Narrative Bsp

बसपा के लिए नैरेटिव बनाया हुआ हैं कि बसपा में कांशीराम के समय ब्राह्मण नहीं थे लेकिन बाद में बहन मायावती ने पार्टी में ब्राह्मणों को शामिल कर लिया जिसके वजह से पार्टी अपने मिशन से भटक गई हैं और सत्ता उनके हाथ से चलीं गई.

लेकिन कांशीराम के समय में ही बसपा में ब्राह्मण शामिल हो चुके थे. सतीश मिश्र ने हमेशा पूरी वफ़ादारी से बसपा के लिए काम किया हैं इनके करियर की बात करें तो 1998-99 में यूपी बार काउंसिल का चेयरमैन रहें हैं 2004 में वह ऑल इंडिया बसपा के राष्ट्रीय महासचिव चुने गए और 2004 में राज्यसभा सांसद बनें, यह सब कांसीराम के जीवित रहते ही हुआ. 2007 में हुए विधानसभा चुनावों में उन्होंने सोशल इंजीनियरिंग बनाई  ब्राह्मण SC गठजौड बना, और सत्ता तक पहुँचे.

एक मित्र का कहना हैं तब कांशीराम बीमार थे इसलिए वह ब्राह्मणो को पार्टी में शामिल करने पर विरोध नहीं कर पाए थे.
इस बात को क्लियर करने के लिए थोड़ा पीछे चलते हैं 1996 में हाथरस से बसपा विधायक Ram Vir Upadhyay ने जीत दर्ज की थी. तब शायद कांशीराम बीमार नहीं थे.
बसपा स्थिति भाप चुकी थी सभी समाज का साथ लिए बिना वह आगे नहीं बढ़ सकतीं. 2002 में औरैया से राम जी शुक्ल जीतें थे. 

समयानुसार पार्टी में बदलाव किए गए 2002 में बसपा ने 98 सीटें निकाली थी जिसमें से 32 सवर्ण थें जिसका फायदा बसपा को मिला.

बहन मायावती  ने पार्टी  में सभी की भागीदारी का ख्याल रखा चाहे वह मुस्लिम हो या अन्य समाज हो, बसपा को साथ भी सभी का मिला हैं इसमें कोई शक नहीं हैं.
 
जो विकास के नाम पर वोट देने की बात करतें हैं वह बसपा के 2007 से 2012 के शासन काल में किए गए कार्यों पर नजर डालें उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार आदि से सम्बंधित महत्त्वपूर्ण कार्य किए हैं साथ ही बहुजन स्मारक भी बनवाए हैं.

लेकिन जिसे बस विरोध ही करना हैं बेशक करिए यह उनका अधिकार हैं.
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