एक वैचारिक क्रांति साहब कांशी राम जी द्वारा
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वर्ण व्यवस्था के श्राप को सदियो से भोगते आये समाज के दलित आदिवासी एवम् अन्य शोषित वर्ग जो इस सदी मे भी अपने ही देश के कुंठित मानसिकता वाले जातिवादी लोगो से आज भी सवैंधानिक अधिकार होने के बावजुद समानता व समता के अधिकारो के लिए आज भी संघर्ष कर रहे है| आजादी के 70 साल से ज्यादा का समय भी लोगो की जातिवादी मानसिकता मे वांछित बदलाव लाने मे पुरी तरह सफल नही हो पाया है, वहाँ एक ऐसी शख्सियत का सामने आकर ये कहना कि वोट हमारा - राज तुम्हारा, नही चलेगा-नही चलेगा, जितनी ज़िसकी भागेदारी - उतनी उसकी साझेदारी और आरक्षण से लिया SP, DM - वोट से लेगे CM, PM जैसे नारे देकर राजनीतिक रूप से सोई हुई कौमो को जगाकर सामाजिक संरचना मे एक बहुत बड़ा बवन्डर खड़ा कर दिया और ऐसी राजनैतिक चेतना पैदा की कि मजदुर आदमी भी अपने समाज से मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री बनाने की सीधी दौड़ मे शामिल हो गया है| वो महान शख्सियत जो साईकिल से देश मे घुम घुमकर लोगो को लोकतंत्र मे आम जनता की ताकत को बता रहा था, लोग प्रेम से उनको "मान्यवर" या " मान्यवर काशीराम" कहते है|
मान्यवर कांशीराम साहिब ने कहते थे कि " हमे भीड़ इकठ्ठा करने में कोई दिलचस्पी नहीं है, अगर हम तुम्हे कुछ बना नहीं सके तो एक दिन हमे छोड़ने वाले ही हो, इस से अच्छा है कि अभी से छोड़ दो।" मान्यवर लोगो को मीठा मीठा बोलकर, लम्बी लम्बी फेंक कर या पुचकार कर वोट लेने का काम नही करते थे, वो लोगो की चेतना जगाकर वोट की ताकत बताने का काम करते थे, सिर्फ विधायक या सांसद जितवाना मात्र उनका लक्ष्य नही होता था|
उनकी प्रसिद्ध किताब "चमचागिरी" मे उनका शोषितो व वंचितो की गुलाम सोच पर कड़ा प्रहार किया है| वो अलग बात है कि आज उनकी मौत के बाद स्वार्थी और दलालो मे होड़ लगी है कि वो साबित कर दे कि वो ही मान्यवर काशीराम की धरोहर के असली हकदार है और मान्यवर को अपना मसीहा बताकर जैसे तैसे अपनी राजनीति चमका ले| मान्यवर काशीराम की सामाजिक और राजनीतिक चेतना की थ्योरी को समझना इतना मुश्किल काम नही था लेकिन समाज के स्वार्थी तत्वो और दलालो ने शोषित वर्ग की राजनीतिक चेतना को हमेशा नए नए स्टाईल मे गुमराह करने का काम किया है|
मान्यवर किसी भगवान अल्लाह आदि के चक्कर मे लोगो को गुमराह कभी नही करते थे और ना ही वो वोट के खातिर कभी किसी मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे मे माथा टेकने का काम करते थे, वो तो सीधा सीधा शोषित समाज की राजनीति मे हिस्सेदारी की बात करते थे | उनका कहना था कि मंदिर मस्जिद उनका मुद्दा नही है बल्कि उनका मुद्दा तो रोजी रोटी और आत्मसम्मान है| उनके नारो ने शोषितो व वंचितो मे लड़ने का हौसला बढ़ाने का काम किया, उनके नारे किसी क्रांति की लपटो से कम नही थे|
उनका बिना किसी लाग लपेट के कहना था कि 15% लोग 85% लोगो का शोषण कर रहे है और ये व्यवस्था बदलनी होगी - जिसकी जितनी हिस्सेदारी उसकी उतनी भागेदारी, आरक्षण से लिया एस.पी /डी.एम - वोट से लेगे सी.एम/पी.एम, वोट हमारा - राज तुम्हारा नही चलेगा - नही चलेगा जैसे नारो ने शोषितो और वंचितो को ऐसी उर्जा दी कि बसपा को देश की तीसरी सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बना दिया जिसको आज उनके परिनिर्वाण के डेढ़ दशको बाद भी बहन जी यानि मायावती जी ने अनेक उतार चढ़ाव के बाद भी वोटो के मामले मे देश की तीसरी सबसे बड़ी ताकत बनाए रखा है| मान्यवर साफ साफ शब्दो मे कहते थे कि अगर तुम अपनी सरकार नही बना सकते तो कम से कम सरकार को गिराने लायक ही बन जाओ, तब भी तुम्हारा भला होने से कोई नही रोक सकता|
पहले की ही तरह आज भी हर चुनाव मे बसपा के खत्म होने की मीडिया द्वारा घोषणा कर दी जाती है लेकिन वो समुंद्र की लहरो की तरह ऊपर नीचे होकर आगे बढ़ते हुए इस सामाजिक और राजनैतिक चेतना को मरने से बचाने का काम कर रही है| समय समय पर दलित समाज से नए नए चेहरे सामने आते रहे, मीडिया ने भी हर बार उनको बसपा का विकल्प बताकर उनकी ब्रांडिंग भी की लेकिन वो भी आज तक बसपा वोटर के दिमाग को समझने मे फेल ही रहे| मान्यवर की पार्टी को तोड़कर गए विधायक भी खुद को विकल्प बताते रहे, जाति को आधार बनाकर समय समय पर नई पार्टियों का जन्म भी होता रहा लेकिन ऐसी कोई भी पार्टी खुद के बलबुते पर अपनी जमानत तक बचा पाने मे नाकामयाब ही रही है|
मान्यवर कहा करते थे कि नीला झंडा लेकर बहुत से फर्जी लोग बसपा का वोट काटने आयेगे लेकिन आप उसी को देना जिसके नीले झंडे पर हाथी का निशान भी हो| मेरा मानना है कि अगर पार्टी की विचारधारा सिर्फ राजनैतिक होती तो ये पार्टी कब की मीडिया के प्रोपगैंडा वार और समाज के दलालो के कारण खत्म हो चुकी होती, लेकिन ये विचारधारा महापुरुषो द्वारा चलाया गया सामाजिक चेतना मिशन भी है, शायद इसलिए इसको खत्म करना किसी के लिए भी आसान नही है| मान्यवर ने राजनितिक पार्टी बहुजन समाज पार्टी के अलावा सामाजिक संगठन DS4 (दलित शोषित समाज संघर्ष समिति) और कर्मचारियों के लिए संगठन BAMCEF (All India Backward and Minority Communities Employees Federation) बनाकर शोषित और वंचित समाज को राज के लिए संघर्ष करना सिखाया| सालो साल की गई मेहनत का परिणाम भी सबके सामने आया जब बसपा ने उतरप्रदेश जैसे बड़े राज्य मे चार चार बार सरकार बनाने का अविश्वसनीय काम करके दिखाया|
बड़ा ही ताकतवर था वो शख्स जो बाबासाहेब और उनकी विचारधारा को फिर से जिंदा कर गया | मेरी नजर मे वो शोषित और वंचित समाज के सच्चे हीरो थे| उनको इस पहचान के लिए किसी अवार्ड या पुरस्कार की जरूरत नही है|
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