राजनीति

#लोगो_को_शिक्षित_कीजिये #संगठित_रहिये
#मिलकर_संघर्ष_कीजिये
भारत मे सभी वर्गो के लिए राजनीति का नरैटिव सवर्ण मतदाता और सवर्ण मीडिया ही आजतक तय करता आया है, भले ही उनकी गिनती कितनी भी कम हो| बाकी वर्गो को उनसे राजनीति सीखने की बहुत जरूरत है| इसी नरैटिव का जाल है कि दलितो आदिवासियों को बहन जी मे वो सभी कमीयाँ दिखती है, जिनमे से अधिकतर होती तक नही है| बहन जी से पहले कमियाँ मान्यवर काशीराम मे दिखाई और समझाई जाती थी| मीडिया माहौल बनाता था और हम बदनामी फैलाने लग जाते थे लेकिन कुछ लोग थे जो उन पर मीडिया से ज्यादा भरोसा करते थे| 

लेकिन कुछ साल से सोशल मीडिया का बोलबाला हो चुका है और वो धीरे धीरे मेन मीडिया को टक्कर देता नजर आने लगा है| धीरे धीरे दलित आदिवासी समाज के लोग भी अपना पक्ष खुलकर लिखने की हिम्मत जुटाने लगे है, वो सामाजिक कुरीतियो और पाखण्डो का भी खुलकर विरोध करने लगे है, अपने महापुरुषो के योगदानो को भी सबके सामने लाने का काम बखुबी कर रहे है| ये एक वैचारिक क्रांति है जिसको लाला रामदेव ने वैचारिक आतंकवाद तक कहकर अपनी थु थु करवाई थी| सदियो से गैर बराबरी की मार झेलता हुआ ये समाज अब शिक्षित होने के साथ साथ आर्थिक तौर पर भी बड़ा मध्यम वर्ग बन रहा है, जिस दिन इनमे थोड़ी सी भी राजनैतिक चेतना जाग गई तो ये राजनीति मे अपना नरैटिव और अपना ऐजेंडा भी सबके सामने रखने मे खुद को सक्षम साबित करेगे, मुझे तो इसमे ज्यादा संदेह नही दिखता| बस जरूरत है तो उन बंद दरवाजो को खोलने की जो उनके मन मे छिपा हुआ डर खोलने नही देता| 

मुझे यकीन है अब ये वर्ग अपने सवालो से भारत की राजनीति की दिशा भी बदलेगा और दशा भी | राजनीति मे जब तक किसी वर्ग की पकड़ मजबुत नही होती तब तक हर सवैंधानिक हको को पाने के लिए भी झोली फैलानी पड़ती है| आपका सुझबुझ से दिया गया वोट ही आपका राजा चुनता है और जिनके राजा होते है उनके हक कोई नही मार सकता| 

हालांकि इतिहास यही बताता है कि इनको बहकने की आदत पुरानी है और ये धर्म, भगवान और मौकापरस्त दलालो के बहकावे मे भी आता ही है, फिर भी सोशल मीडिया पर मै जो सामाजिक और राजनैतिक चेतना देख रहा हुँ, वो बुझी हुई राख का ढ़ेर नही है बल्कि इस मे दबे विचारो के दहकते अंगारे है जो धर्म से लेकर अधर्म तक के सारे सफर को तर्को पर परखने को आतुर है| वो सदियो से अदृश्य रहने वाले भगवान, धर्म, आस्था, वेद पुराण सबकी खबर लेने के लिए तैयार खड़ा है| ये परिवर्तन युग है, इसमे कहानियों और आस्था के बलबुते धर्म भी परिवर्तन लम्बे समय तक रोक नही पायेंगा| बाबा साहिब अम्बेड़कर कहा करते थे : शिक्षित बनिये, संगठित रहिये और संघर्ष कीजिये, साथ मे ये भी कह देना चाहिए था कि लोकतंत्र मे अपनी वोट का सही इस्तेमाल करके अपने हको की रक्षा करने वाला राजा भी चुनना सीखिये| ये वैचारिक क्रांति धीरे धीरे ही सही लेकिन राजनीति मे भी अपने पैर जमा चुकी है|

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