी समय में इस अनुच्छेद के अर्थ को अपनी संविधान की बहस में स्पष्ट कर दिया था। संविधान के अनुच्छेद एक में सबसे पहले यही लिखा गया कि -  "संघ का नाम (देश) **भारत* That is *INDIA* होगा, यह राज्यों का संघ होगा।" उनको अंदेशा था कि कुछ लोग देश के नाम के साथ छेड़छाड़ करने का कुत्सित प्रयास कर सकते हैं । बाबा साहब गज़ब के भविष्य वक्ता थे। भारत के नागरिकों के सभी वर्ग, समुदाय, धर्म की सोच और उनकी कार्यप्रणाली के अर्थ से भलीभांति परिचित थे। यह उनके गहन सामाजिक अध्ययन का ही प्रभाव था। और वो आज दिखाई देने लगा है। हमारे बड़े-बड़े राजनेता अपने देश को *हिन्दुस्तान*  बोल कर ही अपनी बात कहने लगे हैं। आप आज से ही इस बात पर ध्यान दें। उनको कोई नहीं रोक रहा है। समाचार के अनुसार याचिका कर्ता ने अपनी मंशा भी जाहिर कर दी है कि अंग्रेजी में देश का नाम *"भारत, भारतवर्ष, और हिन्दुस्तान"* लिखे जाने का सुझाव दिया है। राजनीति में जो किया जाना है उसे सामने नहीं रखा जाता है। हमारे अपने जनप्रतिनिधि (पार्टी प्रतिनिधि) भी हिन्दुस्तान ही बोलते देखे गये हैं। 
साथियों अभी भी जाग जाओ। जनहित याचिका में जो कहा गया है उसके बाद याचिका कर्ता आगामी दिनों में अपनी मंशा {जनप्रतिनिधि/धर्म गुरु/सामाजिक पदाधिकारी/अपने ही कुछ स्वार्थी लोगों (कथित जनप्रतिनिधि)} के थोपे गये बयानों के आधार को देश की आवाज़ बताते हुए मीडिया से प्रचारित किया जायेगा। और संभव है देश के नाम *भारत* शब्द को अन्य मनुवादी शब्द से प्रतिस्थापित करने का प्रयास किया जाये। मेरा आह्वान है कि बहुजन समाज/मूलनिवासी लोगों को हिन्दुस्तान शब्द का उपयोग बोलने लिखने में करना तत्काल बंद करना ही होगा। *अपने देश का नाम भारत है, भारत है।* *भारत ही बोलें 'भारत' ही लिखें।* 

ऐसी ही बात मैं अपने *राष्ट्रीय ध्वज* के संबंध में कहता आ रहा हूँ । हमारे युवाओं को दिग्भ्रमित करते हुए उनके हाथ में *राष्ट्रीय ध्वज* तिरंगे  की जगह अन्य रंगों के ध्वजों का उपयोग लेने को प्रेरित किया जा रहा है। और हमारे लोग ऐसा करने भी लगे हैं। अगर अभी ध्यान नहीं दिया गया और राष्ट्रीय ध्वज के महत्व और सम्मान को बहुजनों/मूल-निवासियों ने संरक्षित करने और नियमित उपयोग लेने में भूमिका नहीं निभाई तो आगामी समय में एक और जनहित याचिका सामने आ सकती है। 
राष्ट्रीय ध्वज से संबंधित अलर्ट आलेख जो मैने दो वर्ष पूर्व लिखा था उसे भी वापस पोस्ट कर रहा हूँ। हमें संविधान निर्माता डॉ भीमराव अम्बेडकर साहब ने संविधान के साथ जो मूल अधिकार प्रदत्त किए हैं और उनका *समता* (समरसता नहीं) के तहत महत्व भी है, उनकी रक्षा के लिए जागरूक रहना होगा। इन सब के महत्व से हमारे जनमानस को परिचित कराना होगा। *अभी नहीं तो फिर कभी नहीं।* मानव जीवन दाता डाॅ अंबेडकर साहब ने जिन्हें *'टूल्स'* कहा है उनसे आशा मत रखना। उनकी अपनी मजबूरी है। बार-बार परेशान मत करो। 
*इन कार्यों में हमारे विचारकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को भूमिका निभानी होगी।* समाज के साधु-सन्तों महंत बाबा पीठाधीश लोगों को भारतीय संविधान और बाबा साहब के जीवन दर्शन की जानकारी से संबंधित *ओरिएंटेशन सेमिनार* आयोजित कर उनको जागरूक किया जाये तो यह लोग मनुवादी अवधारणाओं से बाहर निकल कर समाज के चहुँ मुखी विकास में और ज्यादा अहम योगदान दे सकते हैं। ऐसा मेरा विश्वास है। हमारे प्रत्येक समारोह/आयोजन/आंदोलन/ और उत्सवों में *राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा* जो सच मै चौरंगा है बीच मै नीले रंग के अशोक चक्र को देखा किया जाता रहा है उसे अनिवार्यतः रखा जाये। साथ में अन्य कोई भी ध्वज हो लेकिन राष्ट्रीय ध्वज सर्वोपरि हो। अन्यथा *'काली नज़र'* राष्ट्रीय ध्वज पर पड़ने के लिए तैयार है। इस बात के इशारे भारत माता के साथ बताये जा रहे हैं। फिर समझ नहीं पा रहे हो तो मुश्किल होगी।
हमें आज की अपनी ताकत *सोशल मीडिया* का उपयोग बाबा साहब की बातों विचारों को जन-जन तक पहुँचाने में करना होगा वर्ना सोशल मीडिया भी आपकी पहुँच से बहुत दूर चला जायेगा। फूल पत्तियां, सीन-सिनहरी, भौतिक आमोद-प्रमोद के साधनों की खूब फोटूएं, रंग बिरंगे सुसंदेशों से अभी दूरी बनाकर रखें। अपनी वैचारिक उर्जा का उपयोग समाज को जागरूक करने के साथ प्रगति पथ पर अग्रसर करने में लगाएं। अन्यथा दस्तक अच्छी सुनाई नहीं दे रही है। 
*जागो, अब जागो और जगाओ।*🙏🏻
जय भीम जय भारत 🇮🇳

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