आप माने या ना माने
आप मानें या न मानें, पसंद करें या न करें; मगर इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि अंबेडकर अब देश के सबसे बड़े व्यक्तित्व बन चुके हैं।
इस अफसोसजनक बात को भी मानने में अनाकानी नहीं करनी चाहिए कि 40-50 साल पहले तक अंबेडकर की लोकप्रियता महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के कुछ जिलों तक सीमित थी।
और ये बात तो जगजाहिर है कि आजादी के बाद लगभग 60 साल तक गांधीजी के व्यक्तित्व का एकछत्र राज रहा। उनके कद का कोई और व्यक्तित्व कहीं दिख भी नहीं रहा था।
फिर अंबेडकरवादियों ने चुपचाप खींच दी सबसे बड़ी लकीर, दूसरों की लकीर को मिटाए बिना।
और इस लकीर को खींचने के लिए डंडी उठाने की हिम्मत, जमीन कुरेदने की जुर्रत और आगे बढ़ते जाने की ताकत संभव ही न हो पाती, मायावती-कांशीराम के बिना।
उनके इस मिशन पर आधिकारिक मुहर लग जाती है 14 अप्रैल 1984 को, जब बहुजन समाज पार्टी की स्थापना की जाती है।
इसके बाद भी अगले 10 साल तक 'जय भीम' करने वाला मार खा जाता है, फिर अगले 10 साल तक दुत्कारा और फटकारा जाता है और फिर अगले 10 साल में स्वीकारा जाता है।
और अब?
पिछले 6-7 साल में जन जन तक, घर घर तक 'जय भीम' परचम लहराता है।
मौत के 65 साल बाद अब अंबेडकर को सही सम्मान मिला है और कम से कम अगले 65 साल तक इनका कोई तोड़ नहीं होगा। संभव है कि ये सिलसिला 600 साल तक चलता रहे।
ये कमाई है उस 65 साल की थकी हुई औरत की, जिसने स्कूल कॉलेज अस्पताल और जिलों के नाम अंबेडकर पर रखे। हजारों अंबेडकर गांव बनवाए, भव्य स्मारक और पार्क बनवाए, पुस्तकालय, संग्रहालय और योजनाएं चलाए।
तो आपको भी जब लगने लगे अंबेडकर युग आ गया है तो बेहिचक 'थैंक्यू बहनजी' और 'थैंक्यू कांशीराम' बोल दीजिएगा।
अच्छा लगेगा।🙏🙏
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