विद्रोही संत शिरोमणि रविदास, रैदास, रोहिदास
विद्रोही संत गुरु रविदास जी
श्री सतगुरु रैदास जी महाराज जी के विचारो के अनुसार इस संसार में कौन ब्राह्मण है ये जानिये :-- 👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇
(1) ब्राह्मण उसको जानिये , जो हो ब्रह्म में लीन ।
जाति वर्ण माने नही , रैदास यही कह दीन ।।
अथार्त् :-- संत रैदास जी कहते है कि ब्राह्मण तो उसे समझना चाहिये, जो ब्रह्म में ही लीन हो ।
जाति को मानने वाला ब्राह्मण नही होता , करुणा मैत्री मुदिता तथा उपेक्षा की भावना ही ब्रह्मविहार कहलाती है ।
(2) धरम करम माने नही , मन मंह जाति अभिमान ।
एसोउ ब्राह्मण ते भलो , रैदास श्रमकहु जान ।।
अथार्त् :-- संत रैदास जी कहते है , जिस ब्राह्मण के मन में अतिशय जाति का घमण्ड हो और जो धर्म तथा कर्म में विश्वासहीन है , ऐसे ब्राह्मण से तो मेहनत करने वाला व्यक्ति ही श्रेष्ठ है ।
(3) रैदास ब्राह्मण मत पूजिए , जड़ होवै गुणहीन ।
पूजहि चरन चाण्डाल के , जउ होवे गुन परवीन ।।
अर्थात :-- रैदास जी कह रहे है कि जो ब्राह्मण मूर्ख हो , गुणहीन हो , उसकी पूजा कभी नही करनी चाहिये ।
किन्तु जो अछूत गुणवान हो , परवीन (दक्ष) हो , उनके चरणों की पूजा अवश्य करनी चाहिये ।
(4) माथे तिलक हाथ जय माला जंग ठगने का संवाग बनाया 👈
मारग झाड़ी कुमारग दहके सांची प्रीत बनू राम न पाया ।।
अथार्त् :--- संत रैदास जी कहते है कि , ब्राह्मणों ने माथे पर तिलक हाथ में जय माला लेकर लोगोँ को ठगने का धन्धा बनाया है 👈
कोई अच्छे मार्ग को छोड़कर गलत मार्ग अपनाकर कोई सच्चे प्रेम को नही प्राप्त कर सकता है ।
आगे श्री सतगुरु रैदास जी मदिरा पीने वाले व्यक्तियों को कहते है 👈
(5) रैदास मदिरा क्या पीवै जो चढ़े चढे उतराय ।
पीजिये नाम महारस का जो पीवै न उतराय, ।।
अथार्त् :-- संत रैदास जी कहते है कि हे मनुष्य तुम उस शराब को क्यों पीते हो जिसका नशा चढ़ने के पश्चात उतर जाता है👈
आप लोग उस सच्चनाम के महारस का पान क्यों नही करते जिसका नशा सदैव चढ़ा ही रहता है जो उतरने का नाम नही लेता 👈
*मुझे गर्व हैं कि में उस महान सन्त रैदास जी का अनुयायी हूँ 👈
बुद्धिजीवी लोगोँ का कर्त्तव्य है कि वो सन्त रैदास जी के विचार जन जन तक पहुँचाये । सभी साथियों से निवेदन है कि वे इस पोस्ट को ज्यदा से ज्यदा शेयर करे ।
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🙏🏻जय गुरुदेव जी धन गुरुदेव जी🙏🏻
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