सर छोटू राम मंत्री मण्डल मैं
अप्रैल सन् 1937 में चौ० छोटूराम मन्त्रीमण्डल में -
चुनाव जीतने के बाद अप्रैल 1937 में पंजाब में यूनियनिस्ट पार्टी का मन्त्रीमण्डल बना। सर सिकन्दर हयात खां इसके प्रीमियर (प्रधानमंत्री); चौधरी छोटूराम विकास मन्त्री, मियां अब्दुल हई शिक्षा मन्त्री; लाला मनोहरलाल वित्त मन्त्री; मलिक खिज्र हयात खां टिवाना लोक निर्माण मन्त्री, सरदार सुन्दरसिंह मजीठिया राजस्व मन्त्री बने। स्पीकर चौ० शहाबुद्दीन ही चुने गये। सर चौ० छोटूराम पंजाब के इस पार्टी मन्त्रीमण्डल में अप्रैल 1937 से 9 जनवरी 1945 (मृत्यु) तक रहे। इस जमींदार पार्टी के संचालक एवं अगवानी नेता चौ० छोटूराम थे और अन्त तक रहे।
सुनहरी कानून
सन् 1936 के चुनाव के समय पंजाब में 57% मुस्लिम, 28% हिन्दू, 13% सिक्ख और 2% ईसाई थे। इस जनसंख्या का 90% भाग किसानों का था, जिनमें से 80% किसान कर्जदार थे। यूनियनिस्ट पार्टी व्यावहारिक स्तर पर 90% आबादी के हितों की रक्षक थी। कांग्रेस के नेता भी 90% किसानों के हितों की बात तो करते थे, लेकिन कानून साहूकारों के हितों में बनाते थे। यही कारण है कि कांग्रेस और मुस्लिम लीग के चोटी के नेताओं के प्रचार करने के बाद भी उनकी हार हुई। मन्त्रीमण्डल बनते ही चौ० छोटूराम ने विकास का कार्य प्रारम्भ किया। इसके लिए जो कानून बनाए गए उनको किसानों ने ‘सुनहरी कानून’ बताया और शहरियों एवं साहूकारों ने ‘काले कानून’ का नाम दिया। इन कानूनों से पंजाब में गरीबों को बड़ी राहत मिली। शोषकों पर कमरतोड़ हमले किए गए।
इस उद्देश्य से, जिन कानूनों का निर्माण किया गया, उनकी सूची इस प्रकार है -
1.पंजाब इन्तकाल अराज़ी एक्ट (Land Alienation Act) - इसमें संशोधन किए गये, जिनके आधार पर खेती करने वाले साहूकारों को भी गैर जमींदार साहूकारों की सूची में रख दिया गया। रहनशुदा भूमि की ज़रखेज़ी (अन्न पैदा करने की शक्ति) को खराब नहीं किया जा सकता।
2.बंधक भूमि वापिस एक्ट (The Punjab Restitution of Mortgaged Land Act, 1938) - इसके द्वारा 8 जून, 1901 से पहले की रहनशुदा जमीनों को इनके असली मालिकों को वापिस करा दिया गया। इस कानून से 365000 किसानों को फायदा हुआ और 835000 एकड़ जमीन इन किसानों को वापिस मुफ्त मिल गई।
3.पंजाब कृषि-उत्पादन मार्केटिंग एक्ट (The Punjab Agricultural Produce Marketting Bill 1938) - इस एक्ट के फलस्वरूप मंडियों का पंजीकरण किया गया। महाजनों को लाइसेंस लेना जरूरी कर दिया। मंडी मार्केटिंग कमेटी में 2/3 प्रतिनिधि किसानों के और 1/3 महाजनों के निर्धारित किए गये। इस बिल को डा० गोकुलचन्द नारंग ने मारकूट अथवा माईटिंग (शक्तिमान्) बिल कहा। और भी कई गैर किसानों ने कहा कि इस बिल से हमारा सर्वनाश हो जायेगा। उत्तर में चौ० छोटूराम जी ने कहा - “मुझे दुःख है कि गरीबों की हिमायत करने वाली कांग्रेस के प्रतिनिधि भी इस बिल का विरोध करते हैं। वे कांग्रेस के उद्देश्य और हिदायतों को ताक में रखकर अपने नंगे रूप में हमारे सामने आ गये हैं। उन्हें लज्जा आनी चाहिए थी।” डा० गोकुलचन्द नारंग ने कहा कि “इस बिल के पास होने पर रोहतक का दो धेले का जाट लखपति बनिया के बराबर मार्केटिंग कमेटी में बैठेगा।” चौ० छोटूराम ने उसके उत्तर में कहा कि “मैं डाक्टर साहब से कहना चाहता हूं कि जाट एक अरोड़े से किसी भी भांति कम आदर का पात्र नहीं है। और यह वही जाट है जिसके लिए हरयाणा की हिन्दू कान्फ्रेंस में डाक्टर साहब ने कहा था कि जाट समस्त हिन्दू जाति के संरक्षक हैं। वह समय आ रहा है जब धन के गुलाम लोगों को परिश्रमी धनी जाट बहुत पीछे छोड़ देगा।”
4.दी पंजाब वेट्स एण्ड मैजर्स एक्ट (माप तौल कानून 1941) के अनुसार व्यापारियों के बांटों को तोलने और उनकी जांच का कार्य प्रारम्भ हुआ। डण्डी वाली तखड़ी के स्थान पर कांटे वाली तराजू नियुक्त की गई। इनकी जांच पड़ताल के लिए इंस्पेक्टर नियुक्त किए गये। फलतः खरीददारों को निर्धारित मात्रा से कम तोलकर देने और विक्रेताओं से अधिक तोलकर लेने की आदत पर रोक लगी।
5.पंजाब रजिस्ट्रेशन ऑफ मनीलैंडर्ज एक्ट (1938) - इस एक्ट के आधार पर ब्याज पर रुपया देने का धंधा करने वाले महाजनों व साहूकारों को नियंत्रित किया गया। इससे अनाप-सनाप ब्याज लेने की योजना घट गई। इस बिल के अनुसार साहूकार लाइसैंस लेकर ही कोई व्यापार (बनज) कर सकेगा।
6.पंजाब ट्रेड एम्पलाईज एक्ट (1940) - इस एक्ट के अनुसार सप्ताह में, कामगारों, मुनीमों और मजदूरों की, एक दिन की वैतनिक छुट्टी होने लगी। काम करने के घण्टे निश्चित किए गए। किसी को नौकरी से हटाने के लिए एक मास का नोटिस देना आवश्यक हो गया।
7.मसहलती बोर्ड (Conciliation Board) की नियुक्ति की गई। इसके अनुसार कर्जदार आठ आने की कोर्ट फीस भरकर अपने कर्जे को घटाने की दरखास्त दे सकता है, जो पहले ऐसी व्यवस्था नहीं थी।
8.बेनामी भूमि ट्रांसैक्शन एक्ट (1938) - इस एक्ट के आधार पर तमाम बेनामी जमीनों को वापिस उनके मालिक किसानों को दिलवाया गया। इसके लिए 5 तहसीलदार नियुक्त किए गए थे जिन्होंने अकेले गुरुदासपुर जिले में 44 लाख रुपये की बेनामी को पकड़ा था। यही हाल सब जिलों में था।
9.कृषक सहायक कोष चालू किया जिसमें किसानों की सहायता के लिए 55 लाख रुपये डाले गये ताकि ओले, टिड्डी, बाढ़ तथा सूखा द्वारा की गई हानि की स्थिति में किसानों की सहायता की जा सके।
10.शुद्ध घी में वनस्पति घी न मिलाया जा सके, अतः वनस्पति घी में रंग डालने का कानून बनाया।
11.गांवों में उद्योग धन्धे खोले गए, ताकि ग्रामीण क्षेत्र की आर्थिक उन्नति हो और शहरों तथा कस्बों में आबादी का दबाव न बढ़े।
12.किसानों के लिए नौकरियों में सुविधायें दी गईं। पहले कमिश्नर लोग भी लाला लोगों की ही बात सुनते थे। जमींदारों का उनके पास पहुंचना ही मुश्किल था।
13.किसानों के हित के लिए बिक्री टैक्स और जायदाद टैक्स कानून बनाये। जायदाद से होने वाली आमदनी पर 20 फीसदी टैक्स लगाया गया। किराया वही रहा जो अब से दो वर्ष पहले लिया जाता था, अतः वह बढ़ाया न जाए। लेकिन रहने के मकान टैक्स से बरी रहेंगे। बिक्री पर 5,000 रुपये तक कोई टैक्स नहीं होगा। पांच से दस हजार तक यह टैक्स दो आने प्रति सैंकड़ा, किन्तु किसान जो अनाज या खेत की पैदावार बाजार में बेचने जायेगा उस पर कोई टैक्स नहीं लगेगा।
14.इन टैक्सों के अतिरिक्त साहूकारों पर छः करोड़ सालाना की आमदनी के टैक्स लगाये गये। उस आमदनी से देहातों में पानी, दवा और शिक्षा का उत्तम प्रबन्ध किया गया।
15.पंजाब कर्जदार रक्षक कानून (The Punjab Debtors Protection Act 1936) पास करके किसानों की जमीनों की रक्षा कर दी गई।
16.पंजाब मलकियत अधिकार कानून 1934 व तीसरा संशोधन 1940 - इसके अनुसार जमींदार सरकार ने पंजाब के किसानों की आर्थिक गुलामी के जुए को उतार फेंका। इस कानून द्वारा किसानों को निम्न प्रकार की सुविधायें मिलीं।
कोई साहूकार जमींदार को कैद नहीं करा सकता।
किसान के रहने के घर तथा नौहरे कुर्क नहीं किये जा सकते।
खेत में काम आने वाले औजार जैसे हल, कस्सी, कसोला, गाड़ी आदि तथा बैल, दुधारू पशु और फसल कुर्क नहीं हो सकती।
किसानों के बैल तथा पशु बांधने के स्थान, कूड़ा डालने का स्थान (खाद की कुर्ड़ी), चारा एवं चारा रखने का स्थान तथा उपले पाथने का स्थान (गितवाड़ व बिटोड़ा) भी कुर्क नहीं हो सकते।
घर में प्रयोग आने वाला सामान, फसल की पैदावार का एक-तिहाई कुर्क नहीं हो सकता और यदि वह एक-तिहाई आसानी से छः महीने के गुजारे के लिए काफी नहीं है तो उतना हिस्सा कुर्क नहीं होगा जो छः महीने के लिए काफी हो। खेती के पेड़ भी कुर्क नहीं हो सकते। इस कानून के अनुसार, चाचा, ताऊ की मौत के साथ ही साहूकार का कर्जा भी मर जाता है।
सर चौ० छोटूराम गरीब किसानों के लिए कितना दर्द रखते थे यह उनके निम्न शब्दों से मापा जा सकता है जो कि उन्होंने 17 नवम्बर 1940 को रावलपिंडी के स्थान पर कहे -
“यदि संघीय न्यायालय ने यह फैसला कर दिया कि पंजाब विधान सभा ‘बेनामी’ और ‘रहन विधायक उन्मुक्ति’ एक्टों को पास करने का अधिकार नहीं रखती तो मैं पंजाब के इस कोने से लेकर उस कोने तक एक अभूतपूर्व आंदोलन छेड़ दूंगा। यदि जरूरत पड़ी तो मैं अपने मन्त्री पद और विधानसभा की सदस्यता से त्यागपत्र देकर किसानों को संगठित करके एक झण्डे के नीचे खड़ा कर दूंगा और तभी चैन लूँगा जबकि पंजाब सरकार को ऐसे कानून पास करने का अधिकार मिल जायेगा। यद्यपि मैं अब वृद्ध और दुर्बल हूं, पर आपको विश्वास दिलाता हूं कि यमराज भी मुझे अपने कार्य से हटाने में तब तक बुरी तरह से असफल रहेगा जब तक कि मैं पंजाब के किसानों के दुःखों को दूर न कर दूं। मैं तब तक आराम नहीं करूंगा जब तक कि किसानों को यूनियनिस्ट सरकार द्वारा पारित कानूनों से सब लाभ प्राप्त न हो जाएं।” टीकाराम, “सर छोटूराम”, पृ० 40-41.
विधानसभा को यह अधिकार मिल गये और सर छोटूराम ने कानून पास करके किसानों को सब लाभ प्राप्त करा दिए।
इन कानूनों के अलावा किसानों तथा गरीबों की हालत सुधारने के लिए कुछ कदम चौ० छोटूराम ने और उठाए। इनमें से कुछ इस प्रकार हैं -
1. स्थानीय स्वराज्य के विकास के लिए पंचायत कानून पास किया। जिसके अनुसार देहातों में पंचायतों का जाल बिछा दिया गया और सच्चे देहाती स्वराज्य की नींव पड़ गई।
2. पंजाब में सबसे अधिक सड़कें बनवाईं। पुरानी सड़कों की मरम्मत कराई।
3. बिजली द्वारा सिंचाई का क्षेत्र बढ़ाने के लिए मण्डी हाइड्रो इलैक्ट्रिक स्कीम चालू की। इसके अतिरिक्त हवेली प्रोजेक्ट ढाई वर्ष में पूरा कर लिया गया जिस पर चार-पांच करोड़ खर्च आया। इन दोनों स्कीमों से लाखों बीघे जमीन की सिंचाई होने लगी।
4. दक्षिण-पूर्वी पंजाब के सूखे इलाकों में सिंचाई करने के लिए तीन योजनायें बनाई गईं - (1) नलकूपों से (2) भाखड़ा बांध (3) व्यास नदी पर बांध। इन तीनों के पूरा हो जाने पर पंजाब का हर कोना-कोना हरा-भरा बन जायेगा। (4) सन् 1937 में बाढ़ से जो हानि हुई उसके लिए 37 लाख रुपये की सरकारी सहायता कराई। गुरुद्वारा शहीदगंज के साम्प्रदायिक केस का न्याययुक्त लोकप्रिय निर्णय कराया। दस लाख एकड़ भूमि की सिंचाई के लिए एक नहर बहुत शीघ्र बनवाई, जिसमें बजट से डेढ़ करोड़ रुपया कम खर्च किया। हरयाणा के अकाल (संवत् 1995-1996 का अकाल) पर अप्रैल 1941 ई० तक तीन करोड़ रुपये व्यय किये गये। 15 लाख एकड़ भूमि की सिंचाई के लिये नहर स्थल की खुदाई प्रारम्भ की, जिस पर डेढ़ करोड़ रुपये खर्च हुए। सवा करोड़ की लागत से हरयाणा में (रोहतक-हिसार जिले) एक और फसली (बरसाती) नहर निकाली जो बाद में बारहमासी कर दी गई।
5. स्टोरों की स्थापना की गई, जिनमें किसान अपना माल अच्छे दाम मिलते तक जमा कर सकें और काम चलाने के लिये अपने माल की लगभग तिहाई कीमत पेशगी प्राप्त कर सकें।
6. किसानों को उत्तम बीज देने के लिये 2 करोड़ 77 लाख रुपये का प्रावधान किया गया। हजारों स्थानों पर किसानों की एकत्रित सभाओं में उन्नत खेती के तरीके बताये जाते थे। कई तरह के कपास और गेहूं के बीजों का अनुसंधान लायलपुर के कृषि कालिज में किया गया।
7. सारे भारत में पंजाब ही एक ऐसा प्रान्त था जहां चकबन्दी की गई। प्रतिवर्ष एक लाख एकड़ भूमि की चकबन्दी होती रही थी।
8. पशु-चिकित्सा के मामले में तो कोई सूबा पंजाब की बराबरी नहीं कर सका। शुरु में 1200 प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र स्थापित किये गये और 79 डिस्पैन्सरियां चालू कीं। हिसार में पशु फार्म की स्थापना की गई। पशुओं, बकरियों और भेड़ों को उन्नत बनाने का कार्य शुरु किया गया।
9. पंजाब प्रान्त में उद्योग-धन्धों की उन्नति की गई। अधिक से अधिक कारीगर प्राप्त करने के लिये स्कूलों में टैक्नीकल और व्यावहारिक शिक्षा का प्रबन्ध किया गया।
27 दिसम्बर 1938 को लाहौर में औद्योगिक प्रदर्शनी जिसको अन्य प्रान्तों के मिनिस्टरों ने देखकर भूरि-भूरि प्रशंसा की और उन्होंने अपने प्रान्तों में भी ऐसा ही करने का विचार किया। मिट्टी के बर्तनों और रेशम की कारीगरी को उन्नत करने के लिए 60 हजार रुपये वार्षिक का प्रावधान किया गया। जुलाहों के गरीबी को दूर करने के लिए उनकी औद्योगिक को-आपरेटिव सोसाइटियां बनाईं गईं। उन्हें ठीक दाम पर सूत प्राप्त करने का प्रबन्ध किया गया। उद्योग-धन्धों की खोज के लिए भी एक विशेष विभाग स्थापित किया गया।
पटना, दिल्ली और कराची की प्रदर्शिनियों में पंजाब की कारीगरी की चीजों पर अनेक पुरस्कार मिले। चूंकि उद्योग विभाग चौ० सर छोटूराम के पास था, इसलिए इसकी यह कीर्ति उन्हीं की है।
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