सामाजिक ईमान दारी की बीमारी

सामाजिक ईमानदारी की बीमारी !
×××××××××××××××××××××××
मान्यवर कांशीराम साहब जब बार-बार एक  IAS Officer के पास फंडिंग और बामसेफ से जोड़ने के लिए जाते तो,वो अधिकारी कन्नी काट जाता और अपने घर में नहीं होने अथवा व्यस्त होने का मैसेज अपने नोकर के द्वारा भेज देता।लेकिन मान्यवर और उनके कार्यकर्ता एक सनक (ऑब्सेशन) के साथ उसके वहाँ जरूर जाते।इसी क्रम से परेशान होकर एक दिन उस अधिकारी ने झल्लाते हुए मान्यवर को सामने आकर जवाब दिया "क्या आप लोग अपना मानसिक संतुलन खो बैठे हैं या आपके पास और कोई काम धाम नही है" ?
    उस अधिकारी की यह प्रतिक्रिया सुनकर मान्यवर ने बड़े ही शान्त स्वर में मुस्कुराते हुए जवाब दिया "श्रीमान ! हमें एक बीमारी है जो आपको नहीं है"।इस बात पर उस अधिकारी ने पूछा "क्या बीमारी है और है तो इलाज करवाओ"। इस पर मान्यवर ने कहा कि "श्रीमान ! यह लाइलाज बीमारी है और यही बीमारी गौतम बुद्ध,महात्मा फुले,शाहूजी महाराज,जगदेव प्रसाद कुशवाहा,ललई यादव,पेरियार रामासामी बाबा साहेब अम्बेडकर,साहू जी महराज को भी थी और वह उनकी मृत्यु तक रही।
      इस पर जिज्ञासावश उस अधिकारी ने पूछा "कौन-सी बीमारी" ? मान्यवर ने कहा कि "आप उस बीमारी का नाम जानकर क्या करेंगे,आप उस बीमारी का नाम सुन भी लेंगे तो भी आपको इल्म नही होगा क्योंकि आप उससे ग्रसित नहीं हैं" ? इस पर उस अधिकारी ने सन्तोषजनक मुद्रा बनाते हुए कहा "ऐसी कौन-सी बीमारी है जो मुझ में नही है,लेकिन आप बता रहे हैं उन महापुरुषों में थी ? मान्यवर ने बड़ी ही गंभीरता से जवाब दिया "सामाजिक ईमानदारी की बीमारी"। और साथ में कहा कि "ये सभी महापुरुष साधन संपन्न लोग थे इनकी कोई निजी समस्या नही थी,इनके निजी संबंध व्यवस्था के सभी रसूखदार लोगों से थे,ये कष्टप्रद सामाजिक जीवन की बजाय सुखप्रद व्यक्तिगत जीवन जी सकते थे।यहाँ तक कि गौतम बुद्ध और साहू जी महाराज तो राज व्यवस्था में राजा भी थे।आप तो फिर भी व्यवस्था में नौकर मात्र हैं,लेकिन इनकी सामाजिक ईमानदारी की बीमारी के चलते ये सुखप्रद व्यक्तिगत जीवन नहीं जी पाए"।
    ये सब सुनकर वह अधिकारी अपने आप में ग्लानि महसूस करने लगा और मान्यवर को घर के अंदर आने को कहा।मान्यवर,घर के अंदर गए और फंडिंग के कूपन दिए।अधिकारी ने भी सहजता से सबसे बड़ा 50,000 (पचास हजार) का कूपन उठाया।इस पर मान्यवर ने उससे वो कूपन वापस लेते हुए मात्र 5,000 (पाँच हजार) का कूपन उसे दिया और कहा कि "ये बीमारी एक मुश्त नहीं आनी चाहिए,क्रमवार आनी चाहिए,निरन्तर आनी चाहिए और तब तक आनी चाहिए,जब तक कि हमारा सम्पूर्ण समाज इस बीमारी से ग्रसित होकर,गैरबराबरी की सामाजिक व्यवस्था का परिवर्तन ना कर दे"।
जय हो मान्यवर साहब कांशी राम जी की

Comments

Popular posts from this blog

जब उत्तर प्रदेश बना उत्तम प्रदेश

अपने ही गिराते हैं नशेमन पे बिजलियाँ

बोधिसत्व सतगुरु रैदास