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अटल बिहारी की प्रेम कहानी

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आज संघ के लोग पण्डित नेहरू पर झूठ बोलने  से नहीं कतराते पर अटल जी की भी एक  अलग सच्चाई है जो इस प्रकार है...🔥..!   अटल - राजकुमारी हस्कर का इश्क़ 1940 के दशक में परवान चढ़ा..पर राजकुमारी जी के पिता कश्मीरी पंडित श्री गोविंद नारायण हस्कर अटल को पसंद नहीं करते थे..इसलिए शादी नहीं हो पाई..🔥 ● राजकुमारी जी का विवाह हुआ प्रोफेसर बृज नारायण कौल से..दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर थे..बाद में प्रोफेसर कौल रामजस कॉलेज हॉस्टल के वार्डन बने..बस यही से अटल की प्रेम कहानी फिर पलटी..🔥 ● अटल को शायद कश्मीरी पंडितो से घृणा थी क्योंकि एक कश्मीरी पंडित ने अपनी बेटी देने से इनकार कर दिया था..शायद इसी घृणा का ही नतीजा था कि 1990 में अटल ने कश्मीरी पंडितों को कश्मीर से भगा दिया..🔥 ● प्रोफेसर कौल बहुत अनुशासन वाले वार्डन थे..तो छात्रों ने राजकुमारी जी का रुख किया ताकि हॉस्टल के नियमों में कुछ ढील मिले..छात्र पहुंचे तो देखे की प्रोफेसर साहब के घर पर अटल "धूनी" रमाये बैठे हैं । ये 1960 की बात है..🔥 ● 1960 में ही अटल कौल परिवार में अपना "डेरा" बना लिए..1978 में जब अटल विदेशम...

अशोक चक्र

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🇮🇳"अशोक चक्र " के लिए बाबासाहब ने बहुत  Struggle किया है। .. " अशोक चक्र " का जब issue उठा तब। पूरी Parliament में हंगामा शुरू था। .. पूरी Parliament दनदना गयी थी।..   पहले राष्ट्रध्वज का कलर बनाने के लिए बाबासाहब ने " पेंगाली वेंकैय्या " को चुना था। ...पेंगाली वेंकैय्या को कलर के बारे में जनाकारी थी। ... उनका संवैधानिक चयन बाबासाहब ने किया था। ,.. पेंगाली वेंकैय्या ने ध्वज का कलर तो बनाया लेकिन वो कलर ऊपर निचे थे ... मतलब सफ़ेद रंग सबके ऊपर , फिर ऑरेंज और फिर हरा। ...  बाबासाहब ने सोचा , अगर अशोक चक्र हम रखे तो वो नीले रंग में होना चाहिए , और झंडे के बिच में होना चाहिए ... ऑरेंज रंग पे " अशोक चक्र " इतना खुल के नहीं दिखेगा। ... बाबासाहब ने सोचा , अगर सफ़ेद रंग को बिच में रखा जाए जो की शांति का प्रतिक है , उसपर अशोक चक्र खुल के भी दिखेगा। .. और शांति के प्रतिक सफ़ेद रंग पे बुद्ध के शांति सन्देश का अशोक चक्र उसका मतलब बहुत गहरा होगा। ... इसलिए बाबासाहब ने वो कलर ठीक से सेट किये। .. और सफ़ेद रंग बिच में रखा ताकि उसके ऊपर " अशोक चक्...

सतगुरु कबीर जी

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महान कवि संत कबीर दास जी की जयंती पर उन्हें कोटि-कोटि नमन। 💐💐 अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त अंधविश्वास, कुरीतियों एवं भेदभाव के विरुद्ध जन-जागृति पैदा करने वाले कबीर दास जी ने अपना संपूर्ण जीवन मानवता की सेवा में समर्पित कर दिया था।  🌷 *कबीर जैसा कोई नहीं* 🌷 ---------------------------------------------- कबीर का मार्ग 'कागद की लिखी' का मार्ग नहीं है यह तो 'आंखन की देखी' का मार्ग है. कागद की लिखी में उलझे रहने वाले इस मार्ग पर नहीं चल सकते. वे विद्वान व वक्ता तो हो सकते हैं लेकिन प्रेम व शील की सुगंध से भरे साधक नहीं हो सकते. भीतर की आंखों से देखने की साधना, अनुभूति व आचरण के बिना विद्वता सिर्फ भटकाती हैं. बुद्धि विलास व वाणी विलास में उलझाती हैं. उनकी दशा तो ऐसी है कि औरों को प्रकाश दिखाते हैं लेकिन खुद अंधकार में रहते हैं. 'औरन को करें चांदना, आप अंधेरे माहि'. ऐसा व्यक्ति भला कबीर के मार्ग पर कैसे चल सकता है? *कबीर का मार्ग प्रेम का मार्ग है.*  इस मार्ग में कोई भी चल सकता है लेकिन अहंकार व जाति, धर्म व संप्रदाय की संकीर्ण भावना के लि...

CHAMAR

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ऐसा चाहूँ राज मै जहां मिले सबन को अन्न, !!! छोट बड़े सब सम बसै, रविदास रहें प्रसन्न, !!!          मन चंगा तो कठौती मै गंगा, !!! पराधीनता पाप है है जान लिहो रे मीत, रविदास दास पराधीन से कौन करे है प्रीत,     पढो, जुड़ो और जोड़ो,,,!!!    सतगुरू रविदास जी के इन वचनो मै मुझे कोई भी शब्द धार्मिक नहीं लगा क्योंकि वो कभी धार्मिक थे ही नहीं एक पूर्ण राज नैतिक व्यक्ती को ब्राहमण वाद ने धार्मिक बना दिया और हमारा समाज उन्हे धार्मिक समझने लगा,,,!!!           सतगुरू रविदास के वचनों को पढ़ने और समझने की आवश्यकता बौद्धों को भी है अम्बेडकर वादियों को भी है और स्वयं रविदासियों को भी है ज़िन्होने हमारे महांपुरूषो को बांट रखा है  और उन लोगों के लिये भी दो शब्द बोलना चाहता हूँ जो रोज मुझे चमार होने का एहसास दिलाते हैं हाँ हूँ मै चंवर वंशी नाग वंशी बुद्ध वंशी चमार,,,!!!  मै जातिवाद चाहता हूँ नही,,, बिलकुल नहीं चमार शब्द पर मेरा तर्क है रविदास के शब्दो मै चमार का अर्थ भी समझने का प्रयास करो चमार शब्द को जाति से जोडने से पह...

मंडल कमीशन और ब्राह्मण

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* बहुजन समाज (SC,ST,OBC) के लोगों खासतौर से ओबीसी के लोगों से कहना है अगर अपने अधिकारों की सुरक्षा करना चाहते हो तो इस पूरी  रिपोर्ट को जरूर पढें..*   मंडल कमिशन और ब्राह्मण 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनी जिस में मोरारजी देसाई ब्राह्मण थे। जिनको जयप्रकाश नारायण द्वारा प्रधानमंत्री पद के लिऐ नामांकित किया था। चुनाव में जाते समय जनता पार्टी ने अभिवचन दिया था कि यदि उनकी सरकार बनती है, तो वे *काका कालेलकर कमीशन* लागू करेंगे। जब उनकी सरकार बनी तो OBC का एक प्रतिनिधिमंडल मोरारजी को मिला और काका कालेलकर कमीशन लागू करने के लिऐ मांग की मगर मोरारजी ने कहा कि कालेलकर कमीशन की रिपोर्ट पुरानी हो चुकी है, इसलिए अब बदली हुई परिस्थिति में नयी रिपोर्ट की आवश्यकता है। यह एक शातिर बाह्मण की OBC को ठगने की एक चाल थी। प्रतिनिधिमडंल इस पर सहमत हो गया और B.P. Mandal जो बिहार के यादव थे, उनकी अध्यक्षता में *मंडल कमीशन* बनाया गया।. बी पी मंडल और उनके कमीशन ने पूरे देश में घूम-घूमकर 3743 जातियों को OBC के तौर पर पहचान किया जो 1931 की जाति आधारित गिनती के अनुसार भारत की कुल जनसंख्या 52% ...

संत रविदास की हत्या

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संत रविदास जी की हत्या, उसके कारण, तथा उनके बारे में फैलाए जा रहे भ्रम ----------- संत रविदास जी के बारे में यह भ्रम फैलाया गया कि उन्होंने अपने पात्र में  गंगा दिखाई , जो शख्स पूरी जिंदगी अवैज्ञानिकता से लडता रहा ,और उसको खुद अवैज्ञानिक बता दिया, उनके कथन  'मन चंगा तो कटौती में गंगा' में संदेश में बदल दिया गया। दूसरा वो रामानंद के शिष्य थे जबकि रामानंद और रविदास जी के समय में अंतर है। तीसरा उन्होंने चित्तौडगढ के महल में रंबी यानि चमढे काटने का औजार से अपनी छाती चीरकर जनेऊ दिखाया। जबकि  महल में उनका सीना चीरा और झूठ प्रचारित किया गया। अगर राजा किसी को अपने महल में बुलाएगा तो क्या कोई इंसान अपने दैनिक कार्य करने वाले औजार क्यों लेके जाएगा। संत रविदास अपनी रंबी लेके क्यों गये जबकि उन्हे शास्त्रार्थ के बुलाया गया। उनकी हत्या के कारण  -------------------------  उनके द्वारा पाखंड के खिलाफ प्रचार करना ब्राह्मणों को रास नहीं आया। और मीराबाई के द्वारा रविदास जी को गुरु मानना और देर सवेर उनके साथ सत्संग करना। राणा सांगा और बप्पा रावल रविदास के रिश...

बीएसपी में ब्राह्मण समाज का आगमन

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सतीशचंद्र मिश्रा को मान्यवर कांशीरामजी के उपस्थिती में ही सन 2002 को पार्टी में शामिल कर लिया था।  उससे पहले सन 1986 में ही TOPAZ कंपनी के मालिक जयंत मल्होत्रा नामक इस सवर्ण हिंदू को मान्यवर कांशीरामजी ने बसपा में शामिल कर लिया था। और उसके बाद उन्हें राज्यसभा में सांसद बनाकर भेज दिया था। हो सके तो राज्यसभा का रिकार्ड चेक करो।  फिर उसके बाद ब्राम्हणों की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा के साथ समझौता करके उ.प्र. में बसपा की सरकार बनायी। 4 महिने के बाद बसपा की सरकार गिर जाने के बाद मान्यवर कांशीरामजी ने सन 1995 में रामविवर उपाध्याय और सीमा उपाध्याय इन दो ब्राम्हणों को पार्टी में शामिल कर लिया था। और हाथरस इस लोकसभा से उन्हें उम्मीदवार भी बनाया था और लोकसभा में भी चुनाव जिताकर पहुंचाया गया था।  इसके तुरंत बाद ब्रजेश पाठक भी पार्टी में मान्यवर कांशीरामजी के उपस्थिती में शामिल हुए थे। बाद में 2002 में मान्यवर कांशीरामजीने उ.प्र. के विधानसभा चुनाव में 37 टिकिट ब्राम्हणों को दी। 10 सीटे वैश्य समाज को दी और 15 सीटे क्षत्रियों को देकर सर्वजन हिताय और सर्व...