अछूत अय्यंकाली एक महान क्रांतिकारी

केरल के अय्यंकाली के बारे में आज पहली बार पढ़ा, काफी गौरवशाली व्यक्तित्व रहा है. पढकर अच्छा लगा. वास्तव में नारायण गुरु की तरह ही केरल एरिया में अछूत वर्ग को अधिकार दिलवाने में अय्यंकाली का काफी महत्पवूर्ण योगदान है. 

संत अय्याकाली का जन्म 1863 में तिरुवनंतपुरम के पास पुलायार जाति में हुआ था जो की अछूत जाति थी, जिसके कोई अधिकार नही थे, उन्हें;

1.यह जाति एक तरह से भू-दास थे, जमीदार उनसे सुबह से शाम तक काम करवाकर केवल 600ग्राम चावल और वो भी निम्नस्तर का देते थे. 
2.इन्हें केवल अपने समूह में रहने की इजाजत थी, आपस में ही खेल सकते थे, एक निश्चित समय पर ही सडक पर चल सकते थे. 
3.शिक्षा नही ले सकते थे. 

केरल में जातिवाद को एक ईसाई मिशनरी की पत्नी ने अपने एक मित्र को लिखे पत्र में किया है जिसे कैथरीन मायो ने अपनी किताब मदर इण्डिया में भी लिखा है की;

नैय्यर जाति का व्यक्ति ब्राह्मण से मिल सकता था लेकिन ब्राह्मण को छू नही सकता था. चोवन (झझवा) जाति का व्यक्ति न्म्बुरी ब्राह्मण से 36 कदम दुरी बनाकर रखेगा, नैय्यर से मिलते समय चोवाल को बारह कदम दुरी रखनी पडती थी, अछूत पुलायर को नैय्यर से 66 कदम व नम्बूदरी ब्राह्मण से 96 कदम दुरी रखी पडती थी. इससे भी आगे थामस चर्च में विश्वास रखने वाला ईसाई नैय्यर को छुट सकता था लेकिन उसके साथ भोजन नही कर सकता था"

अय्यंकाली जिस जमीदार के आदेश पर जंगल साफ करने का कार्य करता था उससे खुश होकर जमीदार ने उसे 5 एकड़ भूमि दे दी, उस समय पुलायर जाति के किसी व्यक्ति के पास पहली बार भूमि आई, इससे अयंनकाली की स्तिथि थोड़ी सही हो गयी. 

अय्यंकाली में विद्रोही भावना शुरू से ही थी. पुलायर समुदाय को अच्छे कपड़े पहनने की इजाजत नही थी, लेकिन अय्यंकाली साफ सुथरे कपड़े पहनता था, उससे लोग प्रभावित होने लगे, उन्होंने अपने समाज के युवाओ का सन्गठन बना लिया. 1889 में इन्ही युवाओ ने मनुवादी व्यवस्था को धता बताकर दिए गये समय से अलग सडक पर चलने का निर्णय लिया, जब चलने लगे तो सामान्य वर्ग ने उनपर हमला कर दिया, लेकिन यह बहादुरी से लड़े, सडक पर खून ही खून गिरा. 

यह पहला संग्राम था जिसने आसपास के सभी एरिया में हलचल मचा दी, अछूत एरिया में एक लहर चल दी, यह पहली बार था. पुलायार से अलग अन्य अछूत जातियों में भी इसका संचार हुआ. इसके बाद 1893 में अय्यंकाली ने सामान्य वर्ग से डायरेक्ट भिड़ने का निश्चय किया जिससे समाज को मनोबल दे सके. इसके लिए;

"अय्यकाली ने दो बैल और बेलगाडी खरीदी, पुलायार समाज में पहली बार किसी ने बैल खरीदे थे. उसके बाद इस बैलगाड़ी पर सवार होकर सडको पर उसने बैल दौड़ा दिए और साथ में बैलो के गले में घंटी भी बाँध दी, एक तो सडक पर चलने का अधिकार पुलायार समाज को नही था, दूसरा बैल गाडी पर चढने तक का नही था, इन्हा तो पुलायार समाज के किसी व्यक्ति ने बैल तक खरीदकर गर्व से चलाकर सामान्य वर्ग को सीधे चुनौती दी थी. इसलिए उनका रास्ता दहशतगर्द अत्याचारी वर्ग ने रोका, लेकिन अय्याकाली ने खेतो में काम आने वाली दरांती निकाल ली और सीधा चुनौती दी की किसी ने रोका तो उसे मार देगा. जिससे एकाएक दहशतगर्द अत्याचारी वर्ग में ही दहशत फैला दी, उसके बाद शान से बैलगाड़ी की सवारी रोजाना करते थे, और बैलो में लगी घंटी अत्याचारी वर्गो के कानो को घायल करती थी. लेकिन इतनी हिम्मत नही थी कि अय्यंकाली को रोक सके"
"

इससे उत्साहित होकर अय्यंकाली ने अगला कदम उठाया, जिसमे तिरुवनंतपुरम में अछूत बस्ती से पुत्तन बाजार तक "आजादी के लिए जुलुस निकालने की घोषणा की" , इन्हा भी विरोधियो ने घाट लगाकर उनपर हमला किया, लेकिन इसका मजबूती से सामान किया, दोनों पक्ष के घायल हुए, लेकिन इससे  चेलियार में हुए उस संघर्ष से प्रेरित होकर दूसरे कस्बों और गांवों के दलित युवक भी सड़कों पर चलने की आजादी को लेकर निकल पड़े। मनक्कदु, काझाकोट्टम, कनियापुरम् सहित आसपास के इलाकों में जुलूस निकाले गए। सड़कें खून से लाल होने लगीं। सवर्णों का विरोध जितना बढ़ रहा था, उतना ही दलित युवा अपने अधिकारों को लेकर जाग्रत हो रहे थे। अय्यंकाली का प्रभाव और दलितों का विद्रोह बढ़ता ही जा रहा था। दूसरी दलित जातियां भी पुलायारों के साथ एकजुट होकर अधिकारों की मांग करने लगी थीं। संघर्ष ने विकराल रूप ले लिए. 

इसके बाद;

1.अय्यंकाली ने ऐसे ही और भी संघर्ष किये, जिससे सदियों से मानव अधिकारों से दूर अछूत वर्ग में एक संचार हुआ और उन्होंने जगह जगह विद्रोह करना शुरू कर दिया. 

2.इसके बाद अय्यंकाली ने शिक्षा क्रांति की. पुलायार समाज को कठिन परिस्तिथिओ में और अत्याचारियो वर्गो के लोगो द्वारा ऐनकेन प्रकरण के बाद भी अंग्रेजी शासन के माध्यम से स्कुल में प्रवेश क्र्र्वाने में सफल हुए. 

3.लेकिन समस्या इन्हा भी आई. अय्यंकाली 1 मार्च 1910 को अपने साथियों को लेकर उरूट अंबालम स्कूल, बलरामपुरम् में पहुंचे जिससे स्कुल में प्रवेश करवाया जा सके, लेकिन नैय्यरवर्ग से संघर्ष हो गया, जिससे गुस्साए नैय्यर लोगो ने पुलायारो की बस्ती पर हमला किया और उसे जला दिया जो कई दिन तक जलती रही. जानवरों को मार दिया गया. इससे एक विद्रोह अन्य एरिया में भी पैदा हो गया, जिसके कारण हुए संघर्ष को ‘पुलायार-विद्रोह’ के नाम से पुकारते हैं। उस विद्रोह में दलितों को जन और धन दोनों की भारी हानि हुई थी। उनके आगे रोजगार का संकट भी खड़ा हो चुका था। बावजूद इसके आजादी की ललक ऐसी थी कि तमाम विरोधों और दबावों के बावजूद आंदोलन आगे बढ़ता गया।

4.इसके बाद अय्यंकाली ने राजनीतिक  पारी की शुरुआत की लेकिन जब उनके सन्घठन के लोग कोंग्रेस के पास टिकट मांगने जाते थे तब उनका उपहास यह कहकर करा की जीतकर क्या सब्जिया वंहा बोनी है, भेड चरानी है, नमक तेल तोलना है, एक मार्क्सवादी लेखक जिन्होंने मार्क्स की जीवनी भारतीय भाषा में लिखी थी उन रामकृष्ण पिल्लई ने कहा की  सरकारी स्कुलो में इनके बच्चो को पढाकर जो अनपढ़ गंवार है उन्हें उन बच्चो के साथ जोड़ना चाह रहे हो जो पीढ़ी दर पीढ़ी शिक्षा से अपने दिमाग को तराशते आ रहे है. ,यह घोड़े और और भेंस को एक ही गाडी में जोत देना है|

5.राजनैतिक रूप से वर्ष 1912 में अय्यंकाली ‘श्री मूलम पोपुलर असेंबली’ के  सदस्य के तौर पर चुने गये उसके बाद निधन तक वो इस पद पर रहे, अय्यंकाली पहले व्यक्ति थे जो औपनिवेशिक भारत में केरल में अछूत वर्ग से राज्य विधायिका के सदस्य के लिए मनोनीत किये गये|

खैर, अय्यंकाली के संघर्ष की लिस्ट लम्बी है. फिर भी ऐसी महान सख्सियत को धन्यवाद , जिनका पूरा जीवन संघर्ष में बिता. यह संघर्ष ही परिवर्तन ला सकता है. यह महान सख्सियत 18 जून 1941 को इस दुनिया से विदा हो गयी....


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