British Columbia Canada
British Columbia Canada ने 14 अप्रैल 2021 को "Dr.B.R.Ambedkar Equality Day" घोषित किया है. काफी देश जिनमे ब्रिटिश कोलम्बिया कनाडा भी है वो कॉमनवेल्थ के सदस्य के साथ साथ ब्रिटेन की महारानी के नाम से ही आदेश जारी करती है.
वैसे अब भारत की बात करते है. डॉक्टर अम्बेडकर जयंती माह चल रहा है, बड़े स्तर पर कार्यक्रमों की तेयारी चल रही है. अब दो वर्ष पहले की घटना याद आ गयी, काफी एससी वर्गो में लोग ईसाई बन रहे है. ठीक है, इसमें दिक्कत नही है क्युकी वर्तमान की धार्मिक प्रणाली में वैसे भी उनके लिए जब कोई जगह नही है तो कंही न कंही जायेंगे ही. . लेकिन;
"जब एक बंदे से बाबा साहब की जयंती का चंदा लेने पहुचे तब कहने लगा की अब हम इन बातो को नही मानते हम ईसाई बन चुके है"
इसलिए एससी की स्वय की भी काफी कमिया है, जन्हा पूरा विश्व समानता, मानव अधिकारों के संरक्ष्ण, नश्लभेदी, जातिवादी मानसिकता को धराशाई करने में योगदान देने वाले महापुरषो कमो सम्मान दे रहा है वन्ही जो व्यक्ति ईसाई धर्म स्वीकार करने से पूर्व और सही तरीके से देखा जाए to ईसाई बनने के बाद भी दलित ही कहलवाए जाने के बाद भी वास्तविक महापुरुष से दूर भागना चाह रहे है. जबकि दक्षिण भारत में एससी के चर्च तक अलग है, बकायदा दक्षिण भारत के ईसाई "दलित ईसाई" के नाम से सम्म्मेलन करते है और बकायदा वेटिकन सिटी से प्रतिनिधि बुलवाकर उन्हें भी सम्मलित करते है.
अब यह क्या लोजिक हो गया भाई. "लार्ड मैकाले" की वजह से देश की 85% जनता के लिए शिक्षा के द्वार खुले, अब में यह कहने लगु की न जी में ईसाई नही हूँ, इसलिए लार्ड मैकाले को याद नही करूंगा to कितना सही रहेगा?.
वास्तव में एससी समाज का बड़ा वर्ग मुर्ख भी है, तभी सैकड़ो सालो तक मानसिक गुलामी झेली है. मुर्ख न होते to उन्ही धार्मिक रीतियों को क्यों स्वीकार करता, जिसमे उसे जानवर से भी गया गुजरा समझा गया, वैसे इस समाज का बड़ा भाग अभी भी मुर्ख है, इसलिए अभी भी स्वीकार कर रहा है.
लेकिन यह जैसे ही इन धार्मिक रीतियों से छुटकारा पाता है तब वो "समझदार" कहलवाने से पहले ही अपनी मुर्खता वाली हरकते फिर शुरू कर देता है. जैसे जन्हा यूरोप, अमरीका व अधिकतर ईसाई देशो में मानव मूल्यों, मानवता, मानव अधिकारों को महत्व देकर धार्मिक कट्टरवाद को ह्त्तोत्साहित किया जा रहा है, इन्हा तक की अमरीका में काम करने वाले अधिकतर वैज्ञानिक नास्तिक है, और अब चर्च की उतनी कट्टरता नही रही, न ही उन्हें मानने वाले कट्टर रहे, वन्ही;
"भारत के नये नवेले ईसाई बन रहे अनुसूचित जाति वर्ग के लोग अपना दिमाग इतना ज्यादा कट्टरवादी कर रहे है की अब ईसाई बनते ही अपने समाज के प्रति ही कट्टरवादी व्यवहार पैदा कर रहे है. "
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