बहन मायावती V/S रणदीप हुड्डा

रणदीप हुड्डा को संयुक्त राष्ट्र संघ ने पर्यावरण व वाइल्ड लाइफ से सम्बन्धित कन्वेंशन  (Convention for the Conservation of Migratory Species of Wild Animals (CMS) — an environmental treaty of the United Nations) का अम्बेसेडर बना रखा था, बहनजी पर अश्लील व जातिवादी विडिओ वायरल होने के बाद उन्हें हटा दिया गया है. इसकी जानकारी इस संस्था के सेकेटरी ने दी है. 

रणदीप हुड्डा ने यह बाते आजतक के एक शो में कही थी. मतलब मिडिया प्लेटफार्म में जाकर अश्लील व जातिवादी टिपन्नी की गयी, मिडिया ने रोका नही, बल्कि वंहा बैठे लोग व एंकर हंस रहे थे. वास्तव में भारत से बाहर जितनी संस्थाए है, मिडिया सेक्टर है वो ऐसी बातो को सहन नही करता है. वो जागरूक है. भारत में मिडिया अपने आप में ही जातिवादी है. 

वास्तव में बहन मायावती जी इतनी सक्षम है की ऐसे असमाजिक तत्वों की बातो का असर नही होता है क्युकी बहनजी एक ऐसी स्तिथि में है जो की सामाजिक आन्दोलन की जब भी बात आएगी तब क्रमिक रूप से बाबा साहब, मान्यवर कांशीराम जी व उसके बाद बहनजी का नाम सदियों तक आएगा. क्युकी उन्होंने ऐसे समाज को "मनोबल दिया" जो की बिलकुल ही महत्वहिन् था. जिसका कोई अस्तित्व तक नही समझा जाता था, योजनाओ में गिनती नही होती थी, चर्चा का विषय तक नही था. मनोबल इतना गिराकर रखा गया, जिससे वो कोई क्रांति न कर सके. ऐसे समाज को "मनोबल" इन तीन लोगो ने क्रमिक रूप से दिया है. जो एक समाज की जड में शामिल हो चूका है. 

लेकिन रणदीप हुड्डा की टिपन्नी वास्तव में एक समाज की सम्पूर्ण महिलाओ के साथ साथ महिला वर्ग को भी अपमानित करने वाली है. लेकिन टारगेट के तौर पर एक वर्ग विशेष की महिला आसानी से हुड्डा के दिमाग में इसलिए आई, क्युकी उस समाज के प्रति घटिया सोच पहले से ही विकसित है. 

लेकिन इस समस्या का हल क्या है? वास्तव में यह समस्या तब तक बनी रहेगी, जब तक एकता नही होगी, एकता से जवाब देने की शक्ति बढ़ेगी. ऐसे में समाज में जो संघर्ष कर रहे है, समय खर्च कर रहे है, जिससे समाज का स्वाभिमान व मनोबल उच्च रहे, उसे सम्मान मिलना चाहिए. समाज अगर ऐसे संघर्ष करने वालो के प्रति उदासीन रहेगा तो कौन जवाब देगा. जब जवाब नही मिलेगा तब रणदीप हुड्डा जैसे लोगो के व्यवहार में जातिवादी आतंकवाद बरकरार रहेगा. 

यह तश्वीर प्रसिद्ध सामाजिक एक्टिविटीस्ट श्री Raju Solanki  जी ने शेयर की है. जिसमे उन्होंने बताया है की;

1.यह तश्वीर गुजरती संदेश दैनिक में 29 जुलाई 1996 को छपी थी, जिसे प्रसिद्ध  प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट चकोर ने बनाई थी. 

2.इस कार्टून में चकोर कार्टूनिस्ट ने मुलायम सिंह यादव को हाथ में तलवार व बहनजी के हाथ में झाड़ू दिखाई है जो आमने सामने लड़ने की स्तिथि में है, इसमें मुलायम सिंह "साला चमार" शब्द कहता है और इसके जवाब में बहनजी कहती है की  ′′ मुलायम, साला गामर (गंवार) । बोलना सीखो । कानून के प्रति जागरूक रहें."

2.यह कार्टून 1995 के गेस्ट हाउस घटना के कारण सपा-बसपा में उपजे तनाव के बाद बनाया गया था. इस कार्टून के विरोध में वालजीभाई हीराभाई पटेल ने अहमदाबाद के शाहपुर थाने में इस कार्टून के खिलाफ शिकायत की । पुलिस ने FIR दर्ज नहीं की तो कौर्ट में आवेदन दिया, कोर्ट ने धारा156 (3) के तहत जांच के आदेश दिए । शाहपुर थाने के PI ने जांच करके रिपोर्ट सौंप दी, जिसमे कहा गया की कोई अपराध नही हुआ है.  इस रिपोर्ट को कोर्ट ने भी स्वीकार किया । कोर्ट के आदेश के खिलाफ याचिकाकर्ता ने 2005 जनवरी मे सत्र न्यायालय में अधिवक्ता हीराभाई सोलंकी के माध्यम से आपराधिक निष्पक्ष जांच के लिए आवेदन किया । देसाई ने पुनः विचार के आदेश दिए और मेट्रोपॉलिटन कोर्ट में मामला फिर से 23 मार्च 2012 को शुरू हुआ.  मेट्रो कोर्ट में जमानत देने के लिए संदेश संपादक फाल्गुन पटेल पेश हुए तब तक चकोर मर गया था ।

इस मामले में मुख्य आरोपी चकोर की मौत के बाद भी कार्टून प्रकाशक फाल्गुनभाई को अभी तक सजा नहीं मिली है । मामला कोर्ट में गिर गया है । वालजीभाई पटेल को इस मामले में क्या मिला? उनके समाज के नौ प्रतिशत लोग नहीं जानते कि वाल्जीभाई कोर्ट में ऐसा केस लड़ रहे थे । एक आदमी लगातार 1996 से 2012 तक थानों, मेट्रो कोर्ट, सेशन कोर्ट के कदम खींचता है । याचिकाएं टाइप करवा रहा है । एक फाइल निर्लज्ज रूप से बनाए रखी जाती है । हर समय सीमा तारीख याद रखती है । डायरी में लिखता है । हर बार अदालत में पेश होता है ।

से समय में वालजी पटेल ने हजारों घंटे बर्बाद कर कानूनी लड़ाई का छोटा सा प्रयास किया, क्या उम्मीद करना बेकार है कि उनका समाज इसका महत्व समझेगा?

निष्कर्ष 
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समाज अगर वालजीभाई हीराभाई पटेल जैसे मिशनरी व्यक्ति को प्रोत्साहित करेगा, सम्मान करेगा, तभी ऐसी घटनाओ का विरोध करने का मनोबल पैदा होगा, यह मनोबल ही उन समाज के लोगो के व्यवहार को ठीक करेगा, जो जातिवादी मानसिकता अपने पूर्वजो के बने समाजिक व्यवहार से प्राप्त करते है जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रहती है. उनका परिवार इसका ट्रेनिंग सेंटर है.

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