जहाँ पड़े चरण रविदास जी के

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*जहां-जहां सतगुरु रविदास जी गए*
*🛑"""""""""""""""""""""""""""""''''''''''🛑*
*🏛️वहीं पर उनके स्मारक बने🏛️*
*(1) -* 
काशी के निकट मांडूर में रविदास कुंड
*(2) -* 
काशी में रविदास घाट
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काशी में लंका चौराहा पर रविदास गेट
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काशी में रविदास पार्क
*(5) -* 
हैदराबाद (एलोरा) में रविदास कुंड
*(6) -* 
काठियावाड़ जूनागढ़ में रविदास कुंड
*(7) -* 
चित्तौड़गढ़ किला में रविदास जी के चरण चिन्ह, रविदास जी की छतरी जिसमें बैठकर स्कूल चलाते थे और जिस चबूतरे पर गद्दी लगाकर प्रवचन करते थे सभी संरक्षित
*(8) -* 
बालाजी पहाड़ी की तलहटी में तिरुपति मंदिर के पास रविदास स्मारक
*(9) -* 
उत्तराखंड हरिद्वार गंगा घाट हर की पोड़ी  पर संत रविदास जी की मूर्ति
*(10) -* 
दिल्ली तुगलकाबाद में सन 1509 का रविदास आश्रम
*(11)-* 
लाहौर में रविदास गेट (अब चमार गेट कहते हैं)
*(12)* 
उत्तर प्रदेश मेरठ में रविदास गेट (अब चमार गेट से जाटव गेट कहते हैं)।  दिल्ली जाते समय सतगुरु रविदास जी का इस स्थान पर तोरण द्वार बनाकर स्वागत किया गया था।
*(13)*
उत्तर प्रदेश आगरा शहर का सन 1503 में शिष्य बादशाह सिकंदर लोदी के अनुरोध पर संत रविदास जी के हाथ से नींव का पत्थर
*(14)* 
उत्तर प्रदेश भदोही संत रविदास नगर जिला।

जब मीराबाई  जी की शादी भी नहीं हुई थी और वह संत शिरोमणि गुरु श्री रविदास जी महाराज की  शिष्य बन गई थी। उस समय मीराबाई के मोसा महाराजा बेन सिंह रियासत खुरालगढ़ के राजा थे। जिन्हें संत रविदास जी का अनुसूचित होते हुए, राजघराने की लड़की मीराबाई को  शिष्या बना लिया जाना बुरा लगा। 
*(15)* 
संत रविदास जी महाराज जब भारत भ्रमण पर थे, तब वह लुधियाना से निकलकर ग्राम चक हकीम वर्तमान तहसील फगवाड़ा  होकर जा रहे थे। तब वहां उन्होंने विश्राम किया। आसपास कहीं पानी की व्यवस्था न होने के कारण स्थानीय शिष्य गण की प्रार्थना पर वहाँ एक कुआं खुदवाया। जो आज भी है और उसे रविदास कुंड के नाम से जाना जाता है। 
*(16)* 
*चरण छू  गंगा -*
यहां से आगे जाने के बाद गुरु महाराज जी ने रियासत खुरालगढ़ के क्षेत्र में विश्राम किया। जहां से गुरु जी को खुरालगढ़ नरेश बेनसिंह ने गिरफ्तार करा लिया तथा उन्हें तरह-तरह की यातनाएं देना चाहा। गुरु जी महाराज ने महाराजा बेनसिंह को समझाया और उन्हें अपने ज्ञान बल से प्रभावित किया। जो  गुरु रविदास जी महाराज के शिष्य बन गए थे।
खुरालगढ़ नरेश बेन सिंह ने पहाड़ी पर बसे इस शहर में पानी की किल्लत से गुरु जी को अवगत कराया। गुरुजी के द्वारा एक पत्थर के नीचे जल होने की बात बताते हुए उसे हटाने के लिए कहा कि आप इसे हटा दीजिए यहां से जल स्रोत फूट निकलेगा। राजा बेन सिंह उस पत्थर को नहीं पहचान पाए कि गुरु महाराज जी  कौन से पत्थर को हटाने की बात कर रहे हैं। तब संत शिरोमणि गुरु रविदास जी महाराज के द्वारा अपना पैर उस पत्थर पर रख दिया। जिसे लोगों ने हटा दिया, उस स्थान से एक जलधारा निकल आई। जिसे रविदास *चरण छू गंगा* के नाम से जाना जाता है। प्रत्येक वर्ष वैशाखी के दिन यहां भारी मेला लगता है। मेला में आए लाखों लोग रविदास चरण छू गंगा से पवित्र जल अपने घरों को ले जाते हैं।
कुछ दिन इस स्थान पर रहने के बाद संत रविदास जी महाराज लाहौर चले गए थे। जहां उनके स्वागत में तोरण द्वार बनाए गया था,उस स्थान पर आज भी रविदास गेट बना है। जो आज चमार दरवाजा के नाम से प्रसिद्ध है।
*(17)* 
संत रविदास जी 15 वीं सदी में ईरान के आबादान शहर गए थे , जिसके बारे में संत रविदास जी ने भविष्यवाणी की थी कि आवादान शहर मशहूर होगा। इसका वर्णन संत रविदास जी की वाणी में भी आता है। उन्होंने अपनी वाणी में आवादान को *आवादानु* लिखा है।

*आवादानु सदा मशहूर* 
*ऊहां गनी बसहि मामूर*
बताता चलूं कि आवादान शहर, वर्तमान में ईरान के क्रूजेस्तान प्रांत का जिला है। आवादान शहर इस समय दुनिया का सबसे मशहूर और धनाढ्य शहर है, जिसमें दुनिया का सबसे बड़ा तेल शोधक  कारखाना लगा है। इस कारखाना में दुनिया के अनेक देशों के वैज्ञानिक और मजदूर काम कर रहे हैं। यह शहर ईरान और इराक की सीमा पर बसा है। जिसकी दूरी देश की राजधानी तेहरान से 953 किलोमीटर है।
संत रविदास जी को आवादान शहर में एक पीर पैगंबर की तरह से पूजा जाता है। जहां उनकी समाधि बनी है, जिसे *रविदास पीर मजार* बोला जाता है।
*(18)* 
उज्जैन शहर मे क्षिप्रा नदी के किनारे विशाल रविदास आश्रम बना है जहाँ गुरु रविदास जी महाराज चित्तौड़गढ़ अथवा आसपास के क्षेत्रों का भ्रमण करते  समय इसी आश्रम में ठहते थे। इस आश्रम के संचालक सतगुरु रविदास जी महाराज के निकटतम सर्वप्रथम शिष्य (गुरु) गोवर्धन दास जी ने गुरु रविदास जी महाराज के सामने ही रविदास पंथ चलाया था।
*सतगुरु रविदास जी महाराज जहां-जहां गए उन्होंने उस समय में रास्ते बनवाएं पेयजल हेतु जल कुंड (कुएं) खुदवाय तथा शिक्षा के लिए स्कूल बनवाएं।*
            जय सतगुरु रविदास जी

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