राजनैतिक परिवेश मै आरक्षण
#70साल_कम_तो_नही_होते
#दलालो_को_पहचानो
हर आदमी या हर वो नेता जो अम्बेड़कर की मुर्ती पर 14 अप्रैल को फुल चढ़ाता है, सिर झुकाता हो, ये जरूरी नही कि वो अम्बेड़करवादी भी हो | ये बात ना तो बहुजन बहुजन चिल्लाने वालो को आज तक समझ आई है और ना ही जय भीम या जय मुलनिवासी चिल्लाने वालो को पता है| मोबाइल हाथ मे आ गया, बस शुरू कर दिया बिना सोचे समझे हो हल्ला | क्या किसी को इतनी सी बात 70 साल मे भी समझ नही आई कि सामाजिक संगठन और राजनैतिक उठापठक दो अलग अलग बाते है|
लोकतंत्र मे जिन वर्गो को अपनी वोट की ताकत पता नही होती, उनकी वोटो पर दलाल और ऐजेंट ऐश किया करते है| देश के सबसे बड़े और ताकतवर सामाजिक संगठन जैसे संघ (RSS), विश्व हिन्दु परिषद, हिन्दु महासभा जैसे पुराने संगठन हो या करणी सेना, रणबीर सेना, सवर्ण एकता परिषद जैसे अनगिनत छोटे मोटे संगठन हो - इन सबको पता है कि उनकी राजनैतिक पार्टी कौन सी है, कुछ तो बात होगी, कुछ तो वजह जरूर होगी कि आजतक इन्होने अपने अलग अलग राजनैतिक दल नही बनाये| लेकिन ये बात 85-15 की बात करके लोगो के 8500 गुट बनवाने वाले लोगो को नही पता क्या? या फिर आपकी बुद्धि दलालो को पहचान पाने मे असमर्थ है|
मान्यवर काशीराम जी कहा करते थे कि कमजोर वर्ग सरकारो से मुकाबला कभी नही कर सकते, करने की कोशिश करेगे तो कुचले जायेगे लेकिन वो समझाते रहे कि अपनी वोट की कीमत समझो और खुद अपनी सरकार भी बनाई जा सकती है| अपने नेताओ को सारे साल गालियाँ देकर ये समाज ऐसी कौनसी पार्टी को 70 सालो से चुनती आई है, ये सवाल उन फर्जी दलित आदिवासी हितैषी मुखोटा पहनकर बैठे बुद्धिजीवी और चिंतको व लेखको और उनकी हाँ मे हाँ मिलाने वाले उनके चहेतो से पुछते रहिये कि उनके लिए बिना कमी वाली कौनसी आदर्श पार्टी बनी है जिसकी वो दबी जुबान से वकालत करते रहते है| आपके मनो मे जहर बोने का काम मीडिया के साथ मिलकर यही दोगले पढ़े लिखे लोग करते है और फिर एक दिन किसी बड़ी पार्टी का सांसद विधायक बनके अपनी वफादारी का इनाम भी पा लेते है, ऐसे ऐसे दलित आदिवासी बुद्धिजीवियो,चिंतको व लेखको को भी आईना दिखाते रहो तभी इस समाज के सच्चे बुद्धिजीवी हितैषीयो, चिंतको और लेखको को पहचान सकोगे | सीधा और स्पष्ट सवाल करना सीखिये आखिर आप अपनी वोटो से राजा जो चुन रहे हो
इसके रोना शुरू होता है आरक्षण के नाम का जिसको लोग अक्सर भीख बताते हैं जबकि डॉक्टर अंबेडकर के शब्दों मै इसे प्रति निधित्व का अधिकार का अधिकार बताया गया है/
#मौको_की_उपलब्धता_योग्यता_की_असली_परख_है
मै बचपन से सुनता आ रहा हूँ कि सविंधान मे आरक्षण सिर्फ दस सालो के लिए दिया गया था लेकिन इसको हर दस साल बाद बढ़ा बढ़ाकर आज तक बनाये रखा है| आखिर ये दलित आदिवासी और अब अन्य पिछड़े वर्गो को दिया गया आरक्षण कब खत्म होगा| मेरे देश मे अयोग्य लोगो को आखिर कब तक ढ़ोते रहे वगैरा वगैरा| अब इन आधी अधुरी जानकारी वाले योग्यता के रखवालो को कौन बताये कि सही जानकारी रखना भी योग्यता को चैक करने का पैमाना माना जा सकता है| हर दस साल मे कौन से आरक्षण की समीक्षा की बात सविंधान मे लिखी है, क्या ये जानना गैर जरूरी बात है|
आप सबको ये भी मालुम होना चाहिए कि आरक्षण कितने प्रकार का होता है और बाबा साहिब कौनसे आरक्षण को हर दस साल मे समीक्षा करवाना चाहते थे| ये वो आरक्षण है जिसका अक्सर कोई भी सवर्ण वर्ग का आदमी विरोध करता नजर नही आयेगा, वो आरक्षण है सांसद और विधायको मे दलित आदिवासीयो का आरक्षण - जो हर दस साल बाद बिना हो हल्ले के सभी पार्टियाँ बढ़ा भी देती है| बाबा साहिब शोषित वर्गो के लिए पृथक निर्वाचन चाहते थे जिसको महात्मा गाँधी की आमरण अनसन वाली जिद्द के सामने झुकना पड़ा था और सयुंक्त निर्वाचन मे शोषित वर्गो को आरक्षण देना स्वीकार करना पड़ा था| बाबा साहिब को हरिजनवादी घोल के शोषित वर्गो के नेताओ पर शक था, इसलिए वो पोलिटिकल आरक्षण की हर दस साल मे समीक्षा चाहते थे ताकि ये सांसद और विधायक शोषित वर्गो के हक मे काम ना करे तो ये आरक्षण समीक्षा या खत्म किया जा सके|
वैसे आपको बता दुँ कि आरक्षण मुख्यत: तीन प्रकार के होते है, जो दलित आदिवासी वर्गो के लिए संविधान मे दियेे गए थे:-
(1) सांसद व विधायको के चुनाव मे आरक्षण
(2) सरकारी नौकरियो मे आरक्षण
(3) प्रमोशन मे आरक्षण|
नौकरियो मे आरक्षण तो सदियो से दबे शोषित वर्गो के लिए affirmative action है ताकि इन वर्गो के हक अधिकारो को उनकी जनसंख्या के अनुपात मे प्रतिनिधित्व मिलता रहे, जिसकी संविधान मे कही भी समीक्षा का जिक्र नही है और ना ही आज तक इसकी समीक्षा करके अगले दस सालो तक बढ़ाने जैसी कोई घटना भारत के संसदीय इतिहास मे कभी हुई है| इसके विपरीत दलित आदिवासी वर्गो को प्रमोशन मे आरक्षण के जरिये उनको पुरा प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए लेकिन वो अक्सर मिलता नही है|
आजाद भारत के इतिहास मे सिर्फ एक ऐसा अवसर आया है जब इन वर्गो के सवैंधानिक आरक्षण को प्रमोशन मे भी उसी अनुपात मे देने के लिए विधानसभा मे बिल पास किया गया है| वो 2007-12 के कार्यकाल वाली युपी सरकार मे हुआ था जिसकी मुख्यमंत्री मायावती जी थी, जिन्होंने युपी विधानसभा मे प्रमोशन मे आरक्षण बिल पास करवाया था जो बाद मे इलाहाबाद हाई कोर्ट ने असवैंधानिक बताकर निरस्त कर दिया था, अब ये केस सुप्रीम कोर्ट मे कई सालो से पैंडिंग पड़ा पड़ा सड़ रहा है| इसके अलावा बहन जी के प्रयासों से यू.पी.ए-1 मे प्रधानमंत्री रहे डॉ मनमोहन सरकार ने प्रमोशन मे आरक्षण बिल राज्य सभा मे भी पास करवाया गया था लेकिन लोकसभा मे पास ना हो सका था| समाजवादी पार्टी ने इस बिल के विरोध मे इस बिल की प्रतियाँ फाड़कर बहुत ही कड़ा विरोध किया था जिससे समाजवादी पार्टी व विपक्षी दलो के कारण ये बिल संसद मे पास होते होते रह गया था| डॉ मनमोहन सिंह की यू.पी.ए-2 को बसपा के समर्थन की कभी खास जरूरत न होने से ये बिल कभी दोबारा संसद मे रखा ही नही जा सका| दलित आदिवासी के हको को देने के मामले मे देश की अधिकतर पार्टियो का लगभग एक जैसा ही रवैया रहा है|
आपको बता दुँ कि इस प्रमोशन मे आरक्षण बिल मे संविधान द्वारा दिये दलित आदिवासी आरक्षण को ही लेने की कोशिश की गई थी, इसमे किसी के हको पर डाका डालने की कोई मंशा नही थी| लेकिन आज भी एक कड़वी सच्चाई ये है कि अपना देश सिर्फ इतना समझता है कि योग्य होने के लिए अवसरो की उपलब्धता नही बल्कि विशेष जाति मे पैदा होना ज्यादा आवश्यक है लेकिन ये सिस्टम आज नही तो कल टुटने ही वाला है| कोई भ्रम मे ना रहे, स्थाई कुछ नही होता|
आप यकीन कीजिये, हर जाति मे मुर्ख भरे पड़े है और मुर्ख बनाने वाले भी भरे पड़े है, जातिवर अनुपात थोड़ा बहुत ऊपर नीचे जरूर मिल सकता है| धर्म, आस्था, भगवान और झुठ व कुतर्को से भरी कहानियाँ अब लम्बे समय तक चलानी मुश्किल हो जायेगी क्योंकि शोषित वर्गो मे धीरे धीरे अपने सवैंधानिक अधिकारो की चेतना के साथ साथ राजनैतिक चेतना भी पैदा हो रही है| देश के संसाधनों व मौको की उपलब्धताओ पर हर वर्ग, हर जाति, हर सम्प्रदाय व औरत पुरूष और थर्ड जैंडर्स का बराबर का हक है|
दौड़ की सीमा अगर सबकी अलग अलग है तो affirmative actions के जरिये सबको मौके देना हमारे संविधान की सुंदरता है | योग्यता का पैमाना मौको की उपलब्धता तय करती है, ना कि कोई जाति या धर्म| आज जब वंचित वर्गो को मौके मिले है तो IAS, IPS बनने मे भी टॉपर बन रहे है, JEE/NEET/GATE मे भी टॉपर बन रहे है, SSC(CGL)और Bank P.O जैसे अनेको एग्जामो मे भी टॉपर बन रहे है, स्कूल कॉलेज की परीक्षाओ मे भी टॉप कर रहे है| देश मे जब आरक्षण नही था तब लम्बी लम्बी कहानियो के अलावा कोई खास उपलब्धि भारत के हिस्से मे नही लिखी गई, आज जब दलित आदिवासी व पिछड़ो की आरक्षण के जरिये सहभागिता बढ़ रही है, तब भारत का कई क्षेत्रो मे दुनिया मे नाम भी बड़ा हुआ है|
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